ईश्वर हमारी नहीं सुनते
कितनी ही बार हमको शिकायत होती है, ईश्वर हमारी नहीं सुनते हैं। ना जाने लोग ऐसा क्या करते हैं, कि ईश्वर इसकी, उसकी सब की सुन लेते हैं। पर जब हमारी
बारी आती है, तब सुनते ही नहीं हैं।
पर आप ने कभी ठीक से ध्यान दिया है, ईश्वर सबकी सुनते हैं।क्योंकि उनके हम सभी बच्चे हैं, और कौन ऐसे माता-पिता होते हैं, जो बच्चों की नहीं
सुनते हैं?
अब आप कहेंगे, आपकी सुनते होंगे, हमारी तो नहीं सुनते हैं। तो जनाब! गलती उनके देने में नहीं है, गलती तो आपके मांगने में है।
क्या मतलब?
तो थोड़ा सब्र के साथ पूरा article पढ़ें, और साथ ही साथ ये भी सोचते चलिएगा, ऐसा ही होता है ना?
जब हम exam देने जाते हैं, तो ईश्वर से क्या कामना करते हैं?
हे ईश्वर! सब easy दीजिएगा, या वही exam में आए, जो हम पढ़
कर आए हैं, या exam दे चुके होंगे तो
मनाएंगे, easy marking हो।
क्यों यही मांगते हैं ना ईश्वर से?
और कितनी बार, हमारा सोचा सच भी
हो जाता है। पर हमे success तब भी नहीं मिलती है।
पता है क्यों?
क्योंकि हमने ये तो ईश्वर से मांगा ही नहीं था, कि exam में top करें।
क्या फ़र्क पड़ता है, exam
easy आए या tough, पढ़ा आए या बिना पढ़ा, marking easy हो या tough। फ़र्क पड़ता है, कि आप सफल हुए या असफल। तो सफल होने
की ही प्रार्थना करें।
कई दिनों से बारिश हो रही होगी, तो हम ये मनाएंगे, जिस दिन हमारा काम है, उस दिन बारिश ना हो। जबकि हमारा काम, सिर्फ बारिश
रुकने से सिद्ध नहीं होगा। बल्कि कोई भी काम पूर्ण होने के पीछे कई factors शामिल होते
हैं। तो ये मनाइए, कि मेरा ये काम पूर्ण हो, तब सारे factors सही होंगे।
इसी तरह के और भी कई उदाहरण मिलेंगे, आपको जिंदगी में।
शायद आपने सती सावित्री की कहानी सुनी होगी? जब यमराज सत्यवान को ले जा रहे थे, तब उन्होंने
सावित्री से कहा था, सत्यवान का जीवन छोड़ कर कुछ भी मांग लो।
तब सावित्री ने कहा, मेरे सास ससुर के पोते उनके राजमहल में
खेलें।
यमराज के तथास्तु बोलते ही, सावित्री के ससुर रंक से राजा बन गए, क्योंकि राजमहल तो तब होगा, जब ससुर राजा होंगे। और यमराज को सत्यवान को जीवित भी करना पड़ा, क्योंकि पोते तो तब होते, जब पुत्र जीवित होता। और
इस तरह से सावित्री, यमराज से अपने पति का जीवन पुनः प्राप्त
कर सकी।
कहने का तात्पर्य ये है, कि मांगते समय सही तो मांगिए, जिससे जब ईश्वर आपको
आपकी कामना के अनुरूप दें, तो आप पूरी तरह संतुष्ट हो सकें।
हम अपने बच्चों द्वारा मांगें जाने पर सब कुछ नहीं
दे देते हैं, वही देते हैं, जो उनके
लिए उचित हो। उसी तरह हमारी कामना के पश्चात, ईश्वर ने हमें
जो दिया, उसका धन्यवाद करें। क्योंकि ईश्वर हमे सदैव वही
देते हैं, जो हमारे लिए उचित है।
No comments:
Post a Comment
Thanks for reading!
Take a minute to share your point of view.
Your reflections and opinions matter. I would love to hear about your outlook :)
Be sure to check back again, as I make every possible effort to try and reply to your comments here.