खुशियों की गाड़ी
पुनिया मेरे घर काम करती थी, उसका पति रिक्शा चलाता था।काम में तो पुनिया बहुत होशियार थी, ईमानदार भी थी। बस उसमें कमी थी तो एक ये ही कि, वो
आए दिन पैसे मांगा करती थी।
गरीब समझ कर मैं भी दे दिया करती थी, पर कभी कभी गुस्सा भी हो जाया करती, पुनिया कभी तो
महीना पूरा हो जाने दिया कर।
पर उसका हमेशा एक ही जवाब होता,
मेमसाहब मेरा मर्द रिक्सा चलाता है। तो एक सी कमाई नहीं होती है, फिर घर चलाने के लिए पैसा तो चाहिए ही।
अरे तो बोला कर ना, कि और
ज्यादा चक्कर लगाया करे।
मेमसाहब, बहुत मेहनत लगती
है, रिक्सा चलाने में। मेरा मर्द तो बहुत ही चक्कर लगाता है, पर सवारी ही ज्यादा पैसा नहीं देती है। ऊपर से रिक्सा से पहुँचने में टेम
भी लगता है, तो बहुत से लोग जाना भी नहीं चाहते।
एक दिन तो पुनिया ने हद ही कर दी, बोली मेमसाहब 10 हज़ार रुपए उधार दे दो।
क्या कहा, दस हज़ार! समझ भी
रही है, क्या बोल रही है तू?
हाँ मेमसाहब, दे दो ना, सारी ज़िंदगी तुम्हारी गुलामी करूंगी।अबकी जो देंगी, फिर कभी उधार नहीं लूँगी।
अरे! तेरी तो इतनी तनख्वा भी नहीं है। फिर दस हज़ार
कम होते हैं क्या?
मेमसाहब, पूरे पाँच महीने
बिन पैसे के काम कर दूँगी। दे दो ना, मैं अपनी पायल, बाली सब आप के पास रख दूँगी।
अरे तो, सुनार के पास जा
ना।
नहीं है, किसी और पर
विश्वास, मेरे लिए सिर्फ आप हैं।
उसकी ऐसी बात सुनकर मैंने बिना पायल, बाली रखे उसे, दस हज़ार दे दिये।
अगले दिन जब पुनिया आई, तो उसके चहरे की रंगत ही अलग थी। बोली मेमसाहब मेरे मर्द ने गाड़ी ले ली
है। कल मुझे भी घुमाया उसमें, बहुत मज़ा आ गया। मेमसाहब आप
बहुत अच्छी हैं, सब आपके कारण हो सका।
छोटे बाबा आप मेरे मर्द की गाड़ी में घूमोगे? वो मेरे बेटे की तरफ मुखतिब होते हुए बोली। मेरा बेटे को घूमना बहुत पसंद
है, उसने झट से हाँ कर दिया।
वो मुझसे बहुत चहकते हुए बोली, मेमसाहब चलो ना
नीचे मेरा मर्द खड़ा है, एक चक्कर छोटे बाबा को घूमा देगा।
बेटे और उसकी इतनी इच्छा देखकर मैं चल दी।
नीचे उसका पति अपने सजे हुए सुन्दर से रिक्शे के साथ खड़ा था। मैं चौंक
गयी, ये तो रिक्शा ही है! अरे मेमसाहब आपके लिए रिक्सा होगा, हम लोगों की तो गाड़ी ही है, कहकर उसने मेरे बेटे को
रिक्शे में बैठा दिया।
मैं वहीं खड़ी उनके लौटने का इंतज़ार कर रही थी।
थोड़ी
देर बाद वो लोग लौट आए, बेटे के चहरे पर कार में बैठने से ज्यादा खुशी अभी दिख रही थी। क्योंकि कार में तो वो रोज़ बैठता था, रिक्शा उसके लिए नया था।
पुनिया बोली, देखा ना मेमसाहब
हम कितनी जल्दी लौट आये। मेरे मर्द की गाड़ी सर्र से दौड़ जाती है। पुनिया की खनकती हुई आवाज़ ही उसकी ख़ुशी बयां कर रही थी। उसके पति ने
रिक्शे में मशीन लगवा ली थी। फिर सोचा सच ही तो बोल रही है पुनिया, उसके लिए तो गाड़ी ही है।
अब पुनिया का पति अधिक दूरी तक भी रिक्शा चला रहा था, और सवारी से भी अधिक पैसे मिल रहे थे, तो पुनिया ने दो महीने में ही दस हज़ार वापिस लौटा
दिये।
सच खुशियाँ छोटी छोटी बातों से भी मिल जाती है। आज
मैं भी खुश हूँ, कि मैंने उस दिन उसे दस हज़ार रुपये दे दिये थे।
उसके बाद कभी उसे उधार मांगने की जरूरत नहीं पड़ी, और उसके
चहरे पर हमेशा सुकून की खुशी भी थी।
क्योंकि उसके मर्द की गाड़ी जो आ गयी थी, या शायद उसकी खुशियों की गाड़ी।
Heart touching story...Great going👍ns
ReplyDeleteThank you very much Ma'am for your encouraging words, they really boost me up
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