वो दिन......
भारत ऐसा देश है जहाँ धर्म-कर्म का विश्व में
सर्वाधिक बोल बाला है, पर कुछ दूसरे पहलू भी हैं, जिनमें विचार की आवश्यकता भी है, जैसे सबसे ज्यादा
कर्मकांड भी, और दुनिया भर के नियम कानून भी।
आज का मेरा ये article कुछ अलग
सोच पर है, पर पूरा article पढ़कर एक
बार सोचिएगा जरूर।
आज कल नवरात्रि अर्थात- माता रानी के दिन चल रहे
है। भारत ऐसा देश है, जहाँ स्त्री को देवी रूप में पूजा
जाता है।
माता रानी अर्थात स्त्री का माँ रूप।
माँ को ईश्वर रूप में माना जाता है। आप ने कभी सोचा
है, क्यों स्त्री को ईश्वर तुल्य माना जाता है? क्योंकि
ईश्वर का एक गुण सृजन कर्ता भी है। सृजन कर्ता अर्थात जन्म देने वाला। और ये शक्ति
ईश्वर ने स्त्री को भी प्रदान की है।
स्त्री जब संतानोत्पत्ति करती है, माँ बन जाती है। सम्पूर्ण हो जाती है, तब वह ईश्वर
तुल्य हो जाती है। तो अगर माँ होना, इतना पवित्र है, तो उससे जुड़ी process अपवित्र कैसे हो सकता है।
माँ बनने के ही process की
ही एक कड़ी हैं- वो दिन(Periods).......
इस कड़ी के फलस्वरूप ही स्त्री माँ बन सकती है, यदि किसी के यह ना हो तो, वो माँ भी नहीं बन सकती है।
इस कड़ी के फलस्वरूप ही स्त्री माँ बन सकती है, यदि किसी के यह ना हो तो, वो माँ भी नहीं बन सकती है।
अगर आप scientifically देखेंगे, तब भी आपको यही पता चलेगा, कि period, माँ बनाने की natural process है, उसके बिना माँ नहीं बना जा सकता।
फिर जब स्त्री इस process में
होती है, तो उस समय उसके साथ अछूतों जैसा भेदभाव क्यों? उसे उस समय मंदिर जाने, ईश्वर को छूने देने की सख्त
मनाही कर दी जाती है।
अगर इसका कारण रक्त स्त्राव है, तो रक्त
स्त्राव तो चोट लग जाने से भी होता है, तो क्या किसी को लगी छोटी
सी चोट भी उसे पूजा के लिए अयोग्य कर देती है?
जब स्त्री माँ बनती है, तब वो तो मंदिर नहीं जा सकती, यहाँ तक कि उस घर में
पूजा करना तक निषेध कर दिया जाता है।
जब मेरी बेटी हुई थी, तब उसे
मंदिर ले जाया गया था, पर मेरा जाना निषेध कर दिया था। जब
मेरे पति को इसका कारण पता चला, तो वह बोले यदि उसके माँ
बनने से वो अपवित्र है, तो पिता तो मैं भी बना हूँ। तब तो
मुझे भी नहीं जाना चाहिए। सब के लाख कहने
पर भी कि पुरुष को दोष नहीं लगता है, वो भीतर नहीं गए, मेरे साथ बाहर ही खड़े रहे।
जब पुत्र हुआ, सावन का महीना चल
रहा था, सब ने कहा, इस सावन घर में
पूजा निषेध है। तब वह बोले, जिस समय हमें ईश्वर को सर्वाधिक
धन्यवाद देना चाहिए, कि उन्होंने हमें सन्तान प्रदान की है।
तब ही पूजा ना की जाए, मैं ऐसा नहीं करूंगा। शिव जी मेरे
आराध्य हैं, और मैं सावन में ही उनकी पूजा ना करूँ, ये असंभव है, और वह नियम से पूजा करते रहे।
उनका मानना है, कि ईश्वर प्रेम
से पाये जा सकते हैं, कर्म कांड से नहीं। धन्य हूँ, जो मुझे ऐसे पति मिले हैं, जिनके लिए कर्मकांड से
ज्यादा प्रेम सर्वोपरि है।
मुझे मेरे पिता ने भी सदैव यही कहा था, आप कर्मकांड कितना करते हैं, यह महत्वपूर्ण नहीं
होता है, ईश्वर के लिए। ईश्वर यह देखते हैं, कि आप कितना मन से उनकी पूजा अर्चना करते हैं। अर्थात जब आप ईश्वर की पूजा
कर रहे हैं, तब सारा ध्यान सिर्फ ईश्वर आराधना में ही होना चाहिए।
हे ईश्वर, आपका कोटि कोटि
धन्यवाद, आप ने मुझे ऐसे पिता व पति प्रदान किए।
क्या आप को लगता है, ईश्वर यह
चाहते हैं? कि उन दिनों उनकी पूजा अर्चना ना हो, उन्हें छुआ ना जाए, कदापि नहीं। अगर ऐसा होता तो, ना तो उन्होंने periods बनाए होते, ना स्त्री को सृजनकारी बनाया होता।
ईश्वर कभी भी कर्म कांड से नहीं प्राप्त होते हैं, अगर ऐसा होता तो सारे कर्म कांडियों को ईश्वर की प्राप्ति हो जाती। ईश्वर
की प्राप्ति का सरल व सुगम मार्ग सिर्फ प्रेम है, उन पर
श्रद्धा है, विश्वास है।
इसका सीधा और सच्चा उदाहरण है, प्रभू श्री राम का शबरी के झूठे बेर खाना, मीरा का
भगवान श्री कृष्ण को पाना, और सबसे बड़ा उदाहरण है, कृष्ण जी को राधा जी के साथ पूजा
जाता है।
ईश्वर को प्रेम से पाने की कोशिश कीजिये, आप कब उनकी शरण में आ जाएंगे, आपको पता भी नहीं
चलेगा।
Nice article👌
ReplyDeleteNs
Thank you very much for your appreciation
DeleteIn my view these rituals were made to give complete rest to ladies on those days..As body may get weakened due to blood loss.
ReplyDeleteBut with the passage of time..Things get perverted.
I totally agree with your words.
DeleteBut now-a-days, rest is secondary
And only दकियानूसी सोच is preliminary,so it must be discarded