ऐ दिल
चल पड़ी है जिन्दगी फिर से,
ऐ दिल, तू भी संभल;
चल, अब तू भी डर से निकल,
कब तलक यूँ ही डरता रहेगा;
कुछ हो ना जाए, यह सोच कर,
हरदम बस सहमता रहेगा।
खुल रही हैं दुकानें,
चौराहें नहीं रहे वीराने;
खुशबू पकवानों की,
अब महकने लगी है;
बाजारों में रौनक,
फिर दिखने लगी है;
धीरे धीरे ही सही,
पर तू आगे बढ़,
ऐ दिल, तू भी संभल;
चल, अब तू भी डर से निकल।
सशक्त बना, खुद को इस कदर,
कि गर कोरोना की हो नजर;
सोचे वो, तुझको देखकर,
छू ही सकता हूँ, इसे मैं,
बिगाड़ कुछ पाउँगा नहीं,
क्या करुंँगा, रुक कर इसमें;
खुद ही चल दे, दूसरी डगर,
ऐ दिल, तू भी संभल;
चल, अब तू भी डर से निकल।।
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