दस्तक ( भाग -1) के आगे......
दस्तक ( भाग -2)
आखिरकार bike एक घर के आगे रुक गई।
घर बहुत ही कलात्मक था, उसकी दीवारें, उसका दरवाजा सब इस बात की गवाही दे रहे थे कि घर का मालिक कुछ खास है।
निखिल ने नेहा से कहा, तुम दरवाजा knock करो, तब तक मैं bike park कर के आता हूँ।
Knock....... knock कहाँ करना होता है आज कल......
नेहा ने देखा कि वहाँ कोई bell थी ही नहीं, दरवाजा knock ही करना पड़ेगा।
उसने दरवाज़े पर दस्तक दी, तो उसकी गूंज कुछ ऐसी सी आई, मानो वो किसी सुनसान जगह में खड़ी हो।
जबकि उस घर के आस-पास बहुत से घर थे।
घर के अंदर से एक स्त्री बाहर आई, वो बहुत सजी हुई थी और बला की खूबसूरत लग रही थी।
उसने ऐसा इत्र लगा रखा था कि उसकी महक से चंद मिनटों में वो पूरी जगह महकने लगी थी।
तब तक में निखिल भी आ गया था।
निखिल और नेहा घर के अन्दर आ गए, उस घर की हर दीवार पर बहुत सुन्दर सुन्दर से showpiece लगे थे, जिनसे निगाह ही नहीं हट रही थी।
निखिल ने नेहा से बोला, अब पता चला कि मैं तुम्हें क्यों यहाँ लाया हूँ?
नेहा ने सिर तो हाँ में हिला दिया, पर उसका मन ना जाने किस अनजान ख़तरे से उसे अगाह कर रहा था।
अंदर एक बूढ़ी औरत लेटी थी, एक आदमी उसकी देखभाल कर रहा था।
तभी वो स्त्री बोली, वहाँ का देख रही हो जी?
बुढ़िया बीमार है, म्हारा मर्द देखे है उसे, तुम तो यहाँ देखो, कितना चोखा माल है।
नेहा सामान देखने लगी, पर निखिल की नज़र तो उस स्त्री से हट ही नहीं रही थी।
नेहा ने पूछा, दाम कितना है?
तो निखिल चट से बोला, अरे तुम्हें जो पसंद आए, वो ले लो।
चाहे तो और लोगों को देने के लिए भी ले लो।
इनके यहाँ के सामान बहुत सुंदर हैं, फिर कहाँ रोज़ रोज़ इतनी दूर आना होगा। यह सब निखिल उस स्त्री को देखते हुए ही बोल रहा था।
वो स्त्री बोली, अरे ले लो, जितना चाहो ले लो, आज तक संभारा के दरवाजे की दस्तक जिसने भी दी है, एक सामान लेकर नहीं गया।
नेहा ने एक दो सामान की कीमत पता की, सभी बहुत सस्ते थे।
नेहा ने निखिल की तरफ देखा, तो निखिल मुस्कुरा दिया, और बोला, मैं जानता था कि, बहुत सुन्दर और बहुत सस्ता सामान मिलता है।
नेहा ने झटपट चार-पांच चीजें पसंद कर लीं।
संभारा, तुम pack कर दो सब।
हाँ अभी लो, कह कर वो भीतर चली गई।
पर जब आधे घंटे तक बाहर नहीं आई, तो नेहा गुस्साने लगी।
यह कर क्या रही है? बच्चे भी घर में अकेले हैं, और यह कितनी देर लगा रही है।
घर भी पास नहीं है, जाते जाते भी समय लगेगा।
खाना भी तो नहीं बना कर आई।
निखिल बोलने लगा, थोड़ा सब्र कर लो, अभी आ जाएगी।
नेहा ने सोचा, चारु को ही बोल देती हूं कि Maggi बना कर खा लें।
उन्हें आते आते समय लगेगा।
पर वहाँ तो signal ही नहीं थे।
नेहा ने सोचा, शायद भीतर signal हों, क्योंकि भीतर से संभारा की किसी से phone पर बात करने की आवाज़ आ रही थी।
नेहा थोड़ी ही भीतर गई थी, कि signal आ गये।
उसने phone मिलाया, तो चारु कहने लगी, Mumma आप लोग कहाँ हैं? आपका और Papa का phone ही नहीं लग रहा है।
नेहा बोली, बेटा हमें आते-आते time लगेगा, तुम Maggi बना लो, सोनू और तुम Maggi खाकर, सो जाना।
मेरे पास duplicate key है, हम अंदर आ जाएंगे।
Mumma, आप सोनू से बात कर लीजिए।
नेहा ने सोनू को भी समझा दिया।
बात कर के, नेहा ने phone cut कर दिया।
Phone cut होते-होते ना जाने कैसे उसमें recording वाला option खुल गया।
नेहा, संभारा को ढूंढ़ती हुई अन्दर को गयी, तो उसे संभारा की आवाज साफ सुनाई दे रही थी।
वो किसी को बोल रही थी कि, वो रोज अपनी सास और पति को ज़हर दे रही है, पर उन पर असर ना जाने कब तक होगा?
उधर से आवाज़ आई कि, तुझे जरुरत क्या है? सब तो तेरी मुठ्ठी में है।
वो बोली, नहीं अभी यहाँ, जगुना और जोगावर की ही चलती है।
उसका पूरा हक तो यहाँ पर इनके मरने के बाद ही होगा। तब ही वो अपने काले जादू का जाल सब जगह फैला पाएगी।
यह सुनकर नेहा घबरा गई, वो बाहर को भागी, उसने निखिल से कहा, तुरन्त निकलो।
वो लगभग निखिल को खींचती हुई सी बोली।
क्यों आखिर हुआ क्या है? संभारा को तो आ जाने दो।
मुझे कुछ नहीं लेना यहाँ से बस, अब तुम चलो।
नेहा, निखिल को खींचती हुई बाहर ले जा रही थी।
तभी उसकी नज़र, उस बुढ़िया पर पड़ी।
बुढ़िया, नेहा को देखते ही रोने लगी और उसकी तरफ हाथ जोड़कर उल्टा, उल्टा बोल रही थी।
नेहा को बड़ा अजीब लगा, पर वो निखिल के साथ बाहर आ गई।
आगे पढ़े दस्तक (भाग -3) में........
No comments:
Post a Comment
Thanks for reading!
Take a minute to share your point of view.
Your reflections and opinions matter. I would love to hear about your outlook :)
Be sure to check back again, as I make every possible effort to try and reply to your comments here.