दस्तक ( भाग -1) और दस्तक ( भाग -2) के आगे.....
दस्तक ( भाग -3)
जाओ तुम जल्दी से bike ले आओ, हम तुरंत निकलेंगे।
नेहा, तुम्हें हो क्या गया है?
और मेरा mobile और bike की key संभारा के पास हैं।
क्यों हैं, उसके पास? नेहा गुस्से से चिल्लाई।
अरे.... उसने कहा था कि bike की key और mobile जमा करने होंगे।
नेहा, बोली पता है मुझे लट्टू हो चुके हो तुम, वो अभी जो बोलेगी, वही करोगे तुम।
नेहा ने अपना mobile देखा, उसमें अभी भी recording चालू थी।
यह सोनू भी ना, ना जाने क्या setting कर दी है, phone cut करो और recording चालू।
अभी delete करती हूँ, नहीं तो बच्चों को हमारे झगड़े का पता चलेगा।
वो delete करती, उससे पहले ही निखिल ने phone ले लिया, ऐसा भी क्या record कर लिया।
उसने सुनना शुरू किया, उसमें संभारा की आवाज आ रही थी।
नेहा वो सुनकर खुश हो गई।
उसने तुरंत अपने phone से निखिल के phone पर call किया।
फोन संभारा ने उठाया।
नेहा ने संभारा से कहा, निखिल का mobile और key लेकर बाहर आओ।
संभारा ने देने से इंकार कर दिया। बोली सब मेरा है।
नेहा बोली, वो पुलिस में रिपोर्ट कर देगी।
संभारा बोली, यहाँ की पुलिस और सब उसका है, कोई नहीं सुनेगा तुम्हारी।
नेहा ने कुछ सोचते हुए, संभारा को recording सुना दी।
देख संभारा, तू बाहर आ रही है कि, मैं सब जोगावर को सब सुना दूं।
Recording सुनकर, संभारा बाहर आ गई।
यह ले, चाभी और फ़ोन। पर संभारा के यहाँ जिसने भी दस्तक दी है, वो उसकी इच्छा के बिना यहाँ से नहीं निकल सकता।
नेहा तो भड़की हुई ही थी, बोली तेरा सामना अभी तक नेहा से हुआ कहाँ था, मैं बाहर भी निकलूंगी और तू जेल भी जाएगी।
संभारा गुस्से से पैर पटकती हुई चली गई।
नेहा सोच रही थी, उसने संभारा को बोल तो दिया, पर यह होना बहुत मुश्किल है। क्योंकि वो जान चुकी थी कि संभारा बहुत ख़तरनाक औरत है।
उसने, निखिल से कहा, मैं जैसा बोलूं, तुम वैसा-वैसा ही करना।
अब तक निखिल भी समझ चुका था कि वो भयंकर मुसीबत में फंस चुके हैं।
दोनों bike में बैठकर जैसे आए थे, उसी direction में जाने की सोचने लगे।
पर वो direction उन्हें दिख ही नहीं रहा था।
तब उन्होंने सीधा चलना शुरू कर दिया।
सामने एक shop थी, नेहा shopkeeper से बोली, हमें जोगावर जी ने भेजा है, जगुना माई सा की तबीयत बहुत ख़राब हो गई है। बताओगे बाहर निकलने का रास्ता कौन सा है?
बाहर क्यों, वैध तो अंदर ही हैं।
अरे भाई, बात वैध के हाथ से निकल चुकी है, हम डॉक्टर को बुलाने जा रहे हैं, तुम्हें नहीं बताना हो तो चलो चलकर जोगावर जी को बोल दो, तुम्हें माई सा की कोई चिंता नहीं है।
दुकानदार, नेहा के confidence के साथ ऐसा कहने से और सबके नाम लेने से घबरा गया, उसने बाहर का रास्ता बता दिया।
निखिल ने बहुत तेज बाईक उसी तरफ बढ़ा दी।
नेहा, तुम्हें सबके नाम कैसे पता हैं?
मैंने संभारा के phone conversation में सुना था।
Good, intelligent हो।
निखिल bike को इतनी speed में रखना कि कुछ भी गड़बड़ी होने से तुम balance कर सको।
क्यों?
कुछ नहीं, जो कहा है, बस उसका ध्यान रखना।
Ok.
नेहा को उस दुकानदार पर भरोसा नहीं था।
वो बराबर ज़मीन देखती चल रही थी।
आगे जमीन कुछ soft और गीली सी लग रही थी।
रुक जाओ, निखिल हमें गलत रास्ता बताया गया है।
क्या कह रही हो?
कुछ तो गड़बड़ लग रही है, वो shopkeeper कहीं संभारा का आदमी तो नहीं था।
उसने bike से उतर कर एक पत्थर उठा कर थोड़ी दूर फेंका, उसका शक सही था। आगे गहरी दलदल थी।
निखिल यह देखकर बहुत बुरी तरह सहम गया, हे भगवान...... नेहा मैंने तुम्हें कहाँ फंसा दिया?
आगे पढें दस्तक (भाग -4) में........
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