बारह मासी होने वाली एकादशी में देव उठनी एकादशी व देवशयनी एकादशी का बहुत महत्व है। देव उठनी एकादशी के विषय में तो लिख चुके हैं।
आज देवशयनी एकादशी या देवसोनी एकादशी है, तो सोचा आज दूसरी बड़ी एकादशी की विशेषता को उकेरा जाए...
आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवशयनी या हरिशयनी एकादशी कहते हैं। इस साल देवशयनी एकादशी 29 जून 2023 को है. इस दिन श्रीहरि विष्णु की पूजा करने से कई गुना अधिक फल की प्राप्ति होती है।
देवशयनी एकादशी के दिन से ही जगत के पालनहार भगवान विष्णु का निद्राकाल शुरू हो जाता है, यानी इसी दिन से चतुर्मास की शुरुआत होती है।
चतुर्मास शुरू होने के बाद से सारे शुभ और मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाती है।
आइए जाने, क्या है देवशयनी एकादशी और चातुर्मास, उसका महत्व, मुहूर्त उपाय और इसके नियम
देवशयनी एकादशी
जगत के पालनहार श्री हरि विष्णु जी, चार माह के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं, इस दिन तिथि के अनुसार एकादशी होती है, इसलिए ही इसे देवशयनी एकादशी कहा जाता है।
चतुर्मास
श्री हरि विष्णु जी की योगनिद्रा देवशयनी एकादशी से प्रारम्भ होकर देव उठनी एकादशी तक रहती है। जिसमें चार माह की अवधि रहती है, इसलिए ही इसे चतुर्मास कहा जाता है
श्री हरि विष्णु जी, देवउठनी एकादशी को योग निद्रा से बाहर आते हैं, तब चातुर्मास का समापन होता है।
योग निद्रा से कब जागेंगे देव
इस बार देवउठनी एकादशी 23 नवंबर को है। इस तरह से चातुर्मास 30 जून से लगेगा और 23 नवंबर को खत्म हो जाएगा।
पर इस बार श्रावण पुरुषोत्तम मास होने की वजह से दो माह तक है, इसलिए चातुर्मास की अवधि पांच माह होगी।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, देवशयनी एकादशी से देवोत्थान एकादशी तक भगवान विष्णु क्षीरसागर में शेषनाग पर विश्राम करते हैं।
इन चार महीनों में सभी मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाती है। हिंदू धर्म में चातुर्मास का बहुत अधिक महत्व माना जाता है. चातुर्मास की शुरुआत आषाढ़ माह से शुरू होती है और कार्तिक की एकादशी के दिन खत्म होते हैं।
चातुर्मास में कौन से कार्य हैं वर्जित
इस दौरान मुंडन, उपनयन संस्कार, विवाह इत्यादि जैसे महत्वपूर्ण मांगलिक कार्य रोक दिए जाते हैं।
देवशयनी एकादशी का महत्व
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि देवशयनी एकादशी का विशेष महत्व होता हैं. देवशयनी एकादशी भगवान विष्णु के आराम का समय है, यानी इस दिन से भगवान विष्णु चार महीने के लिए शयन करने के लिए चले जाते हैं।
मान्यता है कि भगवान विष्णु के शयन काल में मांगलिक कार्य करने से व्यक्ति को उनका आशीर्वाद नहीं प्राप्त होता है, जिस वजह से विघ्न उत्पन्न होने का खतरा बना रहता है।
शुभ कार्यों में देवी-देवताओं का आवाह्न किया जाता है। भगवान विष्णु योग निद्रा में होते हैं, इसलिए वह मांगलिक कार्यों में उपस्थित नहीं हो पाते हैं। जिसके कारण इन महीनों में मांगलिक कार्यों पर रोक होती है।
देवशयनी एकादशी पूजा मुहूर्त -
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि पंचांग के अनुसार, आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि का शुभारंभ 29 जून 2023 सुबह 03:18 मिनट पर होगा और इस तिथि का समापन 30 जून सुबह 02:42 मिनट पर हो जाएगा। पूजा तिथि के अनुसार, देवशयनी एकादशी व्रत गुरुवार 29 जून 2023 को रखा जाएगा. इस विशेष दिन पर रवि योग का निर्माण हो रहा है, जो सुबह 05:26 मिनट से दोपहर 04:30 मिनट तक रहेगा.
जब श्री हरि विष्णु जी, योगनिद्रा में चले जाते हैं तो, सृष्टि का पालन कैसे होता है, यह भी एक विषम प्रश्न है? क्या उस समय कोई भी देव हमारी रक्षार्थ नहीं होते हैं? ऐसा नहीं है, उन दिनों देवों के देव महादेव, सृष्टि के पालनकर्ता हो जाते हैं।
भगवान शिव करेंगे सृष्टि का संचालन
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु के विश्राम करने से सृष्टि का संचालन भगवान शिव करते हैं। इस दौरान सभी तरह के धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं, बस विवाह समेत अन्य मांगलिक कार्य नहीं होते हैं। इस दौरान भगवान का अधिक से अधिक ध्यान करना चाहिए।
देवशयनी एकादशी के साथ ही यह भी सिद्ध होता है कि श्री हरि विष्णु जी, अपने भक्तों को कितना अधिक स्नेह करते हैं। इन दिनों वह पाताल में रहते हैं, पर क्यों?
पाताल में रहते हैं श्री हरि
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि ग्रंथों के अनुसार, पाताल लोक के अधिपति व भगवान विष्णु जी के परम भक्त राजा बलि ने भगवान विष्णु से पाताल स्थिति अपने महल में रहने का वरदान मांगा था, इसलिए माना जाता है कि देवशयनी एकादशी से अगले 4 महीने तक भगवान विष्णु पाताल में राजा बलि के महल में निवास करते हैं। इसके अलावा अन्य मान्यताओं के अनुसार शिवजी महाशिवरात्रि तक और ब्रह्मा जी शिवरात्रि से देवशयनी एकादशी तक पाताल में निवास करते हैं।
चातुर्मास में तप और ध्यान का विशेष महत्त्व
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि चार्तुमास में संत एक ही स्थान पर रुककर तप और ध्यान करते हैं. चातुर्मास में यात्रा करने से यह बचते हैं, क्योंकि ये वर्षा ऋतु का समय रहता है, इस दौरान नदी-नाले उफान पर होते है तथा कई छोटे-छोटे कीट उत्पन्न होते हैं। इस समय में विहार करने से इन छोटे-छोटे कीटों को नुकसान होने की संभावना रहती है। इसी वजह से जैन धर्म में चातुर्मास में संत एक जगह रुककर तप करते हैं। चातुर्मास में भगवान विष्णु विश्राम करते हैं और सृष्टि का संचालन भगवान शिव करते हैं। देवउठनी एकादशी के बाद विष्णुजी फिर से सृष्टि का भार संभाल लेते हैं.
देवशयनी एकादशी से देव उठनी एकादशी तक महादेव जी सृष्टि का संचालन करते हैं, अतः इस पूरे काल में श्रीहरि विष्णु जी व महादेव जी दोनों की ही पूजा पाठ का आयोजन किया जाता है। जो इस प्रकार है-
भगवान विष्णु और शिव पूजा
ज्योतिषाचार्य ने बताया कि चातुर्मास में पूजा और ध्यान करने का विशेष महत्व है। देवशयनी एकादशी से देवप्रबोधनी एकादशी तक भगवान विष्णु विश्राम करते हैं। व इस दौरान शिवजी सृष्टि का संचालन करते हैं। इन दिनों में शिवजी और विष्णुजी की पूजा करनी चाहिए। चातुर्मास के दौरान भगवान विष्णु और शिवजी का अभिषेक करना चाहिए। विष्णुजी को तुलसी तो शिवजी को बिल्वपत्र चढ़ाने चाहिए।
साथ ही ऊँ विष्णवे नम: और ऊँ नम: शिवाय मंत्र का जाप करना चाहिए। इन दिनों में भागवत कथा सुनने का विशेष महत्व है। साथ ही जरूरतमंद लोगों को धन और अनाज का दान करना चाहिए।
जो लोग, जप तप ध्यान इत्यादि करते हैं, उनके चतुर्मास में कुछ नियम व परंपरा रहती है, जो इस प्रकार है
चातुर्मास की परंपरा
सावन से लेकर कार्तिक तक चलने वाले चातुर्मास में नियम-संयम से रहने का विधान बताया गया है। इन दिनों में सुबह जल्दी उठकर योग, ध्यान और प्राणायाम किया जाता है। तामसिक भोजन नहीं करते और दिन में नहीं सोते नहीं हैं। इन चार महीनों में रामायण, गीता और भागवत पुराण जैसे धार्मिक ग्रंथ पढ़ने चाहिए। भगवान शिव और विष्णुजी का अभिषेक करना चाहिए। पितरों के लिए श्राद्ध और देवी की उपासना करनी चाहिए, जरूरतमंद लोगों की सेवा करें।
आप सभी को देवशयनी एकादशी की हार्दिक शुभकामनाएं, श्रीहरि विष्णु जी व महादेव जी की कृपा दृष्टि सब पर बनी रहे 🙏🏻🙏🏻
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