माँ का साथ (भाग-3) के आगे...
माँ का साथ (भाग -4)
सच! रंजना दी..., आशना खुशी से झूम उठी, आज का दिन मेरी जिंदगी का सबसे खूबसूरत दिन है, और आप मेरे लिए फरिश्ता... आप बताइए ना मुझे, मैं आपकी ताउम्र शुक्रगुजार रहूंगी।
ठीक है तो सुनो...
पर उसके पहले यह सुन लो, जिसे मैं गलती कह रही थी...
हाँ, वो क्या था, आशना ने सोचते हुए पूछा
मेरे सास-ससुर दोनों ही अपने बेटे को बहुत प्यार करते हैं और मुझे भी... इसलिए उन लोगों की जिंदगी का मकसद हम दोनों थे। अतः उनकी सोच का दायरा हम तक सीमित था।
वो कुछ भी हम लोगों से परे सोचते ही नहीं थे। क्या खाना है, क्या पहनना है, कहां घूमने चले, सब कुछ... मेरे ससुर बहुत शौकीन व्यक्ति हैं, तो खाना, पहनना, ओढ़ना, घूमना-फिरना, मौज मस्ती बहुत होती थी।
वो सब तो प्रेम में करते थे, पर मुझे बंधन लगता था। और बस यही कारण था, मेरा उनसे अलग होने का...
मैंने राज से अलग होने की बात कही, वो समझ नहीं पाए कि आखिर वजह क्या है। जब उन्होंने अपने मम्मी पापा से कहा तो उनका दिल टूट गया।
सबने मुझसे साथ रहने को कहा, पर मुझ पर अलग होने की सनक सवार थी। रोज़-रोज़ के मेरे तुनकने से पापा जी ने हमें अपना यह घर रहने को दे दिया।
पर जब मैं यहां आयी तो, कुछ दिन तो सुनहरे निकल गये, जब तक राज की छुट्टी थी। उसके बाद मैं घर में बिल्कुल अकेली रह गई, दीवारों से बातें करने के लिए, क्योंकि राज सुबह 8 बजे निकलते, तो रात 9- 10 बजे से पहले आते नहीं थे। फिर थके इतने होते थे कि खा पीकर तुरंत सो जाते थे।
मेरे पास अपना घर था, नौकर-चाकर थे, गाड़ी थी, आजादी थी। फिर भी मैं खुश नहीं थी।
क्योंकि मेरे सुख-दुख को सुनने-बांटने वाला कोई था ही नहीं, मेरा कुछ खाने का मन हो तो खुद बनाओ, लाड़-लड़ाने वाला कोई नहीं था।
मुझे दुःख हो तो आंसू पोंछने वाला कोई नहीं था। कभी घर से बाहर जाते थे, तो इंतज़ार करने वाला कोई नहीं था, हमारे घर लौटने पर दरवाजा खोलने वाला कोई नहीं था, खुद ही दरवाज़ा खोलना होता था।
हमने अपने सारे programs, अपने नौकर-चाकर के आने के समय से बनाने पड़ते थे। उनके आने जाने से हमारा हर program बंधा रहता।
जब से बच्चे हुए, तब से तो रही सही आजादी, पूरी तरह से खत्म हो गई।
In short, मुझे समझ आने लगा था कि पहले प्रेम था और अब बन्धन...
तो आप वापस अपने ससुराल क्यों नहीं लौट गयी?
बहुत दिनों तक तो हिम्मत ही नहीं जुटा पाई कि किस मुंह से कहूं? मैंने ही तो अलग होने का हंगामा काटा था। बच्चों के होने के बाद अलग रहना बिल्कुल बर्दाश्त नहीं हो रहा था।
तो नहीं रहा गया तो राज से कहा तो, पापा जी ने कहा कि बहुत मुश्किल से प्रेम और मोह के बंधन से मुक्त होकर जीना शुरू किया है।
इस बार तो जी गये, पर दुबारा साथ रहने के बाद, अगर फिर किसी भी कारण से अलग हुए तो नहीं जी पाएंगे, क्योंकि इस बार बंधन पोता पोती का भी होगा।
अब ऐसे ही रहो आजादी से, जब बहुत याद आए तो मिल लिया करेंगे।
इसलिए घर की यह एक दीवार मेरे अस्तित्व और पहचान की है, जिसमें मेरे सास-ससुर व मम्मी पापा की फोटो लगी है। और मेरी गलती यह है कि जो जगह मैंने दीवार को दी, वो दिल को नहीं दे पाई। वरना मेरा घर प्यार और आशीर्वाद से भरा होता।
हम लोगों को मां-पापा का प्यार बंधन नहीं लगता है, उनसे अलग होने की कल्पना नहीं करते हैं तो सास-ससुर का प्यार बंधन क्यों लगता है? उनसे अलग होने की जद्दोजहद क्यों?
तभी कार्तिक का phone आ गया कि मैं 5 minute में पहुंच रहा हूं, तुम कोई चूड़ी या कड़ा पहन कर आई हो?
हां, पर क्यों?
Jeweler की shop पर तुम्हारे हाथ का size छोड़ देंगे, जिससे तुम्हारे लिए सोने के कंगन बन जाए... माँ ने बताया तो था, तुम भूल गयी?
Ok, तुम रंजना दी के घर ही आ जाना, मैं वहीं हूं...
कार्तिक से बात कर के आशना को अपनी भूल का एहसास हुआ कि माँ उस पर प्यार लुटा रही है और वो उनके एकलौते बेटे, उनकी जीवन भर की जमा पूंजी को छीन ले रही थी।
आशना ने कहा, रंजना दी आपकी सारी बातें ने मेरा मन बदल दिया। सच में सास-ससुर के प्यार को हम कभी देख ही नहीं पाते हैं।
मैंने मन बना लिया है कि अब मैं अपनी मां से कभी अलग नहीं होंगी। माँ का साथ ही सुखद जीवन है...
सच है, जो गलती मैंने की, वो तुम मत करना, माँ का साथ रहेगा तो तुम्हारा घर प्यार और आशीर्वाद से सदैव भरा रहेगा...
तभी कार्तिक आ गया, उसके आने के बाद आशना ने कहा, तुम सीधे घर चलो, माँ इंतजार कर रही होंगी।
फिर कंगन?...
मुझे नहीं चाहिए, मुझे उससे बड़ा खजाना मिल गया है, माँ के साथ का...
कार्तिक, आशना के बदले रुप से बहुत खुश था कि अब जिंदगी भर माँ का साथ रहेगा, उसने बहुत कृतार्थ भरी नजरों से रंजना से विदाई ली, वो समझ रहा था कि इस सोच के पीछे रंजना दी ही है।
रंजना भी खुश थी कि आज उसकी वो गलती कुछ हद तक तो माफ़ हो गई, उस कारण से एक घर तो टूटने से बच जाएगा, एक माँ का साथ तो उसके लाडलो को जिंदगी भर मिलेगा...
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