Saturday 20 July 2024

Story of Life : बंटवारा (भाग-2)

बंटवारा (भाग-1) के आगे…

बंटवारा (भाग-2)

पर तुम्हारे दो बेटे-बहू तो बाहर रहते हैं, फिर उनका कमरा क्यों? उनके लिए भी कमरा fix है?...

हां, बिल्कुल... 

पर क्यों? उसकी क्या जरूरत है?...

देख अखिला, इसी समझदारी की बात कर रही थी मैं..

मतलब? मैं कुछ समझी नहीं...

देख अखिला, जब बच्चे चार हैं तो हक़ भी चारों का ही है। और एक बात सुन, जब कोई घर में आता है, तब उसे रिश्तों की गर्माहट के साथ ही अपनी एक space भी चाहिए होती है। 

और जब उनका अपना कमरा रहता है, जिसमें उनकी अलमारी, AC सब होते हैं, तो उन्हें उससे एक जुड़ाव महसूस होता है। उन्हें लगता है कि आज भी यह घर उनका है। वो यहां पर guest बनकर नहीं आते हैं, बल्कि अपने घर में आते हैं। 

हर बार एक ही कमरे में अपने comfort zone में ठहरने से एक bond बन जाता है, जो उन्हें घर आने के लिए खींचती भी है।

साथ ही इसमें जो दूसरी छिपी हुई समझदारी है, वो यह है कि यहां रहने वाले बेटे-बहू को भी शुरू से यह एहसास होता है कि घर में सब का बराबर से हिस्सा है और जो जिसको मिला है, बस उतना ही उसका है। वह दूसरे के हिस्से में हस्तक्षेप ना करें।

साथ ही हमने हमारे पास जो भी धन-दौलत, रुपया- पैसा, गहना, ज़मीन, सामान आदि हैं, वो भी हमने सबमें बराबर से बांटा है, पर उसके साथ ही यह भी clause लगाया है कि वो उन्हें आज से 25 साल बाद ही मिलेगा, चाहें हम रहें या ना रहें। 

पर उसके साथ यह भी जोड़ दिया है कि अगर मुझे या मेरे पति को किसी भी तरह से उन लोगों की तरफ से दुःख मिला, तो हम उस बेटे-बहू का हिस्सा दान कर देंगे।

यार तेरी कुछ बातें समझ नहीं आई कि 25 साल बाद क्यों? 

लोग या तो तभी दे देते हैं या कहते हैं कि मरने के बाद, पर तुम तो...

सुन अखिला, तुरंत दे देने से बच्चे, मां-पापा से अपनी जिम्मेदारी झाड़ लेते हैं और अगर मरने की बात कहो, तो मां-पापा के मरने का इंतजार करने लगते हैं और हम लोग ‌नहीं चाहते हैं कि दोनों में से कोई भी बात हो।

रही 25 साल वाली बात, तो आज 60 cross कर ली है, 25 साल तक रहेंगे, ऐसा बहुत मुश्किल है, इसलिए कहा है।

क्या दूर का सोचा है तुमने, अखिला ने सोचते हुए बोला...

पर नाराज़ होने पर जो हिस्सा दान करोगे, वो बाकी बेटों को क्यों नहीं बांट देते हो? घर का पैसा घर पर ही रहेगा..

क्योंकि हम नहीं चाहते हैं कि हिस्सा मिलने के लालच से सब एक दूसरे को नीचा दिखाएं और खुद को बेहतर, और ना ही उनमें जलन हो कि, कैसे ही यह चूके और हम सारा हिस्सा पा लें।

सबको मिलेगा उतना ही, जितना मिला है। एक बराबर, ना किसी को कम, ना किसी को ज़्यादा...

पर जितना मिला है, वो उतना भी तभी मिला रहेगा, जब वो प्रेम से रहेंगे, हमारी सेवा करेंगे, हमारी इच्छाओं का मान रखेंगे, साथ ही हमारे जीवित रहने तक हमारा सम्मान करेंगे, और कभी हमें अकेलेपन का एहसास भी नहीं होने देंगे। हम घर के अन्य सदस्यों की तरह समान समय देंगे।

देखो अखिला, बंटवारा तो इसमें भी है और वो बच्चों का हक भी है कि उन्हें अपने माता-पिता से धरोहर के रूप में उनके सामान, घर, रुपए-पैसे, गहना, कपड़ा आदि मिले…

इसमें भी सबको मिला है, बराबर का मिला है, पर साथ ही मिली है, घर से, परिवार से, दिल से जुड़ी हुई एक bonding भी, जो उन्हें हमेशा बांधे हुए है। क्योंकि यह बंटवारा नहीं है बल्कि हमारा प्यार और आशीर्वाद है, जो हमारी इच्छा से हुआ है।

जैसा तुम्हारे घर में सब कुछ लेकर ऊधम मच रहा है, उससे जो होगा, वो होगा बंटवारा, जिसमें होगी सबके मन में कड़वाहट और यह उनमें हमेशा के लिए दूरी ला देगा।

देना तो है ही, तो सोच-विचार या संकोच करें बिना, शांति पूर्वक समझदारी से काम लिया जाए, तो वह प्यार व अपनापन ही बढ़ता है।

प्रेमा, पहले तो तुम से बात की नहीं, पर अब अगर कुछ हो सकता है तो बता...

एक काम करो, तुम सारे बेटे-बहू को घर से बाहर निकाल दो।

क्या!

और बोल दो कि तीन महीने बाद आएं, तब तक तुम लोग सोचोगे और फिर निर्णय लोगे कि क्या करना है।

फिर जब वो आएं तो, तुम लोग खूब सोचकर, समझदारी से भरा निर्णय लेना, जिसमें सबको बराबर का हिस्सा देना। 

जो मुझ से बात हुई है, शायद उससे तुम्हें निर्णय लेने में आसानी हो...

बिल्कुल होगी, तुम सच में सही कहती हो, समझदारी से प्यार और आशीर्वाद बांट दो, तो फिर घर में बंटवारा नहीं होता है।

No comments:

Post a Comment

Thanks for reading!

Take a minute to share your point of view.
Your reflections and opinions matter. I would love to hear about your outlook :)

Be sure to check back again, as I make every possible effort to try and reply to your comments here.