Friday, 19 July 2024

Story of Life : बंटवारा (भाग-1)

बंटवारा (भाग-1)

अनिल और अखिला का घर टूट रहा था। बरसों से सजाया घर तिनका-तिनका ढेर हो रहा था, और तोड़ने वाले कोई और नहीं अपने ही बच्चे थे।

दोनों के चार बच्चे थे, चारों में बहुत प्रेम था। फिर ना जाने क्या हुआ कि दरार सी पड़ती चली गई। चारों को ही अपना हिस्सा चाहिए था। 

ऐसे में अखिला को अपनी सखी प्रेमा की याद आई, उसके भी चार बेटे थे, पर सबमें बड़ा सामंजस्य था। कहीं कोई मनमुटाव नहीं। 

अखिला ने प्रेमा को फोन घनघना दिया। 

दोपहर का समय था, तो प्रेमा भी free थी। उसने फोन उठा लिया।

कैसी है प्रेमा? तेरे यहां सब कैसा चल रहा है? सब प्रेम से ही रह रहे हैं?

थम जा अखिला... 

ऐसा भी क्या हो गया है, जो तुम इतनी बैचेन हो उठी हो?

प्रेमा ने जैसे ही यह कहा, अखिला की अश्रु धारा बह निकली, कुछ ठीक नहीं है, मेरा घर तिनका-तिनका टूट रहा है...

ना जाने कहां भूल हो गई, कोई सुनने को तैयार नहीं है।

देख अखिला, वैसे यह कोई बड़ी बात नहीं है, हर घर की कहानी है और देखा जाए तो हक़ भी है, बच्चों को उनका हिस्सा मिलना ही चाहिए। 

कैसी बात कर रही हो प्रेमा? घर टूट जाने दूं?

कुछ उपाय भी नहीं है...

उपाय नहीं है तो तुम्हारा घर कैसे एक बचा हुआ है।

उसके लिए‌ समझदारी, आरंभ से करनी होती है, प्रेमा ने सधे हुए अंदाज में कहा।

जैसे, अखिला ने कौतूहल से भरकर पूछा।

अखिला, मेरे यहां 6 कमरे हैं। अब हम दोनों का काम तो बस एक कमरे में सीमित हो कर रह गया है।

एक कमरा drawing room बना दिया है।

बाकी के चार कमरों में जैसे-जैसे बेटों की शादी होती गई, हम उनके लिए room ready कराते गए।

Ready, means?

अरे जिस बहू-बेटे को जैसा रंग रोगन पसंद था, वैसा करा दिया, AC, fitting, etc.

अच्छा, अच्छा... 

पर तुम्हारे तो दो बेटे-बहू बाहर रहते हैं, फिर उनका कमरा क्यों? उनके लिए भी कमरा fix है?


आगे पढें, बंटवारा (भाग-2) में…

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