आज हिन्दी दिवस के उपलक्ष्य में हिंदी के विषय मे कुछ महापुरुषों के द्वारा कहे हुए कथन साझा कर रहे हैं।
देश की आजादी के साथ ही, हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार किया जाए, यह प्रस्ताव भी पारित किया गया था।
परन्तु इस प्रस्ताव के साथ ही यह भी हुआ कि कुछ राज्य, जो कि हिंदी भाषी नहीं थे, वो इसके लिए, किसी भी तरह से तैयार नहीं थे।
तो यह निर्धारित किया गया कि, हिंदी को फिलहाल राजभाषा में ही रखा जाए और कालान्तर में उसे राष्ट्रभाषा का दर्जा प्रदान कर दिया जाएगा। पर यह अंतहीन इंतज़ार ख़त्म ही नहीं हो रहा है, जिसके कारण आज तक भारत की कोई राष्ट्रभाषा नहीं है। ऊपर से हमारे आधुनिक बनने की होड़, एक विदेशी भाषा, अंग्रेजी को वो दर्जा देती जा रही है।
बस हिंदी दिवस के अलावा और कोई दिन नहीं होता है, जब हिंदी को विशेष समझा जाए।
जबकि हिंदी के लिए महापुरुषों के कथन, सिर-माथे वाले हैं, आइए उन्हें जाने, शायद उसके बाद आप के मन में भी हिंदी के लिए वो सम्मान जग जाए और हिंदी को न्याय मिल जाए और राष्ट्रभाषा होने का सम्मान भी...
हिंदी के लिए महापुरुष के कथन
हिंदी किसी के मिटाने से मिट नहीं सकती।
~चन्द्रबली पाण्डेय
है भव्य भारत ही हमारी मातृभूमि हरी-भरी।
हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा और लिपि है नागरी॥
~मैथिलीशरण गुप्त
जिस भाषा में तुलसीदास जैसे कवि ने कविता की हो, वह अवश्य ही पवित्र है और उसके सामने कोई भाषा नहीं ठहर सकती।
~महात्मा गाँधी
हिंदी भारतवर्ष के हृदय-देश स्थित करोड़ों नर-नारियों के हृदय और मस्तिष्क को खुराक देने वाली भाषा है।
~हज़ारीप्रसाद द्विवेदी
हिंदी को गंगा नहीं बल्कि समुद्र बनना होगा।
~विनोबा भावे
हिंदी के विरोध का कोई भी आन्दोलन राष्ट्र की प्रगति में बाधक है।
~सुभाष चन्द्र बोस
हिन्दी हमारे राष्ट्र की अभिव्यक्ति का सरलतम स्रोत है।
~सुमित्रानंदन पंत
आज पूरा विश्व हिंदी भाषा की शक्ति को पहचान रहा है।
~नरेंद्र मोदी
आप लोगों को लग रहा होगा कि भारत के इन महापुरुषों में मोदीजी का नाम कैसे आ गया। तो उस के लिए बस इतना ही कहना चाहेंगे, कि मोदीजी हमारे भारत देश के सफल और आदरणीय प्रधानमंत्री हैं, और वे हिन्दी और संस्कृत के विकास और उत्थान के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
उन्होंने NEP syllabus के माध्यम से हिंदी और संस्कृत को CBSE board के विद्यालयों में compulsory language कर दिया है, जिससे सिर्फ इन भाषाओं का ही नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और सम्पूर्ण देश का भी विकास हो रहा है।
क्योंकि जिस कूटनीति से अंग्रेजों ने education system के द्वारा हिन्दी, संस्कृत व भारतीय संस्कृति को destroy करना चाहा था, यह उसी का मुँहतोड़ जवाब है, और ऐसा करना अतिआवश्यक भी था।
धन्य हैं, यह सब महापुरुष और इनकी सोच....
आप भी इनकी तरह सोच रखें और हिंदी को विशेष सम्मान दें, उसका अधिकाधिक उपयोग करें, जिससे हिंदी को उसका सही स्थान मिल सके। और भारत को उसकी राष्ट्रभाषा...
जय हिन्दी, जय हिन्द 🇮🇳
No comments:
Post a Comment
Thanks for reading!
Take a minute to share your point of view.
Your reflections and opinions matter. I would love to hear about your outlook :)
Be sure to check back again, as I make every possible effort to try and reply to your comments here.