नयी सोच
रागिनी विवाह योग्य
हो चली थी,
पूरा परिवार एक अच्छे रिश्ते की तलाश में था। यही हाल सुजय के घर का भी था। वहाँ
भी सब सुजय के लिए सुयोग्य लड़की ढूंढ रहे थे। वो कहते हैं ना, भगवान ऊपर से जोड़ी बना कर
भेजता है। दोनों को ही जानने वाली मधु बुआ ने दोनों के घर बात चलायी। और दोनों
परिवार को अपने घर मिलने के लिये बुलवा लिया।
सुजय ने सबको
बता दिया था, कि वो मिल कर, बात करके ही अपने
जीवन साथी का चुनाव करेगा। सुजय के घर में सब बोले, ठीक है, जो चाहते हो, वही होगा, पर फिर वो जैसी भी हो वो, उसका जिम्मेदार तुम किसी को ना ठहरना।
हाँ हाँ,
मैं ही जिम्मेदार रहूँगा,
सुजय ने बड़े आत्मविश्वास से भरकर बोल दिया।
रागिनी को जब पता चला
कि लड़का अकेले मिल कर बात करेगा,
तो वो घबराने लगी। उसके भैया बोले, क्यों इतना घबरा रही हो, कॉलेज में भी लड़के हैं ना।
अरे हाँ हैं, घबराई सी वो बोली
तो क्या बस वैसे ही
यहाँ भी बात कर लेना।
भैया, आप समझते नहीं हैं, वहाँ तो केवल पढ़ाई से related ही बात होती है। अब यहाँ पता नहीं कौन सी बात होगी? यूं किसी का देखने आना तो पहली बार
होगा,
और अगर reject कर
दिया तो?
ओ छुटकी, कोई मेरी बहन को reject नहीं कर सकता। और तुम
घबराओ नहीं,
मैं मिल चुका हूँ,
लड़का संस्कारी है। सब ठीक ही रहेगा।
सुजय, अपनी माँ, दीदी, भैया-भाभी सब के साथ आया, तब वो बहुत ही साधारण वेषभूषा में आया
था। उसको देखकर रागिनी को उसके प्रति कोई भी खिंचाव नहीं हुआ। कुछ देर
बाद सुजय, अलग
से बात करने के लिए दूसरे room में चला गया। रागिनी को भी दीदी उस room में ही
ले गईं।
रागिनी को बैठा
कर दीदी जाने लगी तो, उसने उनका कस के हाथ थाम
लिया। दीदी बोली, छुटकी बैठ, मैं अभी आई, पर दीदी नहीं आयीं।
रागिनी बहुत ज्यादा
घबरा रही थी, उसके दिमाग में ना जाने क्या क्या चल
रहा था। तभी सुजय बोला,
मेरा नाम तो आपको पता ही होगा।
जी, रागिनी धीरे से घबराते, शरमाते हुए बोली ।
अच्छा बात शुरू करने
से पहले मैं आपको ये बता देना चाहता हूँ, कि मैं आपको देखने नहीं आया हूँ। आपसे मिलने आया हूँ। और हाँ
दूसरी बात,
ऐसा नहीं है कि मैं ही आपको reject कर
सकता हूँ। अगर मैं आपको अच्छा ना लगूँ, तो आप भी मुझे reject कर सकती हैं।
सुजय की ऐसी बातें
सुनकर,
रागिनी की सारी घबराहट दूर हो गयी। वो कभी सोच ही नहीं सकती थी, कि कोई लड़का भी इस सोच का हो सकता है।
उसके बाद दोनों ने बहुत सारी बात की। जिससे दोनों ही इस नतीजे पर पहुँच गए, कि सरलता, ईमानदारी, और परिवार के प्रति दोनों की सोच एक सी
ही थी। दोनों बाहर आ गए। और अपने अपने घर चले गए। वहाँ जब रागिनी ने सुजय के विचार
सबको बताए। तो सभी सुजय की तारीफ करते हुए बोलने
लगे अरे वाह,
अगर ऐसी सोच वाले सब हो जाएँ, तो शायद ये देखने-दिखाने का चलन ही
बंद हो जाए। और एक दूसरे से मिलने की नयी रीति शुरू हो जाए, जिसमे लड़का-लड़की दोनों को चुनाव करने का समान अधिकार
मिलेगा।
दोनों का विवाह
हो गया।
एक नई सोच ही उच्च स्तर के
समाज का गठन करती है