सोने का पिंजरा
गौरी, अपने नाम सी बेहद गोरी, सुंदर और चुलबुली लड़की थी। उसके गाँव
में उस सा सुंदर कोई भी नहीं था। उसे अपने रूप का बेहद घमंड भी था। जितनी वो सुंदर
थी,
उतनी ही नकचड़ी भी थी। उसके
पैर तो कभी एक जगह टिकते ही नहीं थे। कभी नदी में, कभी आम के पेड़ पे, तो कभी किसी के खेत में, उछलकूद करती ही मिलती। और
शाम में दोस्तों के साथ कभी चाट-पकौड़ी, कभी नाटकनौटंकी में चल
देती। कुम्हार की बेटी थी, पर उसके सपनों का तो क्या कहना, रानी कैसे बन जाए बस यही दिन रात सोचा
करती।
दोस्त, रिश्तेदार उसे heroine कहा करते थे, तो वो भी सोचा करती कि, क्यूँ ना फिल्मों के लिए जाया जाए। पर उसके पिता इसके
लिए बिलकुल तैयार नहीं थे, फिर मुंबई दूर भी बहुत
था।
पर कभी कभी
भगवान भी मेहरबान हो जाते हैं, शायद यही कारण
था, कि
एक hit
director ने अपनी shooting
की location
में उसी के गाँव को चुन लिया।
सभी बड़े प्रसन्न थे, कि गाँव में
shooting होगी।
जब shooting
चल रही थी। तब गौरी, एक भी दिन बिना देरी किए आकर, सबसे आगे खड़ी होती, और heroine
की नकल किया करती। अपनी
सुन्दरता और नौटंकी के कारण director
की भी नज़र उस पर पड़ गयी थी।
गाँव के हवा-पानी में
heroine की तबीयत खराब होने लगी, तो उसने director से गाँव में shooting करने को मना कर दिया।
Heroine इस फिल्म में नई थी, और शायद गौरी की किस्मत भी बुलंदी पर
थी। director
ने heroine को निकाल दिया और role गौरी को offer किया। गौरी को भी रोज
रोज सुनकर dialogue याद
हो गए थे। उसने तुरन्त एक ही take में seen ok कर दिया।
Director
गौरी के पिता के पास आ गए, कि वो उसे acting कर लेने दें। पर उसके पिता नहीं मान
रहे थे। जब director
बोले वो गौरी को 75 लाख देंगे। तो उसके पिता और गौरी दोनों कुछ देर के लिए सुन्न
पड़ गए। पर फिर उसके पिता तैयार हो गए।
गौरी की shooting का एक हिस्सा खत्म हो गया था। बाकी भाग
के लिए उन्हें मुंबई जाना था। गौरी बहुत खुश थी, वो अपने सपनों की नगरी जा रही थी। गौरी
ने director
से कहा, उसके पिता भी चलेंगे। Director ने कोई आपत्ति नहीं उठाई। सब
लोग मुंबई आ गए।
मुंबई में shooting शुरू हो
गयी, बहुत
कड़ी मेहनत थी,
दिन रात का कोई ठिकाना नहीं था। मौसम के थपेड़े भी झेलने होते।
और साथ ही शुरू हो गयी
गौरी पर पाबंदी। वो कहीं अकेले नहीं
जा सकती थी। चाट-पकौड़ी मना हो गयी, केवल diet food ही खाने की हिदायत
थी, और
मुंबई के समुद्र में भी
जाने को नहीं मिल रहा था।
इन सब बातों
से गौरी तंग हो गयी। आज उसे समझ आ रहा था, कि जिसे वो ऐश कि
ज़िंदगी समझ रही थी, वो तो सोने का पिंजरा
था। जहाँ सोने-चाँदी, एशो-आराम के
साधन की तो कोई कमी नहीं थी। पर उनके लिए अपनी आज़ादी, अपनी पसंद, अपने लोग, सबसे दूरी हो गयी
थी। जिस गाँव से उसे बेहद लगाव था, कई महीनों से वो वहाँ जा तक नहीं पा रही
थी। उसके कोई दोस्त आते, तो उन्हें
मिलने नहीं दिया जाता, क्योंकि director नहीं
चाहते थे, कि फिल्म के release
होने से पहले फिल्म की story leak हो। उन्हें डर था, कहीं गौरी excitement
में अपने दोस्तों को film की story न बता दे।
उसने advance में पैसे ले लिये थे, जिससे वो
फिल्म ख़त्म होने तक नहीं निकल सकती थी। पर उसको अब हर दम इस सोने के पिंजरे से निकलने की लालसा
थी।
Bulandiyon tak pahunchne ke liye bahut tyaag karne padte hain... Good morale
ReplyDeleteThank you for your appreciation
Delete