करवा चौथ..सुहागन व्रत..Most
popular fast
लीजिये जी फिर से आ गया, सुहागनों में most popular करवा चौथ का व्रत।
सारे ही व्रतों में इसकी TRP सबसे ज्यादा high है।
अरे..... आप नाराज़ क्यों हो रहे हैं? TRP लिखने से।
इसके नज़ारे तो आपको बाज़ारों से लेकर मन तक सब जगह देखने को मिल जाएंगे।
बाज़ारों में कपड़ों की दुकान हो, jewellery की या सुहाग के सामानों की, सब जगह ladies की भीड़ दिखेगी। हर तरफ कर्वे सजे हुए
हैं, रंग बिरंगी सजी हुई चलनी हैं, सीकें
हैं, और पूजा के बाकी समान भी हैं।
जगह जगह मेहंदी वाले भी दिखाई दे रहे हैं। इस समय हाथों
में सजी मेहंदी और भर भर चूड़ियों वाले हाथ ही नज़र आएंगे।
बाज़ार की रौनक के बाद मन भी देख लें।
आप खुद ही सोचिए ना, सुहागनों
के व्रत तो, तीज और वट सावित्री (बरगदाई अमावस्या) भी हैं, पर इनको हर कोई नहीं करना चाहते हैं। जिसमें तीज तब भी लोग जानते हैं, पर बरगद अमावस्या का तो कितनों को नाम भी पता नहीं होगा।
क्यों कुछ गलत कहा हमने? नहीं ना!
पर बात जब करवा चौथ की आती है, तब तो
जिनके घर में रीति है, वह तो रखती हैं ही, जिनके घर रीति नहीं होती, वह भी शौक में रखने लगते
हैं।
किसी और की क्या बात करें, हमने खुद
शौक में ही रखना शुरू किया है। बचपन में नानी जी, मौसी जी, मामी जी लोगों को व्रत करते देखते, और चाँद के
निकलने की प्रतीक्षा के पल, यह सब हम बच्चों को भी कहीं ना
कहीं attract करता था।
बाकी रही सही कसर movies और serials
ने पूरी कर दी। इतने ज्यादा romantic way में
दिखाते हैं, कि कोई unromantic या धर्म
से डरने वाला ही इस व्रत को नहीं रखेगा।
पर भाई, इस व्रत को रखना कोई हँसी- खेल
नहीं है। व्रत तो लोग शौक में रखने को तैयार हो जाते हैं, पर
जब रखते हैं तो पता चलता है, भूख के साथ साथ जल का भी
परित्याग करना पड़ता है। तब पता चलता है, शौक में तो shock लग गया है।
जब दिन शुरू होता है, तब तो
बरदाश्त होता है, पर जैसे जैसे शाम होने लगती है, भूख, प्यास बरदाश्त से बाहर होने लगती है। और रात
होते होते तो बस, सारा romance गायब हो
जाता है। सब लोग बस ये ही जपने लगते हैं, कि जल्दी चंद्रमा
निकले और खाना-पीना शुरू किया जाए।
तो भाई पति के प्रेम में शुरू किया हुआ, व्रत अंत
तक आते आते खाने-पीने के जप पर समाप्त होता है।
कहीं कहीं ससुराल वाले, या किसी
के पति इस बात को लेकर बहुत सख्त रहते हैं, कि बिल्कुल भी जल
व फल आदि का सेवन नहीं होना है। फिर चाहे कोई व्रत रखने में बीमार ही क्यों ना पड़
जाए।
वैसे इस मामले में मेरे पति बिल्कुल उल्टे
हैं। वो पूरे समय इसी कोशिश में रहते हैं, कि मैं जल व फल आदि का सेवन कर लूँ।
हम सेवन नहीं करते हैं, क्योंकि
हम तो तीज का व्रत भी करते हैं, जो इससे भी कठिन हैं। यह
व्रत तो चंद्र दर्शन के साथ ही पूर्ण हो जाता है, जबकि तीज
तो अगले दिन सूर्य दर्शन के साथ पूर्ण होता है।
पर मैं अपने पिता और पति के कथन से पूर्णत:
सहमत हूँ, कि ईश्वर प्रेम, श्रद्धा और लगन देखते हैं, ना कि व्रत की कठिनता।
तो यदि आपके घर की स्त्री कठिनता के साथ
व्रत नहीं रख सकती है, तो उसे बाध्य मत कीजिये। यह व्रत आपसी प्रेम का प्रतीक है, इसको उसे प्रेम से ही रखने दें।
एक स्त्री भूखी प्यासी व्रत कर रही है, पर सोचती
यही रह रही है, कि चाँद निकले और कुछ खाऊँ। तो उसने आपके
प्रेम के लिए व्रत कब रखा? शुरू में तो वो आपकी लंबी उम्र की
कामना कर रही थी, पर अंत तक आते आते तो वो खाने-पीने का ही
जप करने लगी।
फिर ऐसी लंबी उम्र ले कर भी क्या करेंगे, जहाँ
जीवन-साथी स्वस्थ ना हो या साथ में ना हो।
जबकि दूसरी स्त्री जो, फल और जल
ग्रहण करके पूरे समय आपके प्रेम और चिरायु की कामना करती रही। क्योंकि उसका शरीर
भूख-प्यास के कष्ट से पीड़ित नहीं है, अतः उसका मन पूरी तरह
से पूजा-पाठ, श्रद्धा प्रेम और लगन में लीन है।
आप ही सोचिए, क्या उचित है?
कहने का तात्पर्य यह है कि बाध्यता के साथ
नहीं प्रेम के साथ उसे व्रत करने दीजिये, क्योंकि स्त्रियों में बेहद शक्ति
होती है। अगर आप उन्हें उनके अनुसार व्रत करने देंगे। तो जब तक उनका स्वास्थ्य उनका
साथ देगा, वो निर्जल और निराहार व्रत ही करेंगी, और बहुत प्रेम से भी करेंगी।
Good forcefully too koi bhi pojja nhi karne chaiye
ReplyDeleteThank you very much for your appreciation
DeleteGood thoughts 👌
ReplyDelete