आप सभी को योग दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ, आप सभी सुखी रहें, स्वस्थ रहें।
आज की यह कविता हिन्दी साहित्य में विशेष स्थान प्राप्त
इंदौर की उर्मिला मेहता जी की है।
इस कविता के माध्यम से उन्होंने ध्यान को ही सर्वोच्च माना है।
ध्यान
जिसे खोजती थी मैं सदा
तन मन औ' धन के योग से
क्या है लक्ष्य जीवन का
औ' ईश्वर किस लिए मौजूद है ?
अच्छाई क्या औ'बुराई क्या है,
हँसना रोना किसलिये
जब तक न थी इसकी समझ,
संसार ये निस्सार था
मानुष जनम पाकर भी
यह सार्थक नहीं हो पाया था ।
गुरु की कृपा आशीष से
आनंद की बरखा हुई
अपने ही ओजस मन को जैसे
जानने की तृषा हुई
देखकर मन में उजाला ,
तमस आप ही बह गया
आनंद की परिभाषा को ज्यों
नया रूप ही मिल गया
अब क्षुद्र तुच्छ सी बातों का
जैसे वजूद ही ना रहा
आनंद शांति और हँसी का
एक खजाना मिल गया
धन्यवाद तो क्या गुरु को,
शब्दों का बस खेल है
लक्ष्य-जीवन किया निश्चित
श्रेष्ठ पथ बस ध्यान है।
Disclaimer:
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सुंदर प्रस्तुति ।ध्यान जीवन की मूल भूत आवश्यकता है
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद
Deleteधन्यवाद उर्मिला जी 🙏🏻
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