जिन्दगी कैसी है, पहेली हाय!
एक पुराना गीत आज याद आ गया।
जिन्दगी कैसी है, पहेली हाय!.....
जब अपनी शांत रहने वाली, प्रेम से भरी मामी जी से हमेशा के लिए बिछोह हो गया। तो मन वेदना से भर गया।
सच, समझ ही नहीं आता है, कि जीवन क्या है?
ईश्वर के द्वारा हमें दिये हुए कर्तव्यों से भरे पल, जिनका हमें निर्वाह करना है और कर्तव्यों की पूर्ति के बाद एक दिन फिर ईश्वर में समा जाना है।
कहाँ से आए थे हम, ना जाने कितने रिश्तों से जुड़ने के लिए, और दिन अचानक सब कुछ छोड़ कर हमेशा के लिए ना जाने कहाँ चले जाते हैं।
ना आने से पहले का ठिकाना, ना जाने के बाद की मंजिल का पता।
फिर भी हम सब ना जाने क्या और कितना बेवजह जोड़ते जाते हैं।
क्यों है इतनी चिंता? घर की, पैसों की, भविष्य की, बच्चों की, समाज की, नाम की......
जबकि कर्म भी सभी निश्चित और फल भी।
सब जानते हैं कि सब नश्वर है, फिर भी सब को चिंता है।
कोई ऐसा है ही नहीं, जो ईश्वर को यह दिखा सके कि, मैं परे हूँ, दीन-दुनिया से।
कभी तो लगता है, जिंदगी क्या है, सब पता है, इसका प्रारम्भ जन्म है और अंत मृत्यु।
पर अगले ही पल लगता है, जिंदगी अनबुझ पहेली है, क्योंकि, ना आरम्भ का पता है, ना अंत का ठिकाना।
फिर किया क्या जाए?
शायद कर्तव्य निभाते हुए जीते जाएं, पर खुशी खुशी, साथ ही जो सत्य है उसे स्वीकार करते हुए।
वैसे भी जब सब निर्धारित है तो खुशी किसकी और ग़म भी किसका।
पर खुशी खुशी जीवन व्यतीत कर के, हम ईश्वर को प्रसन्न कर सकते हैं।
शाश्वत सत्य यही है कि अंततः सभी आवागमन से मुक्त हो कर ईश्वर में समा कर मोक्ष प्राप्त करते हैं।
Sundar abhivyakti...Geeta me niswarth karm bhav ka sidhant shayad isiliye diya gaya hai...Iske marm ko samjhna hi dhyey hai jeevan ka..sadhuvad
ReplyDeleteDhanyawad 🙏🏻
DeleteIshwar unki mahan aatma ko swayam me leen karke shanti pradan karen... Shradhanjali💐
ReplyDelete🙏🏻 🙏🏻 💐
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