काक आज तुम, कुछ बोलो
काक आज तुम, कुछ बोलो,
आँगन में मेरे आकर डोलो।
तुम्हारे पास होगी उनकी पाती,
जिनकी है, हमको याद सताती।।
जो कभी थे, साथ हमारे,
अब नहीं वो पास हमारे।
संपर्क ना सध रहा है,
जब से वो, परलोक सिधारे।।
क्या कहते हैं, वो हम से,
हम को यह बतलाओ ना।
हे काक, हमारी भी पाती,
पास उनके ले जाओ ना।।
आज भी एक एक अक्षर,
उनका हम नहीं भूले हैं।
जिनके कंधों चढ़ खेले,
और बाहों में झूले हैं।।
काश, काल ना,
इतना निष्ठुर होता।
स्वर्णिम स्वप्न हमारा,
ऐसे ना बिखरा होता।।
अब तो काक, तुमसे ही,
अपनी व्यथा बताते हैं।
उनके विरह में आज भी,
नैन, अश्रुपूरित हो जाते हैं।।
काक आज, तुम कुछ बोलो,
आँगन में मेरे आकर डोलो।।
तुम्हारे पास होगी उनकी पाती,
जिनकी है, हमको याद सताती।।
आज से पितृपक्ष आरम्भ हो गया है। यद्यपि सब दिन ही आपकी याद में जातें हैं, हम पर आप, अपना नेह और आशीर्वाद बरसाते हैं।
तथापि यह 15 दिन आप को ही समर्पित, आप सभी पूर्वजों को शत् शत् नमन 🙏🏻🕉️
काक पर लिखी सुंदर रचना बधाई अनीमिका जी।
ReplyDeleteआप के सराहनीय शब्दों के लिए अनेकानेक धन्यवाद 🙏❤️
Deleteइस कविता को लिखने की प्रेरणा हमें आप से ही मिली😊
आप के सराहनीय शब्दों का अनेकानेक धन्यवाद 🙏❤️
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