आज आप सब के साथ मुझे भोपाल के श्रेष्ठ कहानीकार मेज़र नितिन तिवारी जी की कहानी को साझा करते हुए अपार प्रसन्नता हो रही है।
हम सोचते हैं कि हमारे भारतीय सैनिक, सिर्फ सरहद पर युद्ध करना बखूबी जानते हैं, और यह बहुत सख्त स्वभाव के होते हैं।
पर हमारे भारतीय सैनानी भी हम सा ही दिल और हम जैसी ही योग्यता भी रखते हैं।
नितिन जी की लेखनी ने सिद्ध कर दिया है कि वो जितनी वीरता से सरहद पर युद्ध लड़ते हैं, उतने ही बखूबी लेखनी भी चला सकते हैं।
🌟सत्य घटना 🌟
कौआ बनने से बचा लिया
😢😢
जैसा कि हम सभी को विदित है कि,वर्तमान समय श्राद्ध पक्ष या सरल शब्दों में कहें तो कडवे दिन का चल रहा है। आज अचानक मुझे न जाने क्यों उसकी छवि मेरी आँखों के सामने आकर व उसके द्वारा कहे कथनों ने मेरी आँखों को नम कर दिया।और न चाहते हुए भी मेरी आँखों से अश्रु धारा प्रवाहित होने लगी।जिसको देखकर मेरे तमाम साथियों ने जो कि उस समय हम सभी अपने कार्यलय में बैठे अपना अपना कार्य कर रहे थे। उन्होंने मेरा हाल देखकर सभी सहकर्मी हतप्रभ रह गये ,व कारण जानने की कोशिश करने लगे की अचानक तिवारी जी को हो क्या गया?
मैंने अपने आप को नोर्मल करते हुए बताया कि, यार उक्त घटना जो कि न तो काल्पनिक हैं,और न ही किसी अन्य पात्रों के ऊपर घटित है। यह हादसा मेरे व मेरे लंगोटिया यार के साथ सन् 2016 में सितम्बर माह में हुआ।
मै जब अपनी छ:वर्ष की आयु में बीना से भोपाल शिफ्ट हुआ तो सबसे पहले मेरी माँ एंव मामाजी ने माँ के कार्यलय के नजदीक लगभग दो कि.मी.की दूरी पर उसका ही घर जो कि दो मंजिला का था। जिसमें उसके माता पिता और वो नीचे रहते थे और ऊपर वाले हिस्से को किराये पर दे देते थे। तो माँ ने उस ऊपर वाले हिस्से को किराये से ले लिया,और हम सब उसी में रहने लगे।
समय के पहिये के साथ हम सभी घूमते हुए, न जाने कब एक दूसरे के इतने करीब आ गये कि, उठने~बैठने सोने,खाने, पढने लिखने, खेलने~कूदने इत्यादि समस्त कार्य हम दोनों के एक साथ व एक जैसे ही होते थे और सबसे बढ़िया बात ये रही कि उसके माता पिता और मेरी माँ एवं मामाजी का सपोर्ट हम दोनों के ऊपर बराबर का होता था।चूंकि हम दोनों हम उम्र के थे। तो एक साथ एक ही स्कूल में, व एक ही कक्षा में और एक ही सेक्सन में कक्षा पहली से बारवीं तक रहें।और तो और कालेज मे भी तीन साल तक साथ रहें।
वो मेरे जीवन का शायद पहला और आखरी शख्स ही था। जिसको स्कूल में ध्रुव के नाम से और घर में शेंकी के नाम से जानते थे। हम दोनों की एक दाँत काटी रोटी थी। यदि किसी दूसरे से लडना तो साथ लडना,जो भी करना तो साथ ही करना अब चाहे वो उचित कार्य हो या अनुचित कार्य हो, किंतु कुछ भी व कैसा भी कार्य करके हम दोनों की खासियत यह थी कि बाद में घर वालो के द्वारा मिलने वाले फल(कुटाई) की चिंता न वो करता था और न ही मै। यदि घर वाले चाहे मेरे हों या उसके कूटते थे तो दोनों को ही, और यदि शाबाशी मिलती तो भी दोनों को ही।और शाबाशी के रूप में हम दोनों को टीबी मे विडियो गेम एक घंटे खेलने की खुली आजादी मिल जाया करती थी चूंकि हम दोनों का फेवरेट मारियो गेम था। 😁😁😁
समय का पहिया चलते चलते अब शायद कुछ लडखडाने की कगार तक आ पहुँचा था ,शायद हम लोगों की किस्मत में यही तक का साथ था। समय के साथ बढे हुए ,अब हम दोनों की चुनौती अपने अपने पैरों पर खड़े होने की थी। तो हम दोनों ने सोचा कि नौकरी भी हम लोगो की ऐसी लगे कि साथ ही रहें।
पर हम जो सोचते हैं, अक्सर ऐसा बहुत ही कम होता है। या होता ही नहीं है।
हमारे साथ भी ऐसा ही कुछ हुआ। कालेज में टेलीकॉम कंपनी का केम्पस आया,और उसको चयनित कर लिया गया और मुझे वेटिंग मे डाल दिया गया। जिसके कारण मुझे और उसको एक दूसरे से न चाहते हुए भी दूर होना पड़ा, फिर भी मैंने और उसने हिम्मत न हारी, और हरसंभव अपनी प्लानिंग के अनुसार रेल्वे मे,और अनेक प्रकार की राज्यस्तरीय शासन की सेवा के लिए दोनों साथ में फार्म डालते रहे। किंतु परिणाम हमारे पक्ष में न निकल सका। फिर अचानक बिलासपुर में भारतीय सेना मे हम दोनों ने एक साथ भर्ती देखी कुछ हद तक हम दोनों साथ रहे किंतु विधाता ने हम लोगो की किस्मत में कुछ और ही लिखा था सो कुछ न हुआ।और उसको मेडिकल में अनफिट कर दिया गया।और मुझे भारतीय सेना मे, सी.टी./डी.वी.आर. के पद पर चयनित कर लिया गया। जिसके कारण मुझे दु:ख ज्यादा और हर्ष बहुत कम हुआ । किंतु समय की धारा के साथ हम दोनों ने बहते हुए अपने अपने प्रोफेशन को ऊपर वाले की मर्जी मानकर चुन लिया।😔
समय का चक्र चलता रहा, न चाहते हुए भी हम एक दूसरे से दूर हो गये।उपर वाला भी हम दोनों के कढ़े इम्तिहान लेता रहा जब कभी मेरा छुट्टी पर घर आना होता तो वो न आ पाता,और जब वो आता तो मै न आ पाता। इस तरह कई वर्षों तक हम लोगों का मिलना न हो सका। अब हद तो तब और हो गई, जब वो मेरी शादी में सम्मिलित न हो सका।
किंतु कहते हैं कि ऊपर वाला निर्दयी नहीं बल्कि दयालु होता है। उसने हम दोनों का स्थानांतरण सन् 2014 में मेरा/2015मे उसका , भोपाल में कर दिया। और हम दोनों फिर एक बार मिल गये।चूंकि अब हम लोगो का मिलना पहले की तरह ना हो पाता था,क्योंकि एक तो आर्मी की नौकरी ही ऐसी कि, जो जितना भी थोडा बहुत समय मिलता तो घर की, अपनी माँ एंव श्रीमति जी कि भी जिम्मेदारी रहती चूंकि उनके पैर भारी हो चुके थे,तो बमुश्किल ही यदा कदा मेरा व उसका मिलना हो पाता था। लेकिन जब भी हम लोगो को मौका मिलता तो चाहे 10मिनिट के लिए ही क्यों न मिले पर मिलते जरूर थे।
ऐसे ही एक रोज मै बारिश के चलते अपने घर से आर्मी कैंम्प (अपने आफिस) कार से गया और शाम को वापस आते वक्त उसका फोन आया कि मै तेरा एम पी नगर में वेट कर रहा हूँ कब तक पहुँच रहा है तू.......
आगे पढ़ें, कौआ बनने से बचा लिया (भाग -2).......
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