Friday 20 September 2024

India's Heritage : क्यों कहते हैं पितृपक्ष?

आज कल श्राद्ध के दिन चल रहे हैं, जिसे पितृपक्ष या श्राद्ध पक्ष भी कहते हैं।

पर क्यों कहते हैं पितृपक्ष या श्राद्ध पक्ष? मातृपक्ष क्यों नहीं कहते हैं? 

  क्यों कहते हैं पितृपक्ष या श्राद्ध पक्ष? 



यह हमारी generation में अधिकांश लोग जानते होंगे पर हमसे पहले वाली generation में तो सभी लोग जानते होंगे।

पर हमारे बच्चे और आने वाली पीढ़ियां जानेंगी, इसकी बहुत remote chance है।

कारण... आधुनिकता की अंधी दौड़ में हम अपनी भारतीय संस्कृति को किस कदर पीछे छोड़ते जा रहे हैं, इसका हमें एहसास भी नहीं है।

जबकि भारतीय संस्कृति, हिन्दू समाज, केवल यही है जो कि सत्य है सनातन है और सर्वश्रेष्ठ है।

सिर्फ और सिर्फ इसमें हर एक को उचित सम्मान दिया गया है, फिर चाहे वो देवता हों, देवियां हों या हमारे पूर्वज... सबको ही विशेष, पवित्र, पूजनीय और शक्तिशाली समझा गया है। 

यही कारण है कि हिन्दू धर्म में पूर्वजों की भी पूजा अर्चना के लिए, साल में 16 दिन निर्धारित किए गए हैं।

पूर्वजों के लिए दिन निर्धारित किए गए हैं, वो तो ठीक है, पर उसे पितृपक्ष क्यों कहते हैं?

आप को बता दें कि जिस हिंदी को हम निम्न समझकर, तिरस्कृत किए रहते हैं, उससे सटीक, स्पष्ट और सार्थक भाषा, केवल उसकी जननी संस्कृत भाषा ही है। संस्कृत भाषा तो सम्पूर्ण विश्व में सबसे सर्वश्रेष्ठ है, अन्यथा हिन्दी से बेहतर कोई भाषा नहीं है। 

हम क्यों कह रहे हैं, हिंदी को विशेष, उसके बहुत से कारण हैं, जिनमें से एक है कि, इसमें सब कुछ बहुत स्पष्ट है।

अब आते हैं पितृपक्ष क्यों?

तो आपको बताएं कि साल में, महीने 12 होते हैं...

जानते हैं, जानते हैं, आप सबको पता है कि 12 महीने होते हैं। पर हम जनवरी फरवरी मार्च अप्रैल... की बात नहीं कर रहे हैं, वो तो सभी को कंठस्थ हैं।

हम बात कर रहे हैं, पौष, माघ, फागुन, चैत्र, बैशाख... आदि की...

आय हाय! यह क्या है?

यह हैं, महीनों के हिन्दू कैलेंडर के अनुसार नाम..

शायद हम में से किसी को भी नहीं याद होंगे, महीनों के हिन्दू कैलेंडर के अनुसार नाम..., 

हां-हां, आप सबके साथ हम भी इसी में शामिल हैं। हम भी कोई इतर थोड़ी ना हैं, आप सब से...

वैसे कुछ महीनों के नाम शायद पता भी हों, जैसे ज्येष्ठ, सावन, भादो.. क्योंकि इनका नाम हम तीज-त्योहारों और व्रतों में सुन लेते हैं।

हां तो हिन्दू कैलेंडर के अनुसार भी, एक साल 12 महीनों में  विभाजित होता है। साथ ही हर महीने को 15-15 दिनों में पुनः बंटा हुआ है। जिन्हें शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष कहा जाता है।

प्रत्येक 15 दिन को एक साथ बोलें तो, उसे पक्ष कहते हैं, इसलिए पक्ष...

और शुक्ल और कृष्ण क्यों? 

क्या किसी ईश्वर से सम्बन्धित है?

नहीं, बिल्कुल नहीं...

बल्कि चंद्रमा के पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाने के कारण...

मतलब?

मतलब चंद्रमा, हर 15 तक बढ़ता और घटता है। चंद्रमा, जैसे-जैसे बढ़ता जाता है, रोशनी बढ़ती जाती है। जिससे चंद्रमा उज्जवल या श्वेत होता जाता है। और शुक्ल का अर्थ है - श्वेत, सफेद, शुभ 

अतः अमावस्या से पूर्णिमा तक के 15 दिन, शुक्ल पक्ष कहलाते हैं।

पूर्णिमा के पश्चात् चंद्रमा, धीरे-धीरे घटता जाता है, मतलब रोशनी घटती जाती है, और अमावस्या के दिन चंद्रमा, विलुप्त हो जाता है, क्योंकि वो पूर्ण रूप से काला हो जाता है और पूर्ण काला दिखता नहीं है, इसलिए ऐसा प्रतीत होता है कि चंद्रमा विलुप्त हो गया। और कृष्ण का अर्थ है - काला

अतः पूर्णिमा से अमावस्या तक के 15 दिन, कृष्ण पक्ष कहलाते हैं।

तो बस वहीं से आया है पक्ष, क्योंकि श्राद्ध पक्ष या पितृपक्ष के यही 16 दिन होते हैं। 

16?... जब पक्ष 15 दिन का होता है तो, दिन 16 कैसे हुए?

16 ऐसे, क्योंकि पहला और पंद्रहवां ( अर्थात सर्वपितृ अमावस्या) दोनों दिनों को गिना जाता है ...

पितृपक्ष, आरंभ से चतुर्दशी और अंत में सर्वपितृ अमावस्या पर पूर्ण होता है...

पक्ष समझने के बाद, अब समझते हैं पितृ क्यों?

संस्कृत में पिता को पितृ कहते हैं। संस्कृत भाषा, हिन्दी भाषा की जननी है अतः हिंदी भाषा में कुछ शब्द, शुद्ध रूप में ही ले लिए गए हैं, जैसा उन्हें संस्कृत भाषा में बोलते हैं।

हमारा देश भारत, पितृ प्रधान देश है। जहां परिवार में, वंश में,  सत्ता पिता की समझी जाती है।

इसलिए लड़का, बारात लेकर आता है, विदाई लड़की की होती है। ससुराल को ही लड़की का असली घर कहा जाता है। और surname भी लड़की का ही बदलता‌ है, हालांकि आज कल लड़कियां अपना surname नहीं बदल रही हैं और उसकी आवश्यकता भी नहीं है।

होनी वाली संतानों का surname पिता के surname से ही मिलता है, जो कि अब तक यही है।

हमारे पूर्वज, मतलब हमारे पिता(यहां पिता से तात्पर्य है कि, हमारे वो सभी वंशज, जो हमारे परिवार के थे। फिर वो चाहे दादाजी हों या दादी जी, या उनके माता-पिता, या उनके माता-पिता, अर्थात पूरी वंशावली या अगर किसी के अपने माता-पिता ने रहे हों तो वो भी)... सभी शामिल हैं और वे सब पिता रुप में समझे जाते हैं...

तो आपको पूरी तरह समझ आ गया होगा कि क्यों कहते हैं पितृपक्ष... 

और श्राद्ध पक्ष, क्योंकि पक्ष तो वही, 15 दिन... और श्राद्ध इसलिए क्योंकि, इसमें हम अपने पूर्वजों का श्राद्ध और तर्पण विधि करते हैं।

अब आप पूरी तरह, clear हो‌ गये होंगे, कि क्यों पितृपक्ष या श्राद्ध पक्ष कहते हैं... 

और यह सब संभव हुआ, क्योंकि हिंदी भाषा बहुत ही सटीक और स्पष्ट है। 

और अगर ऐसा है तो, हिंदी भाषा निम्न (कमतर) कैसे हुई?

हिन्दी भाषा को सम्मान दीजिए, उसे अधिक से अधिक उपयोग कीजिये और भारत को गौरवान्वित कीजिए। पर केवल हिन्दी दिवस के इन 15 दिन ही नहीं बल्कि हमेशा...

साथ ही श्राद्ध पक्ष या पितृपक्ष चल रहे हैं, इन विशेष दिनों में अपने पूर्वजों की पूजा अर्चना करें। 

साथ ही उनका सम्मान भी करें, उनके बताए सदमार्ग पर चलें और नाम रोशन करें लेकिन केवल इन 15 दिन ही नहीं बल्कि हमेशा...

पर पूर्वजों के साथ साथ अपने माता-पिता, सास-ससुर का भी विशेष ध्यान रखें, मान-सम्मान और प्यार दें 🙏🏻 

हम सब पर हमारे पूर्वजों का आशीर्वाद सदैव बना रहे 🙏🏻 😊

Tuesday 17 September 2024

Article : Popularity Ganpati Bappa ki

Popularity गणपति बप्पा की..

यूं तो भारत अनेकानेक देवी-देवताओं की पवित्र पावन भूमि है, पर फिर भी अलग-अलग states में अलग-अलग देवी-देवताओं की मान्यता है।

जैसे बंगाल व पंजाब में मातारानी की, महाराष्ट्र में गणपति बप्पा की, south में, भगवान विष्णुजी, लक्ष्मी माता व मुरुगन जी की, और north में भगवान शिव, भगवान श्री कृष्ण, भगवान श्री राम और हनुमान जी को अधिक मानते हैं।

हालांकि, अब तो सभी जगह, सभी states के लोग रहते हैं, इसलिए लगभग पूरे भारत में सभी देवी-देवताओं के आगमन और उनके विसर्जन की धूम रहती है।

लेकिन जब आज अनंत चतुर्दशी है तो गणेश जी पर ही पूरा article अर्पित हो, इतना तो बनता है। 

वैसे भी महादेव व माता पार्वती जी के लाडले पुत्र हैं, तो सभी देवी-देवताओं के लाडेश्वर भी ठहरे।

तो गणेश जी को दंडवत प्रणाम के साथ आगे का article बढ़ाते हैं...

हाँ तो, हुआ ऐसा कि हमारी लाडली बिटिया रानी, ज़रा बड़ी हुई तो, उन्हें दो देवताओं ने बड़ा आकर्षित किया। 

पहले तो कृष्ण जी और दूसरे गणेश जी...

तो बस madam जी तो थीं छोटी, तो खुद तो कुछ कर नहीं सकतीं थीं, पर हुक्म पूरा चला लेती थीं।

तो बस जन्माष्टमी पर्व पर मम्मी के द्वारा सिखाई दुनिया भर की चीज़ का भोग लगाते थे पर बिट्टो रानी ने मक्खन भी जुड़वा दिया, कि बिन मक्खन के कान्हा जी का कैसा भोग? तो बस अब तो हर जन्माष्टमी पर्व पर मक्खन भी जरुर बनता है।

और दूसरे, हमारे गणपति महाराज..

अब हम लोग तो ठहरे North Indian, तो north के भगवान श्री राम, श्री कृष्ण, बम-बम भोले और हनुमान जी वाले... 

तो गणेश जी का आगमन तो बस दिपावली पूजन में माता लक्ष्मी जी के साथ ही करते थे। 

पर हमारी छोटी madam, फैल गई, कि नहीं भाई, हम तो हर गणेश चतुर्थी में गणपति बप्पा को बैठाएंगे और मोदक का भोग भी लगाएंगे।

बस तब से नियम बन गया, गणेश चतुर्थी में गणपति बप्पा को बैठाने और मोदक का भोग लगाने का... 

हमारे पतिदेव की प्यारी दीदी, मुंबई में रहती हैं, एक बार जब मुंबई जाना हुआ, तो बिटिया रानी को उनकी बुआ जी ने, मोदक बनाने का सांचा दे दिया।

बस उसके बाद से बप्पा के लिए, बनने वाले टेढ़े-मेढ़े मोदक, सांचे में ढल कर सुडौल और सटीक बनने लगे। 

उससे लगा कि, बप्पा को भी, हमारा उनका आगमन कराना बहुत अच्छा लगा, तभी तो मोदक के सांचे को हमारे पास पहुंचा दिया।

सिलसिला यूं ही चलता रहा, गणपति बप्पा के आगमन पर हम हर साल कुछ अलग तरह के मोदक बनाते और चतुर्दशी को जिसमें बप्पा का विसर्जन होता है, अर्थात वो फिर से अपनी माँ की गोद में पहुंच कर अठखेलियां करने लगते हैं।

उस दिन भी हम पूजा अर्चना करते।

पर इस बार, आंखों का treatment चल रहा है तो हमें लगा, मोदक बनाना शायद संभव न‌ हो पाए। एक दिन पहले, वैसे ही हरतालिका तीज़ के व्रत पूजन पाठ के लिए गुझिया बना चुके थे, हर बार की तरह..

पतिदेव बोले, इस साल मोदक वो लेते आएंगे...

हमने भी, बड़े अकड़ कर कहा, यह दिल्ली है, मुम्बई नहीं...

यहां दुनिया भर की मिठाई मिल सकती है, मोदक नहीं... अगर एक भी मोदक आप ले आएं तो उसे हम समझ लेंगे कि लोग बप्पा को यहां भी आमंत्रित करते हैं। 

शाम को office से घर लौटते समय, पतिदेव का phone आ गया, यहां 25 varieties के Modak मिल रहें हैं, कौन से वाले लाने हैं?

25....आय हाय! इतनी variety तो सिद्धी विनायक मंदिर में नहीं मिलते हैं, जितने कि यहां मिल रहें हैं... 

हमारे तो स्वर ही बदल गये, बड़े मधुर स्वर में हम ने पूछा, क्या varieties हैं, और भइया, पतिदेव तो शुरू हो गये, एक के बाद एक, मोदक की variety का नाम बताने में...

ओहो, ऐसा लग रहा था कि, किसी restaurant या hotel का menu बता रहे हैं। सच बता रहे हैं, किसी variety की मिठाई नहीं बची थी, जो मोदक न बन चुकी हो। वो भी बताते-बताते, हंसने लगे, कि यहां सारी मिठाइयां, मोदक बन चुकी हैं। तुम तो बस यह बताओ कि तुम्हें अपने गणपति बप्पा को किस taste की मिठाई के मोदक से प्रसन्न करना है?

आहा! गणपति बप्पा ने तो हमें ही पशोपेश में डाल दिया था, खैर variety थी, तो बप्पा जी को एक तरह के मोदक से क्यों प्रसन्न किया जाए...हमने चार varieties के मोदक मंगवा लिए।

गणपति बप्पा की popularity ने हमारी सारी अकड़ निकाल दी, उन्होंने सिद्ध कर दिया कि मुम्बई हो या दिल्ली या कोई और शहर, गणेश चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक हर जगह, सिर्फ और सिर्फ गणपति बप्पा की ही धूम रहती है।

और popularity कि तो क्या ही कहें, super popularity है भाई...

बस इतना ही कह सकते हैं कि गणपति बप्पा, आप तो छा गए हैं ...

अपनी कृपा सदैव हम सब पर बनाए रखियेगा 🙏🏻🙏🏻


    गणपति बप्पा मोरया, पुढच्या वर्षी लवकर या 🙏🏻😊

Saturday 14 September 2024

Article : हिंदी के लिए महापुरुषों के कथन

आज हिन्दी दिवस के उपलक्ष्य में हिंदी के विषय मे कुछ महापुरुषों के द्वारा कहे हुए कथन साझा कर रहे हैं। 

देश‌ की आजादी के साथ ही, हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार किया जाए, यह प्रस्ताव भी पारित किया गया था।

परन्तु इस प्रस्ताव के साथ ही यह भी हुआ कि कुछ राज्य, जो कि हिंदी भाषी नहीं थे, वो इसके लिए, किसी भी तरह से तैयार नहीं थे।

तो यह निर्धारित किया गया कि, हिंदी को फिलहाल राजभाषा में ही रखा जाए और कालान्तर में उसे राष्ट्रभाषा का दर्जा प्रदान कर दिया जाएगा। पर यह अंतहीन इंतज़ार ख़त्म ही नहीं हो रहा है, जिसके कारण आज तक भारत की कोई राष्ट्रभाषा नहीं है। ऊपर से हमारे आधुनिक बनने की होड़, एक विदेशी भाषा, अंग्रेजी को वो दर्जा देती जा रही है।

बस हिंदी दिवस के अलावा और कोई दिन नहीं होता है, जब हिंदी को विशेष समझा जाए। 

जबकि हिंदी के लिए महापुरुषों के कथन, सिर-माथे वाले हैं, आइए उन्हें जाने, शायद उसके बाद आप के मन में भी हिंदी के लिए वो सम्मान जग जाए और हिंदी को न्याय मिल जाए और राष्ट्रभाषा होने का सम्मान भी...

हिंदी के लिए महापुरुष के कथन


हिंदी किसी के मिटाने से मिट नहीं सकती।

~चन्द्रबली पाण्डेय


है भव्य भारत ही हमारी मातृभूमि हरी-भरी।

हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा और लिपि है नागरी॥

~मैथिलीशरण गुप्त


जिस भाषा में तुलसीदास जैसे कवि ने कविता की हो, वह अवश्य ही पवित्र है और उसके सामने कोई भाषा नहीं ठहर सकती।

~महात्मा गाँधी


हिंदी भारतवर्ष के हृदय-देश स्थित करोड़ों नर-नारियों के हृदय और मस्तिष्क को खुराक देने वाली भाषा है।

~हज़ारीप्रसाद द्विवेदी


हिंदी को गंगा नहीं बल्कि समुद्र बनना होगा।

~विनोबा भावे


हिंदी के विरोध का कोई भी आन्दोलन राष्ट्र की प्रगति में बाधक है।

~सुभाष चन्द्र बोस


हिन्दी हमारे राष्ट्र की अभिव्यक्ति का सरलतम स्रोत है।

~सुमित्रानंदन पंत


आज पूरा विश्व हिंदी भाषा की शक्ति को पहचान रहा है।

~नरेंद्र मोदी


आप लोगों को लग रहा होगा कि भारत के इन महापुरुषों में मोदीजी का नाम कैसे आ गया। तो उस के लिए बस इतना ही कहना चाहेंगे, कि मोदीजी हमारे भारत देश के सफल और आदरणीय प्रधानमंत्री हैं, और वे हिन्दी और संस्कृत के विकास और उत्थान के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

उन्होंने NEP syllabus के माध्यम से हिंदी और संस्कृत को CBSE board के विद्यालयों में compulsory language कर दिया है, जिससे सिर्फ इन भाषाओं का ही नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और सम्पूर्ण देश का भी विकास हो रहा है।

क्योंकि जिस कूटनीति से अंग्रेजों ने education system के द्वारा हिन्दी, संस्कृत व भारतीय संस्कृति को destroy करना चाहा था, यह उसी का मुँहतोड़ जवाब है, और ऐसा करना अतिआवश्यक भी था।

धन्य हैं, यह सब महापुरुष और इनकी सोच....

आप भी इनकी तरह सोच रखें और हिंदी को विशेष सम्मान दें, उसका अधिकाधिक उपयोग करें, जिससे हिंदी को उसका सही स्थान मिल सके। और भारत को उसकी राष्ट्रभाषा...


जय हिन्दी, जय हिन्द 🇮🇳

Wednesday 11 September 2024

Article : कुछ पल सनातन के

हमारे पतिदेव के जन्मदिवस में इस बार सोचा, उन्हें कुछ ऐसा birthday gift दिया जाए, जिससे वो अपना बचपन फिर से जी लें।

ऐसा gift, इसलिए सोचा, क्योंकि हर एक के लिए बचपन के पलों से मीठा और सुखद कुछ नहीं होता है।

हमने ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के व महाकालेश्वर के दर्शन का program plan किया।

महाकाल जी से तो, आप सभी परिचित होंगे, पर ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग से शायद कुछ लोग अनभिज्ञ हों।

कुछ पल सनातन के



1. ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग :

भगवान शिव-शंभू के 12 ज्योतिर्लिंग हैं, उनमें से ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग भी एक है।

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग जाने का विचार, इसलिए आया, क्योंकि हमारे ससुर जी वहां के आश्रम से जुड़े हुए थे। और उस आश्रम में अक्सर परिवार के साथ जाया करते थे। उन्हीं गुरुदेव जी का एक आश्रम बाराबंकी में भी है।

हमारे पतिदेव शादी के दूसरे साल में ही हमें हमारे ददिहाल ले कर गए थे, वहीं पर हमारे परिवार द्वारा आस्था रखे जाने वाले चच्चा जी महाराज की समाधि भी है। चच्चा जी महाराज, हमारे परनाना, हमारे पूरे परिवार के गुरु, ईश्वर या यूं कहें कि सर्वत्र हैं, जिनके कारण हमारे पूरे खानदान का आस्तित्व है।

इनका हमें वहां लेकर जाना, हमारी सम्पूर्ण ज़िंदगी की सर्वश्रेष्ठ जगह है 🙏🏻

तो अब बारी हमारी थी, उसी तरह की आस्था वाली जगह, जिससे उनका परिवार जुड़ा है, उसे चुनने की...

और वो है ओंकारेश्वर 🙏🏻

जब ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने जाएं और महाकालेश्वर के दर्शन ना करें, यह तो संभव ही नहीं था। तो वहां भी गये।

आज आप को ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग दर्शन के विषय में बताते हैं, आगे महाकालेश्वर के विषय में बताएंगे।

जैसा कि धार्मिक स्थल पर बहुत अधिक भीड़ होती है, वही हमें वहां भी मिली।

बहुत भीड़ होने के बाद भी सब बहुत systematic था, सभी श्रद्धालु अपनी-अपनी जगह पर बिना धक्का-मुक्की किए बम-बम भोले, हर हर महादेव का स्वर नाद करते हुए आगे बढ़ रहे‌ थे, इससे भक्ति और जोश का ऐसा माहौल बना कि कब हम लोग ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के सामने पहुंच गए, ज्ञात ही नहीं हुआ। 

महादेव जी के बहुत अच्छे दर्शन हुए, उसके बाद हम लोग ममलेश्वर महादेव जी के मंदिर में गये।

ममलेश्वर महादेव 

वहां पर ओंकारेश्वर मंदिर के बनिस्पत काफ़ी कम भीड़ थी। वहां भी सब शिव मय था।

दोनों जगह दर्शन करके, ऐसा लगा, मानो जीवन में वो पा लिया, जिसकी कल्पना भी नहीं की थी। परम सुख, परम आनन्द...

भोले भंडारी का हर दर ऐसा ही होता है, जहां माथा टेका और सर्वत्र पा लिया..🙏🏻

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिग के दर्शन के लिए हम श्री मार्कण्डेय संन्यास आश्रम में रुके थे। क्योंकि पापा जी (हमारे ससुर जी) ओंकारेश्वर में आने पर सदैव यहीं रुका करते थे।

2. आश्रम की व्यवस्था :

हम लोग दिल्ली से by train खंडवा तक, वहां से by Cab से श्री मार्कण्डेय आश्रम  पहुंचे थे। दिल्ली से ओंकारेश्वर तक की कोई सीधी train नहीं है...

श्री मार्कण्डेय संन्यास आश्रम, ओंकारेश्वर में पहुंच कर पता चला कि भक्तों के रहने की व्यवस्था ऊपर के कमरों में थी और संतों के रुकने की व्यवस्था नीचे के एक बड़े से कमरे में थी।

कमरे में पहुंच कर देखा कि एक पलंग था, जिसमें सिर्फ एक व्यक्ति ही सो सकता था, उसके अलावा बाकी तीन गद्दे, चादर, तकिया इत्यादि सब था।

कमरे में सुविधा के नाम पर बस एक tube light और एक fan था। Attached bathroom भी था। सब कुछ बेहद साफ-सुथरा...

मतलब no AC, no TV, साथ ही signals भी weak, तो mobile भी लगभग किसी काम का नहीं था, means entertainment का कोई साधन नहीं था।

वह आश्रम बिल्कुल नर्मदा नदी के किनारे बसा हुआ था। नर्मदा नदी की कल-कल की ध्वनि अलग ही तरह के सुख का एहसास दे रही थी। उसके साथ ही नदी के दूसरे छोर पर ओंकार पर्वत था। बेहद हरियाली से आच्छादित और शंकराचार्य जी की विशाल मूर्ति, जिससे कमरे से बाहर देखने पर अद्भुत दृश्य दिखाई देता था।

मतलब सर्वश्रेष्ठ जीवनयापन का सब साधन, उस आश्रम में मौजूद था। और उसको सम्पूर्णता दे रहा था, उस आश्रम का माहौल और शिव शंभू मय वातावरण.. 

जिसका एहसास आपको सम्पूर्ण article पढ़कर होगा...


3. आश्रम के समयबद्ध नियम :

आश्रम था, तो नियम भी थे और वो भी एकदम पक्के, मतलब जो जिस समय होना है, वो उसी समय ही होगा। वहां समय और नियम का पाबंद होना ज़रूरी था।

सुबह 5:30 बजे शिव शंभू जी की सुबह की वंदना-आरती होती थी।

6:00 से 6:30 बजे तक नाश्ता वितरण किया जाता था। उसके बाद आपको जो भी साधना, योग इत्यादि करना हो, वो कर सकते हैं। या ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने जाना हो तो, जा सकते थे।

11 बजे से भोजन वितरण हो जाता था। तत्पश्चात सभी विश्राम या अन्य कार्यकलापों को कर सकते हैं।

संध्या समय 7 बजे से शिव जी की आरती, संध्या, पूजा-अर्चना, शिव महिम्न स्तोत्र पाठ, सत्संग इत्यादि होता है, जो कि 8:30 बजे तक होता है। उसके बाद रात्रि भोजन वितरण किया जाता है।


4. महादेव की अराधना :

आश्रम में भी शिव जी का विशाल मंदिर था।महादेव जी की हर पूजा-अर्चना, खूब बड़े-बड़े घंटे-घड़ियाल, ढोल, नगाड़े, शंखनाद के साथ होती है, साथ ही सभी मंत्र और आरती इत्यादि भी तेज स्वर में होती है।

आप आश्रम के किसी भी कोने में हों, किसी भी कमरे में हों, आपकी आत्मा शिव स्तुति से पवित्र अवश्य हो रही थी।

एक अलग ही माहौल, सब बस शिव ही शिव मय.. उससे इतर कुछ भी नहीं...

मतलब आप हर पल सनातन को जी रहे हैं। नर्मदा नदी पर डुबकी लगाना, ईश्वरीयता के और करीब ले जा रहा था।


5. भोजन का सारांश (summary):

एक नियम और था, आपको नाश्ता व खाना खाने के बाद, अपने बर्तन स्वयं धोने होते थे।

नाश्ता, खाना पूर्णतः सात्विक था, पर बहुत स्वादिष्ट, साथ ही complete diet वाला, अर्थात, दाल, रोटी, सब्जी, चावल, सलाद, चटनी, अचार, मीठा सब कुछ। वो भी जो जितना खाना चाहें। 

वहां भोजन बनाने वाले और वितरण करने वाले सभी इस भाव में भोजन खिलाते थे, मानो सभी अतिथि, शिव भक्त हैं।

नियम यह भी था कि खाना खाते समय, मोबाइल नहीं लाना है, ना ही बात करनी है, भोजन जो कि प्रसाद है, उसे पूर्ण सम्मान दें, साथ ही प्रयास करें कि भोजन रूपी प्रसाद छोड़ा ना जाए। उतना ही लें थाली में कि व्यर्थ ना जाए नाली में 🙏🏻

हम लोगों ने उनसे श्रमदान की बात भी कही, पर उन्होंने साफ इंकार कर दिया, मानो कह रहें हों, अतिथि देवो भव:


6. आगे की योजना :

वहां entertainment के लिए आधुनिक युग का कुछ नहीं था, पर सच जानिए, उसकी आवश्यकता भी नहीं लग रही थी।

नियम कठोर थे, पर किसी पर भी थोपे नहीं जाते थे। 

हम लोग नाश्ता करने के पश्चात् ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन करने चले गए थे।


उसके बाद दोपहर के भोजन के समय हम लौट आए।

भादो मास चल रहा है तो, बीच-बीच में वर्षा तेज हो जाती, कभी झिसी पड़ती।

हमने सोचा लिया, अगले दिन माता अन्नपूर्णा और विकट हनुमान जी के दर्शन के बाद, (यह दोनों मंदिर आश्रम से बहुत नज़दीक थे)सारा समय आश्रम में रहकर, कुछ पल सनातन के बिताएंगे।


7. सनातन धर्म :

और सच बता रहे हैं, हमारे पतिदेव को तो आनंद आना ही था। बचपन के पलों को जो जी रहे थे। पर हमें और दोनों बच्चों को भी वहां विशेष आनन्द आ रहा था।

शायद उसका कारण था, सनातन सत्य है, कठोर भी है, पर वहां बाध्यता नहीं थी, स्वतंत्रता थी, स्वच्छंदता थी। 

उन पलों को जीने के लिए, शायद ज़िन्दगी के जितने भी पल मिले, कम ही हैं।

आप से सिर्फ इतना कहना कि अगर आप ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग के दर्शन के लिए जाएं, तो ऐसी जगह ही रुकिएगा, जहां पर नर्मदा नदी का तट रहे, क्योंकि मां नर्मदा के सानिध्य के बिना दर्शन अधूरे हैं और शिव शंभू की कृपा भी...


8. निशुल्क आश्रम / आवास :

हमें आश्रम में रुकने के लिए, कोई भी धन-राशि नहीं देनी थी। फिर भी हम लोग स्वेच्छा से धन राशि देकर आए। और आप सबसे भी अनुरोध है कि, अगर आप ऐसे स्थान पर जा रहे हैं, जहां धन-राशि नहीं देनी है…

तो अपने सामर्थ्य के अनुरूप धन राशि अवश्य दें, जिससे आश्रम की सभी गतिविधियां, सुचारू रूप से चल सके।

वहां उपस्थित ओंकार पर्वत की परिक्रमा भी की जाती है, पर समय के आभाव के कारण, हम वो नहीं कर सके।

मन तो इतना अधिक प्रसन्न था, कि वहां से ना जाएं, ऐसा ही लग रहा था।

पर ऐसा संभव नहीं था, अगले दिन हम अपने गंतव्य के लिए, मतलब महाकाल जी के दर्शन के लिए निकल गये...

वो पल भी सुखद थे, आपको उनके विषय में भी बताएंगे...


हर हर महादेव...

जय ओंकारेश्वर महाराज...

जय ममलेश्वर महादेव...

जय जय महाकाल...

Tuesday 10 September 2024

Article : उम्मीदों का सवेरा

आज का यह article salute है, धन्यवाद है‌ और बहुत सारी बधाइयां है, उन सभी खिलाड़ियों को, जिन्होंने देश का गौरव बढ़ाया...

 Paralympics ख़त्म हुआ और उसके साथ ही यह भी सिद्ध हो गया कि, कोई भी कमी, तब तक कमी नहीं होती, जब तक हम उसे स्वीकार नहीं कर लेते हैं। 

वरना मंजिल पर कोई भी पहुंच सकता है और सफलता भी किसी को भी मिल सकती है। 

और Paralympic में यह बात बखूबी प्रदर्शित भी हो गई।

उम्मीदों का सवेरा

Olympics, जिसमें India के एक से बढ़कर एक खिलाड़ी गये थे, उसमें सिर्फ 1 silver और 5 bronze medal मिले थे, कुल मिलाकर 6 medals, जिसमें gold medal एक भी नहीं। और उसमें ranking वाले 84 देशों में से भारत 71वें स्थान पर था। जबकि पाकिस्तान सिर्फ और सिर्फ एक ही gold medal लेकर भी 62वें स्थान पर था।

जबकि Paralympics में 7 gold, 9 silver, 13 bronze. Total 29 medal मिले थे। Ranking वाले 79 देशों में से भारत 18वें स्थान पर था और पाकिस्तान 79वें स्थान पर था।

मतलब जितने Olympic में total medals थे, उससे ज़्यादा तो Paralympics में gold medals मिले हैं।

यह पूरी तरह से सिद्ध करता है कि, सीमित सोच सिर्फ मस्तिष्क तक ही रहती है, वरना जिनके इरादे और हौसले बुलंद होते हैं,  उनके लिए आसमान तक छलांग लगाना, कोई बड़ी बात नहीं है।

यह article, उन लोगों के लिए भी है, जो एक असफलता या नाममात्र की कमी को बहुत बड़ा बनाकर हताशा और मायूस हो जातें हैं और एक और प्रयास करने का भी जोश नहीं कायम करते हैं।

उन सबके लिए मिसाल हैं, यह सब खिलाड़ी। 

अगर उन्होंने भी अपनी कमी और असफलता को अपने ऊपर हावी होने दिया होता, तो उन्होंने यह कभी नहीं पाया होता, जो उन्होंने हासिल किया।

जिससे सिर्फ उनका ही नहीं, बल्कि उनके पूरे परिवार, पूरे देश का नाम गौरवान्वित हुआ है।

उठो, चलो और तब तक चलते रहो, जब तक सफलता नहीं मिल जाती, मत सोचो कि तुममें कुछ कमी है, तुम हासिल नहीं कर सकते, मत सोचो कि तुम असफल हो, सफल नहीं हो सकते, क्योंकि जब तक अपने पंख, अपने परवाज़ से बुलंद हौसलों की उड़ान नहीं भरोगे, आसमान नहीं छू सकते।

और जिनका लक्ष्य सिर्फ और सिर्फ सफलता हासिल करना होता है, उनकी उम्मीदों का सवेरा भी अवश्य होता है...

India's Full List of Medal Winners at Paris Paralympics

Paris Paralympics Indian gold medal winners:

1. Avani Lekhara - Women's 10m air rifle standing SH1 - Gold

2. Nitesh Kumar - Men's singles SL3 (Badminton) - Gold

3. Sumit Antil - Javelin throw F64 (Athletics) - Gold

4. Harvinder Singh - Men's Individual Recurve Open (Archery) - Gold

5. Dharambir - Men's Club Throw - F51 (Athletics) - Gold

6. Praveen Kumar - Men's high jump T64 - Gold

7. Navdeep Singh - Men's javelin throw F41 - Gold

Paris Paralympics Indian silver medal winners:

1. Manish Narwal - Men's 10m air pistol SH1 (Shooting) - Silver

2. Nishad Kumar - Men's high jump T47 (Athletics) - Silver

3. Yogesh Kathuniya - Men's discus throw F56 (Athletics) - Silver

4. Thulasimathi Murugesan - Women's singles SU5 (Badminton) - Silver

5. Suhas Yathiraj - Men's singles SL4 (Badminton) - Silver

6. Sharad Kumar - Men's high jump T6 final - Silver

7. Ajeet Singh - Men's javelin throw F46 event - Silver

8. Sachin Sarjerao Khilari - Men's shot put F46 - Silver

9. Pranav Soorma - Men's Club Throw - F51 (Athletics)- Silver

Paris Paralympics Indian bronze medal winners:

1. Mona Agarwal - Women's 10m air rifle standing SH1 (Shooting) - Bronze

2. Preethi Pal - Women's 100m T35 (Athletics) - Bronze

3. Preethi Pal - Women's 200m T35 (Athletics) - Bronze

4. Rubina Francis - Women's 10m Air Pistol SH1 (Shooting) - Bronze

5. Manisha Ramadass - Women's singles SUS (Badminton) - Bronze

6. Rakesh Kumar / Sheetal Devi - Mixed team compound open (Athletics) - Bronze

7. Nithya Sre Sivan - Women's singles SH6 (Badminton) - Bronze

8. Mariyappan Thangavelu - Men's high jump T6 final - Bronze

9. Deepthi Jeevanji - Women's 400m T20 final - Bronze

10. Sundar Singh Gurjar - Men's javelin throw F46 event - Bronze

11. Kapil Parmar - Men's Judo - 60kg J1 - Bronze

12. Hokato Hotozhe Sema - Men's shot put F57 - Bronze

13. Simran - Women's 200m T12 - Bronze

एक बार फिर से इन सभी खिलाड़ियों को बहुत बहुत बधाई और आभार 🙏🏻 

किसी की नज़र में वो दिव्यांग होंगे पर हमारी नज़र में वो देश का गौरव हैं 🙏🏻

जय हिन्द जय भारत 🇮🇳 💐 🙏🏻 

Saturday 7 September 2024

India's Heritage : The 'Magical' Temples of Ganesha

Everything, which looks ‘magical’ to us, is either an illusion, or has a hidden reason, unknown to us. Today, let us have a glance of some famous temples of Ganpati Bappa, known for their ‘Maanyta’, and uncover the reason(s) behind them.

The ‘Magical’ Temples of Ganesha

1. Shree Siddhivinayak Temple, Mumbai, Maharashtra :

This temple is said to fulfill the desires of its devotees. It got its name when Lord Vishnu worshipped Lord Ganesha, in order to control 2 demons; Madhu and Kaitabha. Lord Vishnu achieved success at this place by worshipping Lord Ganesha. Therefore, it was named Siddhivinayak (Siddhi = accomplishment + Vinayak = remover of obstacles). The idol of Ganesha is said to be Sanjeevan (resuscitative), which means ‘revival from apparent death / unconsciousness’.


2. Shri Chintaman Ganesh Temple, Ujjain, Madhya Pradesh :

This temple is said to remove all the worries of its devotees. It got its name when Lord Brahma meditated and prayed Lord Ganesha for peace of mind. Lord Ganesha made his mind stable, by removing all his worldly anxieties. This is why another name for Lord Ganesha is Chintaharan (Chinta = tension + Haran = taking away). Lord Brahma worshipped Lord Ganesha at this place, and hence the idol begun to be called as Chintaman (assurer of freedom from problems).


3. Trinetra Ganesh Temple, Ranthambore Fort, Rajasthan :

This temple is said to bless devotees seeking solace. It got its name when King Hammiradeva worshipped Lord Ganesha seeking peace in the ‘Siege of Ranthambore’ (a war). His godown, earlier filled with wealth started getting exhausted due to shortage of weapons in the battle. He was blessed by Lord Ganesha, who had ended the war and filled his godown again with wealth. It is the only temple in the world which houses the entire family of Lord Ganesha.

Ganpati Bappa morya 🚩 

Happy Ganesh Chaturthi to all of you. 

Hope you enjoyed this post written by Advay.


Friday 6 September 2024

Poem‌ Devotional : हरतालिका तीज

 हरतालिका तीज 




व्रत में, व्रत कई,

फिर क्यों तीज महान?

कैसे हो कल्याण‌ इससे? 

सब क्यों करें इसका गुणगान..


नाम, हरण से आरंभ हुआ, 

तीन पर हुआ शेष।

जिसमें कुछ भी शुभ नहीं,

फिर कैसे यह है विशेष?..


महादेव को वरने के लिए, 

थीं, मां पार्वती परेशान। 

पिता को, शिव नहीं भा रहे,

कैसे वर दें, उनसे अपनी जान?..


स्वयंवर सजने लगा, 

देवों के आगमन के लिए। 

हिमाचल भावविभोर थे,

पार्वती को दुल्हन बनाने के लिए..


देखकर व्यथीत पर्वती को,

सखियां सब हो रही हैरान। 

कैसे, क्या करें, कि पार्वती?

खिले पुनः पुष्प के समान..


हरण कर सखी का,

लें चलीं वनागमन को।

निष्प्राण देह को, 

प्रेम से जीवित करने को..


कठिन तप, अथाह प्रेम, 

व्रत, पूजन करने लगी।

शिव को, पति रूप में पाने को, 

पार्वती, यत्न सब करने लगी.. 


भादो का था मास,

व्रत हरतालिका तीज।

अपने अथक प्रयास से, 

मां ने, महादेव को लिया जीत.. 


शिव पार्वती के मिलन का,

हैं यह पवित्र त्यौहार। 

इससे कुछ बढ़कर नहीं, 

जहां महादेव गए हार.. 


वर हों महादेव, 

वधू मां पार्वती।

बस यही है, 

हरतालिका तीज..


शिव पार्वती जी के अमर प्रेम के प्रतीक हरतालिका तीज व्रत की विशेष कृपा सभी सुहागनों को मिलें और सभी को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद मिले 🙏🏻 


हर हर महादेव 🚩

जय मां पार्वती की🌹


हरतालिका व्रत कथा को कविता में पिरोने का प्रयास मात्र है,  हे महादेव जी व माँ पार्वती आप की कृपा सदैव बनी रहे 🙏🏻 🙏🏻 

Thursday 5 September 2024

Poem: गुरु ईश्वर समान

कैसा गजब संयोग है कि गुरु दिवस, गुरुवार को...

वैसे तो हर दिन का अपना विशेष स्थान है और अपना अलग महत्व, पर कोई विशेष हो तो उसे गुरु (जिसका एक अर्थ बड़ा या  महान भी होता है) कह दिया जाता है।

गुरुवार को गुरुवार कहने का एक तात्पर्य यह भी है कि, यह दिन जगत को संचालित करने वाले ईश्वर विष्णु जी को समर्पित है। 

उसी तरह जीवन में हर रिश्ते का अपना विशेष स्थान और महत्व होता है, पर उन सबमें गुरु (शिक्षक) को ईश्वर के समान स्थान प्रदान किया गया है।

आज उसी भाव को हमारे प्यारे से बेटे अद्वय ने अपनी कविता के माध्यम से शब्दों में पिरोया है। तो सोचा कि आज उसे ही साझा किया जाए।

उसके साथ ही उसके सभी शिक्षकों को, अपने सभी शिक्षकों को या यूं कहें कि, जो भी शिक्षण का कार्य कर रहे हैं, उन सभी शिक्षकों को कोटि कोटि धन्यवाद  🙏🏻 

क्योंकि दुनिया में जो भी शिक्षा देने का कार्य कर रहा है, पूरा समाज उन सभी का आभारी हैं। 

क्योंकि शिक्षक हैं तो, सम्पन्नता है, प्रसन्नता, है, सौभाग्य है, अनुराग है, वो हैं, इसलिए ही सबका अस्तित्व है। 

एक बार फिर से कोटि कोटि आभार 🙏🏻 

आप सभी अद्वय की कविता का आनन्द लें और उसे अपना आशीर्वाद प्रदान करें 🙏🏻😊

 गुरु ईश्वर समान



जब बच्चे होते हैं छोटे,

पर उनकी जिज्ञासा हो बड़ी।

तब शिक्षिकाएँ ही तो होती हैं,

उनके उत्तरों के लिए खड़ी।


जब बच्चों को पुस्तकों का, 

कुछ भी समझ न आया।

तब अध्यापक ही तो थे,

जिन्होंने सब कुछ सिखाया।


जब बच्चे का दिल टूटे,

और बिखर जाएं आशाएँ।

तब शिक्षक प्रोत्साहित कर,

उनको मंजिल तक पहुंचाएंँ।


यदि होते न गुरु द्रोण,

तो क्या होता अर्जुन तीरंदाज?

यदि होते न गुरु ब्रह्मा,

तो क्या होता यह समाज?


हो कोई महाज्ञानी,

या एक साधारण इंसान।

सबका मानना एक ही,

गुरु है ईश्वर समान।


अद्वय सहाय


🙏🏻 गुरु दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🏻 

📚 Happy Teacher's Day 🎓