कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन विभिन्न पूजाओं का आयोजन किया जाता है।
देव उठनी एकादशी, तुलसी विवाह व बाबा खाटू श्याम जी का जन्मोत्सव तीनों ही होते हैं।
अगर आप जानना चाहते हैं कि तुलसा जी और शालीग्राम जी का विवाह क्यों सम्पन्न किया जाता है, देव उठान से जुड़ी बातें, और देव उठनी में चावल क्यों नहीं खाते हैं, व तुलसा जी की आरती जानना चाहते हैं तो यह सब आपको इन तीनों post में मिल जाएगा...
आज आप को खाटू श्यामजी के जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में उनके ही, विषय में अपने India's Heritage segment में बताते हैं।
यह एक ऐसी कथा है, जो आस्था और विश्वास से परिपूर्ण एक सत्य कथा है, जो सबको पता होनी चाहिए।
बर्बरीक से खाटूश्यामजी
राजस्थान के सीकर में खाटूश्याम बाबा का मंदिर है। जहां दूर-दूर से लोग आते हैं और कभी भी खाली हाथ वापस नहीं जाते। श्याम बाबा को हारे का सहारा माना जाता है। कोई भी परेशानी हो, इस मंदिर में आने वाला कोई भी भक्त निराश नहीं जाता है।
यूं तो पूरे दुनिया में खाटूश्याम बाबा को मानने वाले बसते हैं। लेकिन वैश्य और मारवाड़ी वर्ग के भक्तों की तादात थोड़ी ज्यादा है। लाखों करोड़ों लोगों की आस्था का केंद्र खाटूश्याम जी का असली नाम बर्बरीक है। बर्बरीक, बाबा घटोत्कच और मौरवी (नागकन्या) के बेटे हैं।
बात उस समय कि है जब महाभारत का युद्घ आरंभ होने वाला था। भगवान श्री कृष्ण, युद्घ में पाण्डवों के साथ थे जिससे यह निश्चित जान पड़ रहा था कि कौरव सेना भले ही अधिक शक्तिशाली है लेकिन जीत पाण्डवों की होगी।
श्याम बाबा के दादा-दादी, भीम और हिडिम्बा थे। इसलिए श्याम बाबा भी जन्म से ही शेर के समान थे, और इसी लिए उनका नाम बर्बरीक रख दिया गया था।
शिव उपासना से बर्बरीक ने तीन तीर प्राप्त किए। ये तीर चमत्कारिक थे, जिसे कोई हरा नहीं सकता था। इस लिये श्याम बाबा को तीन बाणधारी भी कहा जाता है। भगवान अग्निदेव ने बर्बरीक को एक दिव्य धनुष दिया था, जिससे वो तीनों लोकों पर विजय प्राप्त कर सकते थे।
ऐसे समय में भीम का पौत्र और घटोत्कच का पुत्र बर्बरीक ने अपनी माता को वचन दिया कि युद्घ में जो पक्ष कमज़ोर होगा वह उनकी ओर से लड़ेगा, बर्बरीक ने महादेव को प्रसन्न करके उनसे तीन अजेय बाण प्राप्त किये थे।
एक ब्राह्मण ने, बर्बरीक से सवाल किया कि वे किस पक्ष की तरफ से युद्ध करेंगें?
बर्बरीक बोले कि जो हार रहा होगा उसकी तरफ से युद्ध लडूंगा।
श्री कृष्ण ये सुनकर सोच में पड़ गए, क्योंकि बर्बरीक के इस वचन के बारे में कौरव भी जानते थे।
कौरवों ने पहले ही योजना बना ली थी, कि पहले दिन वो कम सेना के साथ लड़ेंगे और हारने लगेंगे।
ऐसे में बर्बरीक उनकी तरफ से युद्ध कर पांडवों की सेना का नाश कर देंगे।
ऐसे में बिना समय गवाए, ब्राह्मण बने श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से एक दान देने का वचन माँगा। बर्बरीक ने दान देने का वचन दे दिया। ब्राह्मण ने बर्बरीक से कहा कि उसे दान में बर्बरीक का सिर चाहिए।
भगवान श्री कृष्ण को जब बर्बरीक की योजना का पता चला तब वह ब्राह्मण का वेष धारण करके बर्बरीक के मार्ग में आ गये।
श्री कृष्ण ने बर्बरीक का मजाक उड़ाया कि, वह तीन बाण से भला क्या युद्घ लड़ेगा। कृष्ण की बातों को सुनकर बर्बरीक ने कहा कि उसके पास अजेय बाण है। वह एक बाण से ही पूरी शत्रु सेना का अंत कर सकता है। सेना का अंत करने के बाद उसका बाण वापस अपने स्थान पर लौट आएगा।
इस पर श्री कृष्ण ने कहा कि हम जिस पीपल के वृक्ष के नीचे खड़े हैं अपने बाण से उसके सभी पत्तों को छेद कर दो तो मैं मान जाउंगा कि तुम एक बाण से युद्घ का परिणाम बदल सकते हो। बर्बरीक ने चुनौती स्वीकार करके, भगवान का स्मरण किया और बाण चला दिया। पेड़ पर लगे पत्तों के अलावा नीचे गिरे पत्तों में भी छेद हो गया।
इसके बाद बाण भगवान श्री कृष्ण के पैरों के चारों ओर घूमने लगा क्योंकि एक पत्ता भगवान ने अपने पैरों के नीचे दबाकर रखा था।
भगवान श्री कृष्ण जानते थे कि युद्घ में विजय पाण्डवों की होगी और माता को दिये वचन के अनुसार बर्बरीक कौरवों की ओर से लड़ेगा जिससे अधर्म की जीत हो जाएगी।
इसलिए ब्राह्मण वेषधारी श्री कृष्ण ने बर्बरीक से दान की इच्छा प्रकट की। बर्बरीक ने दान देने का वचन दिया तब श्री कृष्ण ने बर्बरीक से उसका सिर मांग लिया।
बर्बरीक समझ गया कि ऐसा दान मांगने वाला ब्राह्मण नहीं हो सकता है। बर्बरीक ने ब्राह्मण से कहा कि आप अपना वास्तविक परिचय दीजिए। इस पर श्री कृष्ण ने उन्हें बताया कि वह कृष्ण हैं।
सच जानने के बाद भी बर्बरीक ने सिर देना स्वीकार कर लिया लेकिन, एक शर्त रखी कि, वह उनके विराट रूप को देखना चाहता है तथा महाभारत युद्घ को शुरू से लेकर अंत तक देखने की इच्छा रखता है। भगवान ने बर्बरीक की इच्छा पूरी कि, सुदर्शन चक्र से बर्बरीक का सिर काटकर सिर पर अमृत का छिड़काव कर दिया और एक पहाड़ी के ऊंचे टीले पर रख दिया। यहां से बर्बरीक के सिर ने पूरा युद्घ देखा।
युद्घ समाप्त होने के बाद जब पाण्डवों में यह विवाद होने लगा कि किसका योगदान अधिक है तब श्री कृष्ण ने कहा कि इसका निर्णय बर्बरीक करेगा जिसने पूरा युद्घ देखा है। बर्बरीक ने कहा कि इस युद्घ में सबसे बड़ी भूमिका श्री कृष्ण की है। पूरे युद्घ भूमि में मैंने सुदर्शन चक्र को घूमते देखा। श्री कृष्ण ही युद्घ कर रहे थे और श्री कृष्ण ही सेना का संहार कर रहे थे।
बर्बरीक द्वारा अपने पितामह पांडवों की विजय हेतु स्वेच्छा के साथ शीशदान कर दिया गया। बर्बरीक के इस बलिदान को देखकर दान के पश्चात श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को कलियुग में स्वयं के नाम से पूजित होने का वर दिया। आज बर्बरीक को खाटू श्याम जी के नाम से पूजा जाता है। जहां कृष्ण जी ने उनका शीश रखा था उस स्थान का नाम खाटू है।
तो ऐसे थे, हमारे खाटू श्याम बाबा...
वीरता और शौर्य में, दान पुण्य में, जिनके आगे स्वयं ईश्वर नतमस्तक हो गये। और उन्हें अपने तुल्य स्थान प्रदान कर दिया।
तब से ही हारे का सहारा, खाटू श्याम हमारा, प्रचलित हो गया।
जय खाटू श्याम बाबा की🙏🏻
आपकी कृपा हम सब पर सदैव बनी रहे 🙏🏻
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