House number 1303 (भाग-3) के आगे...
House number 1303 (भाग-4)
आज की रात कुछ ज्यादा ही काली और ठंडी था, सन्नाटा पसरा हुआ था। हाथ को हाथ नहीं सुहा रहा था, जिस कारण हर छोटी से छोटी आवाज़ें भी बहुत तेज सुनाई दे रही थी।
आवाज़ तेज सुनाई देने का कारण यह भी था कि कमरे की खिड़की ठीक से बंद नहीं होती थी।
सुबह से घर को लेकर इतनी बातें सुन सुनकर, रतन को भी घर अजीब सा लगने लगा था...
रतन सोने के लिए जाने लगा तो आज, उसने कमरे के, दोनों bulb खोल दिए, एक तार के साथ झूलता हुआ 80 watt का और एक zero watt का night bulb, क्योंकि आज वो तेज़ रोशनी चाह रहा था।
कहते हैं ना जब मन के अंदर का अंधेरा बहुत डरा रहा हो तो, बाहर की रोशनी बढ़ा देने से डर कुछ हद तक कम हो जाता है।
अभी रतन को झपकी लगी ही थी, कि थोड़ी ही देर में कमरें में रखे हुए सामान, हिलने लगे। झूलता हुआ bulb, बार-बार दीवार से टकरा रहा था, और अंततः टूट गया।
Bulb टूटने की आवाज़ से रतन की नींद टूट गई। कमरे में रोशनी कम हो गई थी।
कमरे में रखे हुए सामान, अभी भी हिल रहे थे, कुछ अब इधर से उधर सरकने भी लगे।
इन सबको देखकर, रतन डरने लगा। तभी एक बिल्ली के रोने की आवाज़ आने लगी।
साथ ही हवा चलने की आवाज़ और खिड़की के बंद खुलने का शोर, सब मिलकर कमरे को बहुत भयावह बना रहे थे।
रमन के कान में माँ की कही बात और बाकी सबकी बातें गूंजने लगी।
मनहूस... महामनहूस....
उसे लगा, उसे महेश की बातों में नहीं आना चाहिए था। उसका डर अब चरम पर पहुंच गया था।
उसने आव देखा ना ताव, वो बदहवास सा घर से निकल भागा...
रास्ते में उसे building का चौकीदारी दिखा, वो रतन को देखकर चिल्लाया, कहाँ भागे जा रहे हो?
रमन भागते भागते हुए ही जोर से चिल्लाया, घर में भूत है, वो सारे सामान इधर से उधर सरकार रहा है।
सब सही कहते हैं कि वो घर मनहूस है, महा मनहूस.... उसके बाद उसने पलट कर नहीं देखा, बस पकड़ कर सीधे गांव निकल गया।
रमन की बातों से चौकीदार भी थर-थर कांपने लगा और अपने घर को निकल गया...
रमन के जाने के दो दिन बाद, महेश गांव से लौट आया...
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