Wednesday, 26 February 2025

Bhajan (Devotional Song) : आया शिवरात्रि का त्यौहार

आप सभी को महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ। देवों के देव, महादेव, हम सभी पर अपनी कृपा-दृष्टि सदैव बनाए रखें। बोलो, हर हर महादेव 🙏🏻 

आया शिवरात्रि का त्यौहार


होके नन्दी पे सवार,

पहने सांपों का हार,

जटा गंगा की धार।


शिव हो गये,

शिव हो गये तैयार।

आया शिवरात्रि का त्यौहार।।


पहने मुंडों की माला,

भभूत तन पे है डाला,

दिखे रूप निराला।


शिव हो गये,

शिव हो गये तैयार।

आया शिवरात्रि का त्यौहार।।


लेकर चले बारात,

भूत-पिशाचों के साथ,

कैसी गजब है रात।


शिव हो गये,

शिव हो गये तैयार।

आया शिवरात्रि का त्यौहार।।



बम बम भोले...

जय बाबा भोलेनाथ की...

Tuesday, 25 February 2025

Story of Life: जीवन क्या है (भाग -4)

 जीवन क्या है (भाग-1),

जीवन क्या है (भाग-2) व… 

जीवन क्या है (भाग - 3)  के आगे...

जीवन क्या है (भाग - 4) 




ऐसे में यही कहूंगा कि,  ऐसे अपनों का सानिध्य, जीवन तो बिल्कुल नहीं है... 

दूसरा प्रश्न था कि क्या धनार्जन जीवन है?

तो बता दें कि धनार्जन से जीवन है, पर जीवन धनार्जन नहीं है।

ईश्वर ने हमें धनार्जन करने के लिए नहीं भेजा है।‌ धनार्जन तो हमने सभ्यता के विकास के साथ करना आरंभ किया है।

पुरातन काल में मनुष्य भी अन्य पशुओं के समान विचरण और भ्रमण करके ही अपना जीवन पोषण करता था, किन्तु समयांतर के साथ ही मनुष्य में धनार्जन करने की बुद्धि विकसित हुई।

तो धन कमाना आवश्यक ज़रूर है पर धन के पीछे सब छोड़ देना सर्वथा अनुचित है। अपना स्वास्थ्य, अपनों का सानिध्य, अपने लिए व्यतीत किए जाने वाला समय, सबको ताक पर रख कर दिन-रात सिर्फ धनार्जन में लगे रहना, किसी भी नजरिए से जीवन नहीं है 

तुमने पूछा था, क्या सफलता जीवन है? 

तो सुनो, सफलता और असफलता तो जीवन के दो पहलू हैं, पर जीवन नहीं...

लक्ष्य की प्राप्ति करने का प्रयास अवश्य करना चाहिए, किन्तु उसके पीछे सबको भूल जाना उचित नहीं है।

आखिरी प्रश्न, क्या ईश्वर में समर्पण जीवन है?

तो ईश्वर में समर्पण ही तो जीवन है, यह तो सत्य सनातन है।

पर ऐसे में बहुत लोगों के मन में यह विचार आ रहा होगा कि सब कुछ परित्याग कर ईश्वर में समर्पित हो जाना चाहिए? क्या कर्तव्यों से विमुख हो जाना उचित है?

तो उसके लिए यही कहना है, हमारे जन्म लेने के साथ ही हमारे बहुत सारे कर्तव्य भी हम से जुड़ जाते हैं, तो उन सबका निर्वाह करते हुए ईश्वर को समर्पित होना, यही सच्चे अर्थों में जीवन है और इसका सफल और प्रत्यक्ष उदाहरण, स्वयं प्रभु श्री राम जी और भगवान श्री कृष्ण जी ने दिया है।

जब तक कर्तव्यों से जुड़े हैं तब तक कर्तव्यों के साथ ईश्वर में समर्पित रहें और कर्तव्यों का पालन पूर्ण हो जाने के पश्चात्, लोककल्याण करते हुए सम्पूर्ण रूप से ईश्वर में समर्पित हो जाए..

बाकी जीवन का सही अर्थ है समय अवधि, एक सशक्त समय अवधि, जो ईश्वर ने हमें कुछ अर्थपूर्ण करने के लिए दी है। अब यह हम पर निर्भर करता है कि हम उस दी गई समय अवधि का किस तरह सदुपयोग या दुरुपयोग करते हैं।

यह समय अवधि, एक निश्चित समय तक ही सीमित होती है। और वो कट ही जाएगी, अच्छी-बुरी, सही-गलत वैसी ही जैसे आप कर्म करोगे। 

इन प्रश्नों के उत्तर देने के पश्चात् साधु महाराज जी क्षण भर को मौन हो गये।

थोड़ी देर बाद लगभग सभी आए हुए लोग उठ खड़े हुए और कहने लगे कि आप के इन उत्तरों में ही हमारे भी उत्तर निहित हैं। हमको आप आशीर्वाद दें कि हम सभी अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए ईश्वर को समर्पित हो जाएं।

इसके पश्चात सबको, हाथों में पुष्प लेकर, एक विशेष कक्ष में ले जाया गया। जहां बहुत बड़े बड़े शीशे लगे थे, जिसमें लोगों को अपना ही प्रतिबिंब दिखाई दे रहा था साथ ही कुछ फ्रेम थे, जिसके आगे माता-पिता लिखा था। पर कहीं भी साधु महाराज की मूर्ति नहीं थी।  

लोगों को समझ नहीं आ रहा था कि कहां पुष्प अर्पित करें। थोड़ी देर बाद सब चले गए और सभी पुष्प वहीं अर्पित थे, जहां माता-पिता लिखा था।

Monday, 24 February 2025

Story of Life: जीवन क्या है( भाग -3)

जीवन क्या है (भाग-1) व… 

जीवन क्या है (भाग-2) के आगे...

जीवन क्या है (भाग - 3) 




इतने बड़े साधु महाराज की बातें और प्रश्नों के उत्तर की प्रतीक्षा सभी मौन होकर करने लगे, क्योंकि हर किसी के मन में कहीं न कहीं यही प्रश्न कौतूहल की स्थिति बनाए हुए थे।

साधु महाराज ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा...

बेटी आपने प्रश्न किया था कि, महाराज जीवन क्या है?

और उसमे सबसे पहले पूछा था कि 

क्या अपनों का सानिध्य जीवन है?

तो आप सबको बता दें कि अपनों का सानिध्य ही जीवन है।

ईश्वर ने खुद हमें अपनों के सानिध्य में रहने के लिए ही रिश्तों की डोर से बांध कर जन्म दिया है।

मां-पापा, भाई-बहन, बाबा दादी नाना-नानी, बुआ चाचा, मामा मौसी, नाते-रिश्तेदार, मित्रगण, मायका ससुराल इत्यादि... सभी अपनेपन से जुड़े रिश्ते...

लेकिन अपनों का सानिध्य तब होता है, जब मान-सम्मान, प्रेम, त्याग सब परस्पर हो। आगे से आगे बढ़कर एक दूसरे के लिए करने की इच्छा हो, किया जाता हो।

पर अगर करने वाला एक ही पक्ष हो, मान-सम्मान प्रेम त्याग सब एक ही पक्ष को करना हो और दूसरा सिर्फ़ करवाने में विश्वास करता हो, तो ऐसे में दो बात कहेंगे, एक तो उसके लिए आप का कोई मूल्य नहीं है, वो आपको बहुत हल्के में लेता है, और दूसरी बात जो समझने वाली है कि आप अपनों के सानिध्य में नहीं है बल्कि स्वार्थियों के सानिध्य में हैं।

इस तरह के रिश्ते में बंधे रहना, केवल अपने सामर्थ्य को नष्ट करना है और अपने मन को आघात पहुंचाना है...

ऐसे में यही कहूंगा कि जीवन ऐसे अपनों का सानिध्य तो बिल्कुल नहीं है... 

दूसरा प्रश्न था कि क्या धनार्जन जीवन है? तो सुनो..

आगे पढ़े, जीवन क्या है (भाग -4 ) में...

Saturday, 22 February 2025

Story of Life : जीवन क्या है (भाग-2)

जीवन क्या है (भाग-1) आगे… 

जीवन क्या है (भाग-2)


अनुष्का ने कहा, महाराज जी, मेरे प्रश्न इन सबसे अलग हैं और थोड़े अधिक समय लेने वाले, क्या मुझे कुछ अधिक समय मिलेगा?

क्योंकि प्रश्न तो सबको ही सुनाई दे रहे थे तो यह, सुनकर सब शोर मचाने लगे कि अधिक समय न दिया जाए, क्योंकि अभी बहुत लोग बचे हैं और सबको ही अपनी-अपनी उलझनों का हल चाहिए...

साधु महाराज ने कहा... सभी शांत हो जाइए, इस बेटी को कितना समय दिया जाएगा, यह इसके द्वारा पूछे गए प्रश्न निर्धारित करेंगे... मैं यहां लोगों की उलझन ही सुलझाने आया हूं, तो किसी को भी निराश होकर नहीं जाना होगा। 

अनुष्का ने कहना शुरू किया..

महाराज, जीवन क्या है?

क्या अपनों का सानिध्य जीवन है?

या धनार्जन जीवन है?

या सफलता जीवन है? 

या फिर ईश्वर में समर्पण जीवन है?

साधु महाराज ने कहा, बेटी तुम्हें अपने भविष्य से जुड़े किसी प्रश्न का उत्तर नहीं जानना है?

नहीं महाराज...

या यह कहूं कि हां जानना है, या फिर यह कि इन्हीं प्रश्नों के उत्तर से ही मेरा भविष्य निर्धारित होगा...

चंद क्षण महाराज मौन रहे, फिर बोले बेटी तुमने जो प्रश्न पूछे हैं, वो वही पूछ सकता है जो प्रेम से परिपूर्ण हो, जिसने अपना सर्वस्व अपनों पर निछावर कर दिया हो, जिसके लिए सफलता असफलता से पहले उसके अपने हों बल्कि यह कहना उचित होगा कि उसके लिए अपने अस्तित्व से पहले अपने हों...

पर तुम्हें पता है, जिसने यह जान लिया, उसने जीवन का सही अर्थ जान लिया।

मैं बहुत सी जगह गया और लोगों ने मुझसे न जाने कितने प्रश्न पूछे और मैंने उत्तर दिए।

सबके प्रश्नों के उत्तर देने के पश्चात् लगता था कि इतनी अधिक मोह-माया से भरे संसार में कहीं भी सच्चा स्नेह नहीं व्याप्त है।

लोग अपने से ऊपर उठकर अपनों के लिए भी नहीं सोचना चाह रहे हैं। 

इसलिए शायद तुमने ध्यान दिया हो कि लोगों के प्रश्न सबको सुनाई दे रहे थे, पर मेरे उत्तर सिर्फ प्रश्न पूछने वाले को ही...

हां महाराज, मेरे मन में भी यह विचार आया था, पर इसका कारण पूछने की आप से हिम्मत नहीं हुई...

बेटी ऐसा इसलिए, क्योंकि उनके प्रश्न तो सामान्य थे, पर उनके उत्तर व्यक्ति विशेष से जुड़े होते थे तो सबको क्या सुनाता...

पर तुमने जो पूछा है, उनके हल‌ सबको सुनने चाहिए, अतः इन प्रश्नों के उत्तर सबको सुनाई देंगे।

और एक बात, तुम्हारे प्रश्नों के उत्तर देने ही मैं यहां आया था। मुझे तुम्हारे आने का पूर्वाभास हो गया था और मैं तुम्हारी ही प्रतिक्षा कर रहा था।

इतने बड़े साधु महाराज की बातें और प्रश्नों के उत्तर की प्रतीक्षा, सभी मौन होकर करने लगे, क्योंकि हर किसी के मन में कहीं न कहीं यही प्रश्न कौतूहल की स्थिति बनाए हुए थे।

साधु महाराज ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा...

प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए पढ़ें, जीवन क्या है (भाग-3)।

Friday, 21 February 2025

Story of Life : जीवन क्या है (भाग-1)

 जीवन क्या है (भाग-1)


पूरे शहर में चर्चा थी कि एक बहुत पहुंचे हुए साधु महाराज आए हुए हैं, और हर किसी के मन की उलझन सुलझा रहे हैं।

ऐसे में अनुष्का का भी मन हुआ कि जीवन के रहस्य को समझा जाए। तो वो भी उस ओर चल दी। 

हालांकि उसे जल्दी इस तरह के लोगों से मिलने में कोई विशेष रुचि नहीं होती थी, फिर भी न जाने क्या उसे उस ओर खींच रहा था।

जब वो वहां पहुंची तो उसने देखा कि वहां बहुत ज्यादा भीड़ थी और हर किसी को भविष्य जानने की इच्छा थी, चाहे वर्तमान में कोई कुछ भी कर रहा हो।

जिसका भी नम्बर आता, उसके हाथों में पुष्प देकर साधु महाराज के निकट जाने को कह दिया जाता। 

बहुत देर में जब उसका नम्बर आया तो उसे भी पुष्प दे दिए गए, उनमें कुछ अलग ही तरह की खुशबू थी। जिससे उसका रोम-रोम महकने लगा।

उसने साधु महाराज को प्रणाम किया, उनके मुख पर विशेष शांति और तेज विद्धमान था। उसने पुष्प को उन पर अर्पित करने के लिए हाथ आगे बढाया।

साधु महाराज ने कहा, नहीं बेटी, यह पुष्प मुझ पर अर्पित करने के लिए नहीं हैं। यह तुम अपने साथ रखना और जाते समय तुम्हें एक विशेष कक्ष में ले जाया जाएगा, वहां तुम जिसे चाहे यह पुष्प अर्पित कर देना। 

साधु महाराज की बात सुनकर अनुष्का थोड़ी सोच में पड़ गयी कि ऐसा भी क्या विशेष कक्ष होगा? 

बाकी दूर से उसे नहीं दिख रहा था कि लोग पुष्प हाथ में लिए थे कि उन्होंने साधु महाराज को अर्पित कर दिया था..

एक बात और थी कि लोग प्रश्न क्या पूछ रहे हैं वो सबको सुनाई दे रहा था, पर साधु महाराज उत्तर क्या दे रहे हैं, यह सिर्फ प्रश्न पूछने वाले को सुनाई दे रहा था। 

अनुष्का ने कहा, महाराज जी, मेरे प्रश्न इन सबसे अलग हैं और थोड़े अधिक समय लेने वाले, क्या मुझे कुछ अधिक समय मिलेगा?

उसने देखा था कि किसी को भी बहुत अधिक समय नहीं दिया जा रहा था, पर वो अपने हर प्रश्न का उत्तर जानना चाह रही थी और साथ ही अधिक समय भी..

क्योंकि प्रश्न तो सबको ही सुनाई दे रहे थे तो यह सुनकर सब शोर मचाने लगे कि अधिक समय न दिया जाए, क्योंकि अभी बहुत लोग बचे हैं और सबको ही अपनी अपनी उलझनें सुलझानी है ...

साधु महाराज ने कहा...

आगे पढें जीवन क्या है (भाग - 2) में

Wednesday, 19 February 2025

Short Story : मेहनत की कीमत

आज एक सच्ची कहानी साझा कर रहे हैं, इसे पूरी पढ़िएगा, इसमें parenting की tip भी छुपी है। कोई ज़रूरी नहीं है कि बहुत पढ़े-लिखे लोग ही parenting को सही से समझ पाएं...

बच्चों को सही दिशा निर्देश, कैसे देना है... कैसे उनके भविष्य को निखारना है, यही प्रदर्शित करती है आज की short story..

मेहनत की कीमत


नितिन और दमयंती एक छोटे से गांव में रहते थे, पर उनकी आकांक्षाएं बहुत बड़ी-बड़ी थीं।

वो औरों की तरह, गांव में रहकर कम में जीना नहीं चाहते थे, बल्कि वो चाहते थे कि जिस तरह से उन्होंने अपना बचपन बीता दिया, वैसा उनके बच्चों का न हो।

बस यही सोच, उन्हें दिल्ली जैसे बड़े शहर में ले आई। पर यहां आकर उन्हें एहसास हुआ कि सब कुछ उतना आसान नहीं था, जैसा उन्होंने सोचा था। 

ज़िंदगी जितनी आसान गांव में थी अपनों के बीच, शहर में उतना ही अधिक संघर्ष करना पड़ रहा था। 

पढ़े-लिखे वो ज्यादा थे नहीं, अतः नितिन ने मेहनत मजदूरी शुरू कर दी, साथ ही कुछ हुनर भी सीखना शुरू किया, जैसे मिस्त्री का काम, रंग-रोगन, आदि... 

नितिन और दमयंती ने जब उनकी बेटी हुई, तो यह निर्णय लिया,  कि बच्चे दो ही करेंगे, चाहे दूसरा बच्चा भी बेटी ही क्यों न हो। गांव में जैसे बहुत बच्चे होते हैं, हम वैसा नहीं करेंगे।

पर भगवान ने उनकी अधिक परीक्षा नहीं ली और दूसरा बच्चा बेटा हुआ। लेकिन परिवार बढ़ने से अब अकेले नितिन की कमाई से घर नहीं चल रहा था। खाने-पीने का इंतजाम तो फ़िर भी हो जाता था, पर उनका सोचना था कि हम नहीं पढ़ें हैं, पर बच्चों को जरूर पढ़ाएंगे। उतनी कमाई तो कैसे भी नहीं हो रही थी।

तो परिवार की जरूरत पूरी करने के लिए, दमयंती भी नितिन के साथ चल दी, मेहनत-मजदूरी करने के लिए... 

दोनों की कमाई से घर ठीक-ठाक चलने लगा था, लेकिन इसमें बच्चों का ध्यान रखना मुश्किल हो रहा था। पर सब तो नहीं मिल सकता था।

बिटिया नलिनी तो पढ़ने में अच्छी थी, पर बेटा शिखर, खेल तमाशे में ज्यादा रहता था और पढ़ता कम था।

मां-बाप कहते, पढ़-लिख लो, तो कुछ अच्छा कर लोगे, तुम्हारे कारण ही गांव छोड़ा और मेहनत-मजदूरी कर रहे हैं। पर शिखर मस्ती में ही रहता। 

जब शिखर छोटा था, तब तो दिन गुज़र गए पर जब वो बड़ा होकर भी न सुधरा तो, नितिन और दमयंती बहुत चिंतित रहने लगे। 

आखिर बहुत सोच-विचार कर नितिन ने शिखर से कहा कि मैंने तुम्हारे लिए अपने मालिक से बात कर ली, तुम भी हमारे साथ काम करना।

शिखर सहर्ष तैयार हो गया। उसे अपने माता-पिता की मेहनत कभी बड़ी लगी ही नहीं थी। वो सोचता था, सारे दिन बालू-cement में हाथ डालना कौन बड़ी मेहनत का काम है। 

पर यह सुनकर दमयंती बहुत चिंतित हो उठी, मेरा नाजुक, छोटा सा बेटा इतनी मेहनत का काम कैसे कर पाएगा?

उसने हौले से नितिन से पूछा, तब नितिन ने दृढ़ता से कहा कि कुछ समझ, सिर पर पड़े, तभी आती है... तो वो चिंता न करे, फिर अपनी आंखों के सामने ही तो होगा।

दमयंती फिर कुछ न बोली, कहीं न कहीं वो जानती थी कि नितिन से बेहतर शिखर के लिए कोई नहीं सोच सकता...

जब शिखर वहां पहुंचा तो मालिक ने drill mechine पकड़ा दी और tiles तोड़ने को कहा।

शिखर, drill mechine लेकर खड़ा हो गया। पर थोड़ी ही देर में आह! कितना कठिन है यह... हर पल टूट कर उछलती हुई tiles का आंख पर जाने का खतरा था। साथ ही इतने force के साथ machine चल रही थी तो उसको संभालना भी चंद‌ घंटों में भारी लग रहा था और धूल तो इतनी की सांस लेना दूभर हो चला था।

5-6 घंटे काम करने के बाद खाना खाने का समय हो गया था। पर हाथ में रोटी तोड़ने लायक भी जान‌ नहीं लग रही थी।

थोड़ी देर में ही वापस काम करने के लिए सब चल पड़े... इतनी जल्दी.. अरे थोड़ा तो आराम कर लेने दो...

पर जाना पड़ा, अब drill mechine नहीं दी गई थी और बालू-cement का मसाला तैयार करना था। पर उसे तैयार करने में उंगलियां कटने लगी।

जब शाम हुई तो सबको पैसे दिए गए, दिनभर की अथक परिश्रम के 700 रुपए मिले। इतनी मेहनत के बस इतने?...

शाम को घर पहुंचने के पश्चात् शिखर बिस्तर पर गिरा, तो बड़ी मुश्किल से खाना खाने के लिए उठा।

ऐसे ही एक हफ्ते तक वो नितिन और दमयंती के साथ काम पर जाता रहा। और रोज़ थककर चूर हो जाता।

एक हफ्ते बाद उसने नितिन और दमयंती के पांव पकड़ लिए और रोने लगा। मैं समझ गया कि आप लोग कितनी अधिक मेहनत करते हो। 

अब मैं बहुत मेहनत से पढ़ाई करूंगा और आपका सपना पूरा करुंगा।

शिखर अब जी जान से पढ़ाई करने लगा। उसने लक्ष्य साधा कि वो इतनी मेहनत करेगा कि आने वाले railway clerical exam में वो जरूर से select होगा।

अब उसे कभी पढ़ने के लिए नहीं टोकना पड़ता था, क्योंकि वो मेहनत की कीमत समझ चुका था और यह भी जान चुका था कि उसके बेहतर भविष्य के लिए उसके माता-पिता कमर-तोड़ मेहनत कर रहे हैं। 

और अब उसकी बारी है, अथक परिश्रम कर एक अच्छा मुकाम हासिल कर उन्हें जीवन पर्यन्त, आराम कराए और सुख दे।

Thursday, 13 February 2025

Article : World Radio Day

आज का यह article आधारित है, एक ऐसी वस्तु पर, जिसकी परिकल्पना के बिना 70s की दुनिया अधूरी है।

हम बात कर रहे हैं radio की... 

उस दौर में शोर नहीं था और न ही लोग दिखावे के लिए busy हुआ करते थे।

उस ज़माने का संगीत सबसे ज्यादा कर्णप्रिय था और उससे सुनने के लिए लोगों के पास वक्त भी था।

और संगीत को सुनने का साधन था, radio, transistor, recorder, tape recorder etc.

इसमें radio and transistor सबसे अधिक लोकप्रिय थे, क्योंकि यह न केवल मनोरंजन के साधन थे, बल्कि उसके साथ ही news, information etc. भी इसी से मिलती थी।

आज radio के आगे television और उससे आगे computer, internet and mobile आ चुका है।

हम लोग जब बच्चे थे, वो दौर था, जब, radio को पीछे छोड़ते हुए television बड़ी तेज़ी से हम लोगों के जीवन का हिस्सा बनता जा रहा था। और उसके बाद जवानी के साथ computer, mobile and internet भी जुड़ते चले गए।

पर हमारे मां-पापा और उनके माता-पिता के समय radio ही जीवन का अभिन्न हिस्सा थे।

उस समय, शायद ही कोई ऐसा होगा, जो विविध भारती और बिनाका संगीत माला का दीवाना न हो, उस पर अमीन सयानी जी की आवाज तो भुलाए न भूली जाती थी। 

आजादी की लड़ाई से जुड़ी बातें और देश की आजादी, सबका साक्षी है radio..  

आकाशवाणी से FM तक जुड़ना, prestigious बात होती है...

आज radio पर लिखने का ख्याल कहां से आया, यही सोच रहे हैं न आप.. अरे भाई, आज world radio day है, तो उस पर लिखना तो बनता है ना...  

World Radio Day 


Radio कई लोगों के लिए एक शाश्वत जीवनरेखा रहा है - लोगों को सूचना देने, प्रेरित करने और जोड़ने का काम करता है। समाचार और संस्कृति से लेकर संगीत और कहानी कहने तक, यह एक शक्तिशाली माध्यम है जो रचनात्मकता का जश्न मनाता है।

World radio day, हर साल 13 फरवरी को समाज और संस्कृति को वैश्विक स्तर पर आकार देने में radio के महत्व को स्वीकार करने और उसका जश्न मनाने के लिए मनाया जाता है।

यह विभिन्न समुदायों में information, education and entertainment को बढ़ावा देने में radio के महत्व को पहचानने का दिन है। आइए, आज, खासकर digital era में, radio के इतिहास, महत्व और भूमिका के बारे में गहराई से जानें।

UNESCO (United Nations Educational, Scientific and Cultural Organization) ने 2011 में world radio day की घोषणा की।

जिसमें आधिकारिक तौर पर सूचना के प्रसार में radio के प्रभाव को मान्यता दी गई। 13 फरवरी की तारीख इसलिए चुनी गई क्योंकि यह 1946 में united nations radio के foundation की anniversary है। UNESCO द्वारा world radio day घोषित करने का उद्देश्य रेडियो के सभी रूपों, विशेष रूप से ग्रामीण और वंचित क्षेत्रों में इसके महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाना था। 

Radio के उसी सुरीले, प्यार भरे दिन को समर्पित आज का article... Happy World Radio Day 📻 

Wednesday, 12 February 2025

India's Heritage : रविदास जयंती

आज बच्चों के school में छुट्टी है, वजह - रविदास जयंती।

पर यह रविदास जी थे कौन? और ऐसा क्या विशेष था कि उनकी जयंती पर छुट्टी कर दी गई? 

रविदास जी संत शिरोमणि और भक्ति रस के कवि और समाज के पथ प्रदर्शक थे।

संत शिरोमणि तो कबीरदास, तुलसीदास, मीराबाई आदि बहुत लोग थे, फिर बाकी जयंती पर तो छुट्टी नहीं होती है।

आइए, आज India's Heritage segment में उनके विषय में जानते हैं।

रविदास जयंती


रविदास जी का जन्म वाराणसी में माघी पूर्णिमा के दिन हुआ था। कहा जाता है कि उस दिन रविवार था, तो बस रविवार के कारण ही उनका नाम रविदास रख दिया गया।

कई पुरानी पांडुलिपियों में उन्हें रायादास, रेदास, रेमदास और रौदास के नाम से भी जाना गया है।

उनका जन्म एक चर्मकार के घर पर हुआ था, अतः रविदास जी भी चमड़े से सामान, जूते आदि बनाने का ही कार्य करते थे। 

वह जात से चमार थे और उस समय जात-पात को लेकर विभिन्न कट्टर नियम थे। पर उन्होंने कभी उन पर ध्यान नहीं दिया और ईश्वर भक्ति और अपने कर्म को प्रधानता दी।

उन्होंने जात-पात से जुड़ी कुरीतियों का पुरजोर विरोध किया और समानता का समर्थन किया।

उनका मानना था, कोई भी व्यक्ति जन्म से नीच नहीं होता है, बल्कि अपने दुष्कर्मों से नीच होता है। और यह बात उन्होंने अपने जीवन में चरितार्थ भी किया, और संत शिरोमणि और समाज सुधारक कहलाए।

उनसे जुड़ी हुई कुछ घटनाएं साझा कर रहे हैं, जिनसे आप खुद कहेंगे कि कर्म ही सर्वोच्च है।


एक बार की बात है, एक राजा ने रविदास जी को अपने जूते बनाने का आदेश दिया। संत रविदास जी ने आदेश सहर्ष स्वीकार किया, क्योंकि वो तो उनका काम ही था।

रविदास जी जूता बनाने का कार्य भी ऐसे कर रहे थे, जैसे ईश्वरीय आराधना में लीन हों।

जूता लेकर वो राजदरबार में पहुंचे। जैसे ही राजा ने जूता पहनने के लिए पैर आगे बढ़ाया, एक चमत्कार हुआ और जूता सोने में बदल गया।

सब देखकर हैरान हो गए, राजा ने चमत्कार के पीछे का कारण पूछा, तो रविदास जी बोले, मैंने अपना काम पूर्ण निष्ठा और ईश्वरीय भक्ति में किया था। जो चमत्कार हुआ, वो तो ईश्वर की कृपा है।

ईश्वर की भक्ति काम करते हुए मतलब? लोगों के मन में शंका हुई, यह कैसी भक्ति?

तब रविदास जी बोले, ईश्वर की भक्ति केवल पूजा-पाठ द्वारा ही नहीं की जाती है, बल्कि निष्काम और निष्ठा से किया गया कार्य भी ईश्वर भक्ति है।

सब उनकी इस बात को सुनकर उनके भक्त हो गये।


एक और बार की बात है, संत रविदास जी अपनी झोपड़ी में जूते बनाने का काम कर रहे थे। एक दिन उनके यहां एक सिद्ध साधु पहुंचे। रविदास जी ने उस संत की बहुत सेवा की। सेवा से प्रसन्न होकर सिद्ध संत ने रविदास को एक पत्थर दिया और कहा कि ये पारस पत्थर है। लोहे की जो चीज इस पत्थर पर स्पर्श होती है, वह सोने की बन जाती है। इस पत्थर की मदद से तुम धनवान बन सकते हो।

रविदास जी ने पारस पत्थर लेने से मना कर दिया। उन्होंने कहा कि मुझे इसकी जरूरत नहीं है, मैं अपनी मेहनत से जो कमाता हूं, उससे मेरा काम हो जाता है।

रविदास जी के मना करने के बाद भी साधु ने उनकी बात नहीं मानी और उस पत्थर को झोपड़ी में ही एक जगह रख दिया और कहा कि तुम जब चाहो, इसका इस्तेमाल कर लेना। ऐसा कहकर वह संत वहां से चले गए।

काफी समय बाद वह संत फिर से रविदास जी के पास पहुंचे। उन्होंने देखा कि रविदास की स्थिति में कोई बदलाव नहीं हुआ है, वे आज भी उसी झोपड़ी में रह रहे हैं।

रविदास जी की हालत देखकर साधु ने पूछा कि मैंने आपको पारस पत्थर दिया था, क्या आपने उसका इस्तेमाल नहीं किया?

रविदास जी ने कहा कि वह पत्थर तो वहीं रखा, जहां आप रख गए थे।

साधु ने देखा तो पारस पत्थर वहीं रखा था। साधु ने रविदास जी से पूछा कि आप इसके इस्तेमाल से धनवान बन सकते थे, लेकिन आपने ऐसा क्यों नहीं किया?

संत रविदास ने कहा कि अगर मैं धनवान हो जाता तो मुझे धन की रखवाली करने की चिंता होती। मैं दान करता तो मेरे यहां लोगों की भीड़ लगी रहती और मेरे पास भगवान का ध्यान करने का समय ही नहीं बचता। मैं जो कमाता हूं, मेरे लिए काफी है। मैं मेरे काम के साथ भगवान की भक्ति भी कर पाता हूं। मेरे लिए यही सबसे जरूरी है।

वह साधु रविदास जी की बात सुनकर प्रसन्न हो गए, उन्हें आशीर्वाद दिया और अपना पारस पत्थर लेकर लौट गए।


ऐसी और भी घटनाएं हैं, जो रविदास जी सबसे विशेष बनाते हैं, वह अगले वर्ष बताते हैं। 

अभी विराम देते हुए, संत शिरोमणि रविदास जी को उनकी जयंती पर शत-शत नमन...

Tuesday, 11 February 2025

Article : India - The Future AI Leader

आजकल पूरी दुनिया में जो technology सबसे आगे चल रही है, वो technology है AI... जिस तरह से, इससे हर field में advancements आ रहे हैं, उसको देखकर लगता है कि AI के बिना भविष्य की कल्पना करना नामुमकिन है।

आज france में दो दिवसीय AI action summit 2025 हो रहा है, जिसमें france host है और भारत सह-अध्यक्षता कर रहा है।

Technology की दुन‍िया में AI ने बड़ी क्रांति ला दी है और इसलिए दुनियाभर के देशों के बीच AI king बनने की होड़ लगी हुई।

चीन और अमेरिका तो इस होड़ में एक दूसरे को पीछे छोड़ने के लिए, साम-दाम-दंड-भेद, सब करने को तैयार हैं।

ऐसे में भारत भी AI field में बहुत तेजी से आगे बढ़ रहा है। 

आपको जानकर खुशी होगी कि artificial intelligence में भारत चौथे नंबर पर है। जिसमें सबसे ऊपर अमेरिका है, फिर चीन, ब्रिटेन, और उसके बाद भारत।

India - The Future AI Leader


भारतीय companies में AI की पैठ इतनी बढ़ चुकी है कि 70% companies में hybrid IT वाले AI का वातावरण है।

AI पर भारत अगले दो सालों में यानी 2027 तक 5.1 billion dollars यानी 44 हजार करोड़ रुपये खर्च करने वाला है। 

भारत में technology sector में अगले दो साल में artificial intelligence, generative AI and analytics में नौकरियों के, लगभग 1.2 लाख मौके बनेंगे। 

OpenAI के CEO और ChatGPT creator, Sam Altman, अपने भारत के दौरे पर आए और उन्होंने बताया कि भारत AI and OpenAI के लिए महत्वपूर्ण बाजार है और भारत AI sector में एक leader के तौर पर सामने आ सकता है। 

यह सब देखकर, जानकर, यही समझ आता है कि भारत बहुत तेजी से विकासशील देश से विकसित देश में बदलता जा रहा है।

फिर field चाहे, space हो या AI, defence हो या finance, sports हो या अध्यात्म... हर ओर गूंजता, बस एक ही नाम, भारत, भारत, भारत...

बदलती दुनिया, बदलता विज्ञान और आगे ही आगे बढ़ता हिन्दुस्तान...

ऐसे में यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि, बहुत जल्द, India will become the AI leader. 

जय हिन्द, जय भारत 🇮🇳 

Monday, 10 February 2025

Recipe : Instant Rava Appe

आज एक ऐसी recipe share कर रहे हैं, जो बहुत लोगों को बनानी आती है, पर हमारी एक viewer को हमारे बनाए हुए अप्पे बहुत ही पसंद आते हैं और उनकी demand थी, कि हम इसकी recipe ज़रूर से share करें..

तो आप भी देख लीजिए और एक बार इस तरह से भी बना कर देखिएगा, हो सकता है आपकी भी सोच हमारे viewer से मिल जाए, means कि आप को भी लगे, इस तरह से बनाए तो सभी से बहुत वाहवाही मिली...

पर अगर आपको अप्पे बनाने नहीं आते हैं, तब तो जरूर से इसे try कीजिएगा, यह instantly prepare होने वाली बहुत ही healthy dish है। 

इसमें बहुत सारी veggies डाली जाती हैं, इसलिए इसको बनाकर आप बच्चों को बहुत-सी veggies, tasty form में खिला सकते हैं।

Instant Rava Appe


A) Ingredients :

  • Semolina - 250 gm.
  • Malai - 1 cup 
  • Curd - 1 tbsp. 
  • Milk - 1 cup 
  • Salt - as per taste 
  • Onion -  1 tbsp. (finely chopped)
  • Tomato - 1 tbsp. (finely chopped)
  • Capsicum - 1 tbsp. (finely chopped)
  • Carrot - 1 tbsp. (finely chopped)
  • French beans - 1 tbsp. (finely chopped)
  • Clarified butter (ghee) - as per taste
  • Baking powder - 1 tsp.


B) Method :

  1. सूजी में मलाई, दही, नमक डालकर अच्छे से mix कर लें और ½ hour के लिए रख दीजिए।
  2. सारी veggies सूजी में डालकर अच्छे से mix कर दें। 
  3. अब इसमें धीमे-धीमे दूध मिलाकर,  pouring consistency का घोल तैयार कर लीजिए।
  4. अब इसमें baking powder डालकर mix कर लीजिए।
  5. अप्पे बनाने वाले pan में घी लगाकर गर्म कर लीजिए।  
  6. गर्म pan में सूजी के mix को डालकर, lid को ढक दीजिए और flame slow कर दीजिए।
  7. 5 to 7 minutes बाद lid हटाकर, अप्पे पर घी लगा दीजिए।
  8. अब सारे अप्पे पलट दीजिए।
  9. दोनों तरफ से हल्का सुनहरा होने तक उलट-पलट कर सेंक लीजिए।

Your Instant Rava Appe are ready to serve. You can serve it with sauces, chutney or dips etc.


C) Tips and Tricks :

  • हमने जो change किया है, वो है curd की जगह मलाई। मलाई होने के कारण ही अप्पे का taste next level पर पहुंच जाता है, उसके कारण taste में बहुत से enhancement होते हैं, जैसे; अप्पे खट्टे नहीं लगते हैं, अप्पे soft ज्यादा बनते हैं।मलाई डालने से घी भी कम लगाना पड़ता है, क्योंकि मलाई गर्म होने से itself घी छोड़ती है।
  • Curd का थोड़ा amount डालने से वो baking powder को अच्छा kick देता है। इसलिए थोड़ा सा दही डालना जरूरी है। 
  • दूध add करने से सूजी बहुत अच्छा flavour देती है और appe बहुत ही अच्छे बनते हैं।
  • आप baking powder की जगह eno भी use कर सकते हैं। 
  • ध्यान रखिएगा कि दूध धीमे-धीमे डालना है, means जितने दूध को डालने से pouring consistency आ जाए, बस उतना ही दूध डालना है। वो ½ cup से 1½ या 2 cup तक हो सकता है। 
तो बना रहे हैं ना, एक बार ऐसे भी?

Saturday, 8 February 2025

Article : Double engine in Delhi

Double engine in Delhi


26 साल बाद BJP की दिल्ली में जीत के साथ ही दिल्ली में भी double engine की सरकार आ गयी है।

इससे पहले 1993 से 1998 तक BJP का शासन था।

पर उसके बाद लगातार 6 बार हार का सामना करना पड़ा था।

BJP बहुत से राज्यों में जीतती जा रही थी, पर उसका विजयी रथ, दिल्ली पर जाकर रुक जाता था।

पर इस बार BJP ने 48 votes के साथ दिल्ली में जीत कर अपनी विजय सिद्ध की।

इसके साथ ही BJP ने भारत के 21 राज्यों पर विजय हासिल कर ली है।

2014 के बाद नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में BJP ने एक के एक जीत हासिल की है। 

यही कारण है कि BJP का एक नारा, यह भी रहता है कि मोदी है तो मुमकिन है... 

अन्ना हजारे भी BJP की जीत से प्रसन्न हैं, यह बात भी BJP के लिए एक सकारात्मक शुरुआत है।

पर यह जीत, एक अच्छी खबर है, भारत के लिए या नहीं...

यह तो समय बताएगा...

किन्तु एक बात पूरी तरह से clear हो रही है कि Free की राजनीति, केवल गर्त की ओर ले जाती है।

और इसका उदाहरण है, AAP की हार... 

हर एक को उम्मीद है कि BJP सरकार, जैसे गुजरात, उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों को निखार रही है, दिल्ली को भी निखारेगी।

और दिल्ली को निखारना भी चाहिए क्योंकि दिल्ली दिल है भारत का, राजधानी है भारत की...

दिल्ली का सर्वांगीण विकास ही वास्तव में भारत को विश्व विजयी बनाएगा।

BJP, आपको जीत की बधाइयां, इस उम्मीद के साथ की अब भारत आगे ही आगे बढ़ेगा...

Friday, 7 February 2025

Short Story : सपनों की उड़ान

सपनों की उड़ान


स्नेहा बहुत ही मासूम, चंचल, और कुशाग्र बुद्धि की लड़की थी। वो  पढ़ाई में इतनी होशियार थी कि पूरा गांव कहता था कि यह एक दिन हमारे गांव का नाम जरूर रोशन करेगी, बस थोड़ा फुदकना छोड़ दें। 

पर स्नेहा तो कापी-किताब के साथ भी पेड़ों पर ही मिलती थी।

उसके दिनभर इधर-उधर फुदकने के कारण, वो स्नेहा के नाम से कम और गिलहरी के नाम से ज़्यादा मशहूर थी।

दिन, साल, महीने गुजरते गए। स्नेहा बड़ी हो चुकी थी, उसका सपना IPS officer बनने का था, तो वो बहुत मन लगा कर पढ़ती थी, पर जब वो पढ़ते-पढ़ते थक जाती, तो बस पहुंच जाती पेड़ पर लटकने, इधर-उधर फुदकने...

उसने UPSC का Prelims, mains and interview exam qualify कर लिया। अब उसे कुछ ही महीनों में physical training के लिए जाना था। 

और एक दिन वो पेड़ पर से कूदते हुए गिर पड़ी और उसके पैरों में इतनी तेज चोट लग गई कि उसे bed rest के लिए बोल दिया गया।

सारे गांव भर से लोग उसे देखने आ रहे थे और वो सबसे यही कहती, आपकी गिलहरी ने फुदकना छोड़ दिया है।

उसकी इस बात से सबकी आंखों से अविरल धारा बह निकलती और सब उससे यही कहते, हमने ऐसे नहीं सोचा था। तुझे ही तो गांव का नाम रोशन करना था, अब तुम नहीं तो, कौन करेगा ऐसा...

एक दिन गांव के सरपंच आए, अपनी गिलहरी से मिलने, और आते से ही बोले, कैसी है मेरी गिलहरी? 

आपकी गिलहरी ने फुदकना छोड़ दिया...

कोई नहीं, सपनों की उड़ान तो नहीं छोड़ी न?

पर काका, कैसे उड़ूं? मेरे तो पंख ही टूट गये....

वो खूब ज़ोर से हंसे, फिर बोले, पंख कब टूटे? 

स्नेहा ने अपने पैर की ओर इशारा कर दिया...

अरे बिटिया यह तो पैर हैं।

सपनों के पंख नहीं...

सपनों के पंख.... वो क्या होते हैं? सोचती हुई स्नेहा, सरपंच जी को एकटक देखने लगी...

अरे गिलहरी इतना भी नहीं पता...

सपनों के पंख, कुछ कर दिखाने का जज्बा और जुनून देते हैं और जिनमें यह रहता है, उन्हें अपने सपनों की उड़ान भरने से कोई नहीं रोक सकता है।

न कोई इंसान और न कोई हालात... पर शायद तुम्हारे अंदर वो जज्बा और जुनून नहीं रहा..

वो मुझमें कम नहीं हुआ है काका...

तो बैठकर अफ़सोस किस बात का कर रही हो? उठो और उठाओ, पूरे जोश से अपने कदम अपनी मंजिल की ओर...

यह कहकर सरपंच जी, स्नेहा की wheelchair मैदान में ले आए।

स्नेहा ने अपने अंदर के आत्मविश्वास को झकझोरा और अपने घायल पैर पर खड़े होने की कोशिश की...

इस कोशिश में उसे बहुत दर्द हुआ, शायद चोट लगने से भी ज्यादा...

पर वो सरपंच जी को दिखाना चाह रही थी कि आज भी उसमें उतना ही जज्बा और जुनून है, अपने गांव को सर्वोच्च सिद्ध करने का...

अब से हर रोज़ सरपंच जी, कुछ देर के लिए उसके पास ज़रूर जाते।

उनका आना, स्नेहा को अपने को सिद्ध करने का सबब होता है।

हर रोज़ का प्रयास, स्नेहा को पूर्ण रूप से सक्षम बना गया और आखिर वो दिन भी आ ही गया, जब उसे physical training के लिए जाना था।

स्नेहा ने अपनी physical training complete की और वो सहायक पुलिस अधीक्षक (प्रशिक्षु) यानी ASP (trainee) के पद पर तैनात हो गई। 

और जब उसकी posting, अपने गांव पर थानाध्यक्ष के रूप में हुई, तो वो सबसे पहले अपने सरपंच जी के पास गयी और बोली, आपने मेरे सपनों को उड़ान भरने में जो सहयोग दिया था, आज उसके कारण ही मैं अपने और गांव वालों का सपना पूरा कर सकी।

आप सच कहते हैं, सपनों की उड़ान, जज्बे और जुनून से भरी जाती है और जिसमें यह क़ायम है, उसे अपनी मंजिल को पाने से कोई नहीं रोक सकता है, न कोई इंसान न कोई हालात... 

इतना कहने के साथ ही उसने सरपंच जी के पैर छू लिए और उनसे ढेरों आशीर्वाद अपनी झोली में समेट लिए...

Wednesday, 5 February 2025

Recipe : Muradabadi Dal Papdi Chaat

आज कल की parties पहले जैसी नहीं होती है, मतलब आज कल parties में main course से ज्यादा ध्यान different stalls or starter में दिया जाता है।

इसका एक बहुत बड़ा कारण यह है कि, इसके कारण parties में variety and freshness आ जाती है, साथ ही different states की cuisine एक ही जगह खाने में मिल जाती है।

तो चलिए, हम भी आपको एक ऐसी ही dish की recipe share कर देते हैं, जो कि winter parties की शान बनी हुई है, फिर चाहे चढ़ती ठंड हो, उतरती या हो अपने परचम पर, यह अपना दीवाना सब को बनाए हुए है।

इसका कारण यह है, कि यह बहुत healthy होने के साथ-साथ tasty भी गज़ब की है।

हमारा इसको share करने का एक और कारण भी है, जिसे सुनकर आप खुश हो जाएंगे, कि यह बहुत easily prepare भी हो जाती है।  

मुरादाबादी दाल पापड़ी चाट।

नाम सुनकर लगता है कि दाल के साथ तो रोटी या चावल खाया जाता है, तो दाल के साथ यह पापड़ी चाट क्या जुड़ गया है।

तो सच मानिए, यह बहुत ही unique flavour है, healthy and tasty combination का... 

दाल का दाल और चाट की चाट...

Muradabadi Dal Papdi Chaat


A) Ingredients :

I. Main recipe -

  • Moong dal - 250 grams
  • Turmeric powder - a pinch 
  • Papdi - 100 grams
  • Amul butter - 200 grams
  • Asafoetida - ½ tsp 
  • Salt - as per taste 
  • Lime juice - as per taste 
  • Coriander leaves - for garnishing 
  • Green chilli - as per taste 
  • Green chutney - as per taste 
  • Ginger juliens - for garnishing 


II. Special masala -

  • Salt - ½ tsp.
  • Black pepper - ½ tsp.
  • Black salt - ½ tsp.
  • Roasted cumin powder - ½ tsp.
  • Amchur powder - ½ tsp.
  • Dry coriander powder ½ tsp. (coarse)
  • Chilli flakes - for garnishing 


B) Method :

  1. धुली मूंग दाल को 2 घंटे के लिए soak करने रख दीजिए।
  2. Special masala के सारे ingredients मिला कर ready कर लीजिए। 
  3. Onion, green chilli, and coriander leaves को finely chop कर लीजिए। 
  4. धनिया की चटनी पीस लीजिए।
  5. मूंग दाल को pressure cooker में डालकर soaked दाल से two times ज्यादा पानी, नमक, हल्दी डालकर 2 whistle high flame पर, और 1 whistle slow flame पर आने तक पका लें।  
  6. Pressure down होने के बाद दाल को अच्छे से whisk कर लीजिए। 
  7. अब pressure cooker को slow flame पर रख दीजिए।
  8. फिर दाल में थोड़ा-थोड़ा मक्खन डालकर बराबर चलाते रहें, जब तक इसमें दूध के जैसी मलाई न पड़ जाए।
  9. Buttery, thick and smooth texture ही पहचान है, proper दाल के बनने की...
  10. अब इस दाल में तैयार special masala, चटनी, हरी, मिर्च, हरा धनिया, ginger julien और पापड़ी से garnish कर लीजिए।

The healthy and tasty Muradabadi Dal Papdi Chaat is ready to serve...


3) Tips and tricks :

  • दाल में पानी का ratio एकदम सही रहना चाहिए। न तो अधिक, वरना दाल का सूप बन जाएगा, न ही बहुत कम की दाल में गुठलियां पड़ जाए। 
  • दाल को लगातार चलाते हुए उसका creamy texture लाना है। अगर लगातार नहीं चलाएंगे, तो दाल नीचे से लग जाएगी। 
  • दाल atleast 2 hours के लिए soak करने ज़रूर से रखें। इससे ही दाल का दाना अंदर तक फूल जाएगा।क्योंकि दाल मूंग की लें रहे हैं, इसलिए over-night soak करने की जरूरत नहीं है।
  • धुली मूंग दाल ही लेनी है, छिलका मूंगदाल या साबुत मूंग दाल लेने से smooth texture नहीं आएगा और न ही देखने में tempting लगेगी।
  • इस में धुली मूंगदाल, butter and creamy texture, perfect दाल बनने के बस यही key ingredients है।
  • दाल में बहुत अधिक butter पड़ता है, जो कि salty होता है, और garnishing में भी special masala, chutney, पापड़ी आदि डालना है, साथ ही दाल के thick होने से भी salty taste बढ़ जाएगा। तो दाल boil करते समय नमक की quantity का ध्यान रखिएगा।
  • अगर आप को इसे और अधिक healthy बनाना है तो मैदे की पापड़ी की जगह, चावल की पापड़ी भी use कर सकते हैं।
  • अगर आप को onion के बिना पसंद न आए तो आप प्याज़ भी डाल सकते हैं। वैसे authentically onion नहीं पड़ता है।
  • टमाटर और मीठी चटनी भी डाल सकते हैं, पर उनका combination बहुत अच्छा नहीं जाएगा। पर अगर आपको खट्टा-मीठा flavour ही पसंद हो तो आप फिर इसमें, खट्टी-मीठी चटनी, दही और पापड़ी को डालकर चाट बनाइएगा। लेकिन फिर वो मटर पापड़ी चाट का flavour देगी, जो मुरादाबादी दाल पापड़ी चाट से entirely different होगा।

तो सोच क्या रहे हैं, बसंत की गुलाबी ठंड की महफ़िल जमाइए, सबके साथ मुरादाबादी दाल पापड़ी चाट का लुत्फ उठाइए...

Tuesday, 4 February 2025

Article : महाकुंभ महोत्सव - सोच का फ़र्क

महाकुंभ महोत्सव, जिसकी पूरे विश्व भर में चर्चा हो रही है, आपने सोचा, कभी पहले इतनी चर्चा क्यों नहीं होती थी?

आखिर इस साल ऐसा क्या हो गया है कि देश-विदेश में बच्चा-बच्चा जानता है कि महाकुंभ हर 12 वर्ष में आयोजित किया जाता है।

आखिर कैसे हर कोई जान रहा है कि महाकुंभ का आयोजन प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में होता है।

आखिर क्यों इन्हीं शहरों में आयोजित होता है।

हां, अगर आप को अभी भी नहीं पता है, तो महाकुंभ महोत्सव का article पढ़ सकते हैं।

पर इतनी अधिक चर्चा के पीछे की वजह क्या है?

महाकुंभ का आयोजन तो कांग्रेस और सपा के कार्यकाल में भी होता था...

पर इतना विशाल और भव्य नहीं। क्यों? आखिर क्यों? 

तो उसकी सिर्फ़ और सिर्फ़ एक ही वजह है, और वो है, सोच के फ़र्क की...

महाकुंभ महोत्सव - सोच का फ़र्क




कांग्रेस के काल में, महाकुंभ महोत्सव पर पहुंचने पर tax लगता था। आयोजन की सुव्यवस्था और सुरक्षा से उनका कोई लेना-देना ही नहीं होता था। 

उनके सोच में न तो, सनातन संस्कृति का महत्व था और न ही साधु-संत लोगों की कोई कद्र... 

नतीजा, महाकुंभ के विषय में विदेश तो क्या, देश में भी लोग बहुत अधिक नहीं जानते थे...

फिर आया, सपा का काल...

जिन्होंने राम मंदिर निर्माण न होने देने के लिए कार सेवकों को जेल भेज दिया और उस धार्मिक कार्य में, न जाने कितने लोगों की मृत्यु हो गई...

आपको लगता है कि वो समझते थे, महाकुंभ की महत्ता को?....

चलिए जब बात आई है, तो बताते हैं आपको...

महाकुंभ महोत्सव, सनातन संस्कृति का बहुत बड़ा महोत्सव होता है। अतः उसके आयोजन की सुरक्षा और व्यवस्था सुचारू रूप से हो, इसके लिए लगभग एक वर्ष का अथक प्रयास और परिश्रम चाहिए होता है।

पर सपा के काल में देखा जाए तो, उनका प्रयास कांग्रेस से तो काफ़ी हद तक ठीक था, पर पूर्णतः उचित कहना न्याय संगत नहीं होगा ।

उन्होंने जनवरी में होने वाले, इतने बड़े आयोजन की सुव्यवस्था का प्रारंभ करने के लिए नवम्बर में अनुमति दी और उससे भी बड़ी बात कि इस आयोजन का प्रमुख बनाया आज़म खां को...

यह कोई सामान्य आयोजन नहीं था कि उसका संचालन किसी ऐसे हाथों में सौंप दिया जाए, जिसको सनातन का स तक न पता हो।

जिसे न तो यह पता हो कि महाकुंभ क्यों कराया जाता है, न ही पता हो, मकरसंक्रांति, मौनी अमावस्या और बसंत पंचमी की विशेषता का...

उसे क्या मतलब, साधु-संत लोग से? और उनके क्रिया कलापों से...

पूरी सुरक्षा व्यवस्था के लिए चंद गोताखोर ही रखे गये थे, और क्या-क्या हुआ, वो तो क्या ही कहें। 

हां, क्या नहीं हुआ, वो जरूर से बता देते हैं। एक तो अखिलेश यादव, एक दिन भी नहीं गये अपने कार्यालय के महाकुंभ महोत्सव में और दूसरा है महाकुंभ महोत्सव के सुयश की देश-विदेश में चर्चा नहीं हुई....

इस बार की सुव्यवस्था की चर्चा तो संपूर्ण विश्व में ही हो रही है, फिर चाहे बात हो रही हो, देश-विदेश से आने वाले लोगों की, या महाकुंभ महोत्सव की भव्यता और दिव्यता की...

वहां की सुरक्षा व्यवस्था की, या वहां उपस्थित साधु-संत लोगों की अखंडता की...

वहां मिल रहे पुन्य की या वहां पर व्यापार या सेवा देने वाले लोगों के लाभ की...

और यह सब संभव हो रहा है, केवल सोच के कारण...

सनातन संस्कृति के महत्व को समझने के कारण...

साधु-संत लोगों को मान देने के कारण।

अपने देश को समृद्धशाली और विख्यात बनाने की इच्छा रखने के कारण...

जब सोच सही दिशा में होगी तो कार्य भी सही दिशा में ही होगा... सफल होगा, सुव्यवस्थित होगा और संपन्नता, दिव्यता, भव्यता और प्रसिद्धि लाने वाला होगा। 

फिर प्रत्यक्ष को प्रमाण क्या?

जो है सबके सामने है।

बहुत ही विशाल प्रांगण में आयोजन, मुफ़्त से लेकर बहुत महंगी व्यवस्था अर्थात् छोटे स्तर से लेकर बड़े स्तर के लोगों के रहने की, खाने-पीने की व्यवस्था, हर एक की सुचारू सुरक्षा के लिए 300 trained गोताखोर, श्रद्धालुओं को आने-जाने के लिए 50 हज़ार QR code लगाए गए हैं।

इस मेले में 75 हज़ार से ज्यादा पुलिसकर्मी तैनात किए गए हैं, जिसमें जिलाधिकारी (DM) और पुलिस अधीक्षक (SP) भी शामिल हैं।

इन पुलिसकर्मियों के अलावा, कई central agencies और paramilitary forces को भी शामिल किया गया है। साथ ही NSG के commando, special task force, anti-terror squad, NDRF, NCC के commando भी तैनात किए गए हैं।

सदियों से चले आ रहे शाही स्नान और पेशवाई का नाम बदलकर, उसे अमृत स्नान और कुंभ मेला छावनी प्रवेश रखकर उसे और अधिक सनातन संस्कृति से जोड़ दिया।

ऐसा नहीं कि प्रयागराज में बिल्कुल भी परेशानियां नहीं हो रही है, सड़कों में जाम लगना, लोगों से अनाप-शनाप मूल्य की मांग इत्यादि सब चल रहा है वहां...

पर क्या इसमें पूरी तरह सरकार को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है?

इतनी अधिक भीड़ की व्यवस्था, मेला प्रांगण में तो है, पर किसी शहर का क्षेत्रफल तो रातोंरात बड़ा नहीं किया जा सकता है। तो उस असुविधा को समझते हुए ही महाकुंभ के लिए प्रस्थान करना होगा।

जहां तक रही, मनमाने दाम की मांग, तो वो सरासर ग़लत है, क्योंकि यह तो उस शहर के मांग रखने वाले लोगों को सोचना चाहिए, कि उनकी चंद दिनों की कमाई, उनके अपने शहर का किस तरह अपयश कर रही है। 

उनके शहर में इतना बड़ा धार्मिक आयोजन हो रहा है तो कुछ धार्मिक सोच वो भी रख लें, लोगों से उचित दाम की मांग करें, वहां आने वाले लोगों की हर संभव मदद करें, वो भी उचित मापदंडों के साथ...

क्योंकि सरकार ने तो, मेला प्रांगण तक पहुंचने के लिए मुफ्त बस सेवा दी हुई है। पर सब तो उससे नहीं पहुंच सकते हैं।

जब सोच बड़ा करने की है, तो सोचना सही दिशा में हर एक को होगा।

हर एक को सनातन संस्कृति और देश की ख्याति को सर्वप्रथम रखकर एक साथ आगे बढ़ना होगा, तभी हमारा देश सर्वश्रेष्ठ बनेगा।

जय भारत, जय सनातन 🚩

Sunday, 2 February 2025

India's Heritage : बसंत पंचमी पर्व

आज बसंत पंचमी पर्व है। इस शुभ पर्व पर आप सभी को विशेष शुभकामनाएं 💐 

कभी आपके मन में आता होगा कि बसंत की पंचमी तिथि इतनी विशेष क्यों है, कि इस दिन को विशेष पर्व का स्थान दिया गया है?

चलिए, मां सरस्वती के आशीर्वाद के साथ ही आज का article शुरू करते हैं। मां सरस्वती का आशीर्वाद ही क्यों? वो भी बताते हैं आपको... 

आरंभ उससे करते हैं, जिस का अनुभव प्रत्येक इंसान ने किया है, जिसे सबने देखा है, जो प्रत्यक्ष है...

बसंत पंचमी पर्व


1) प्राकृतिक सौंदर्य :

भारत में पूरे साल को जिन छह ऋतुओं में बाँटा जाता था, उनमें वसंत लोगों का सबसे प्रिय मौसम होता है। और प्रिय मौसम होने के विभिन्न कारण हैं।

तब फूलों पर बहार आ जाती है, खेतों में सरसों का फूल, ऐसा प्रतीत होता है मानो सम्पूर्ण धरती पर सोना चमक रहा हो, जौ और गेहूँ की बालियाँ खिलने लगती है, आम के पेड़ों पर बौर आ जाती है और हर तरफ रंग-बिरंगी तितलियाँ मँडराने लगती हैं। फूल-फूल भंवरे भंवराने लगते हैं। 

ऐसा प्रतीत होता है मानो प्रकृति अपना सोलह श्रृंगार कर नवयौवना सी इठला रही हो। हर ओर सौन्दर्य ही सौन्दर्य दृष्टिगोचर होता है।

अतः वसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पाँचवे दिन पर एक बड़ा उत्सव मनाया जाता था, जिसमें सरस्वती माता, भगवान विष्णु और कामदेव जी की पूजा होती है, और यह वसंत पंचमी का त्यौहार कहलाता था।


2) माँ सरस्वती की पूजा :

मां सरस्वती विद्या, बुद्धि, ज्ञान और विवेक की देवी हैं। दूसरे शब्दों में मनुष्यों को अज्ञानता रूपी अंधकार से निकाल कर ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जाने वाली देवी... जो अंधकार से प्रकाश में ले जाएं, वो ही सर्वश्रेष्ठ है। 

धार्मिक मान्यतानुसार बसंत पंचमी के दिन ही मां सरस्वती का प्राकट्य हुआ था। 

यही कारण है कि बसंत ऋतु की पंचमी तिथि इतनी विशेष है और माता सरस्वती की पूजा इस दिन की जाती है। भारत में कुछ स्थानों में मां सरस्वती के सम्मान में इसे सरस्वती पूजा भी कहा जाता है।

क्योंकि मां सरस्वती का दिन है, तो ज्ञान, विद्या, बुद्धि, और विवेक का भी दिन है, अर्थात् गुरु पूजन का भी दिन है। इसलिए जिस जगह भी गुरु की महत्ता ही सर्वोच्च है, उन सब जगह पर बसंत पंचमी पर्व, सबसे विशेष पर्व के रूप में पूजा जाता है।


3) बसंत पंचमी का दिन :

बसंत पंचमी को बसंत ऋतु के आगमन के रूप में भी देखा जाता है। इस वर्ष पंचांग के अनुसार, माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि की शुरुआत 2 फरवरी की सुबह 9 बजकर 14 मिनट पर हो रही है और इस तिथि का समापन अगले दिन 3 फरवरी सुबह 6 बजकर 52 मिनट पर हो जाएगी।


4) बसंत पंचमी पर्व :

बसंत पंचमी को श्री पंचमी या सरस्वती पूजा के नाम से भी जाना जाता है। यह हिन्दूओं का विशेष पर्व है। 

इस दिन विद्या की देवी सरस्वती, कामदेव और विष्णु की पूजा की जाती है। यह पूजा विशेष रूप से भारत, बांग्लादेश, नेपाल और कई राष्ट्रों में बड़े उल्लास से मनायी जाती है। इस दिन पीले रंग का विशेष महत्व होता है।

अतः माँ का श्रृंगार पीला, जो पुष्प अर्पित किए जाते हैं वो पीले, भक्तगणों के वस्त्र पीले और चढ़ने वाला प्रसाद भी पीला, जैसे मीठे चावल, बूंदी, मोतीचूर के लड्डू, इत्यादि और भोजन में भी पीला खाना बनाया जाता है, जैसे तहरी, मसाला भात, कढ़ी चावल इत्यादि....

शास्त्रों में बसंत पंचमी को ऋषि पंचमी से उल्लेखित किया गया है, तो पुराणों-शास्त्रों तथा अनेक काव्यग्रंथों में भी अलग-अलग ढंग से इसका चित्रण मिलता है। 

बसंत पंचमी होलिका और होली की तैयारी की शुरुआत का भी प्रतीक है, जो चालीस दिन बाद होती है। पंचमी पर वसंत उत्सव (त्योहार) वसंत से चालीस दिन पहले मनाया जाता है, क्योंकि किसी भी मौसम का संक्रमण काल ​​40 दिनों का होता है और उसके बाद, मौसम पूरी तरह खिल जाता है। 


5) बसंत पंचमी पूजन मंत्र :

बसंत पंचमी पर्व में सभी बच्चों को माता सरस्वती का आशीर्वाद प्राप्त हो, अतः उनके साथ आप, मां सरस्वती का पूजन इन मंत्रों के साथ अवश्य कराएं :

या देवी सर्वभूतेषु बुद्धिरूपेण संस्थिता, नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।


अगर बच्चे कर सकें, तो इस स्तुति से भी मां सरस्वती का पूजन कर सकते है: 

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता

या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।

या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता

सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ॥ 1॥ 

शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं

वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌।

हस्ते स्फाटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्‌

वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्‌॥2॥

जिसका हिन्दी में अनुवाद कुछ इस प्रकार से है : 

जो विद्या की देवी भगवती सरस्वती कुन्द के फूल, चंद्रमा, हिमराशि और मोती के हार की तरह धवल वर्ण की है और जो श्वेत वस्त्र धारण करती है, जिनके हाथ में वीणा-दण्ड शोभायमान है, जिन्होंने श्वेत कमलों पर आसन ग्रहण किया है तथा ब्रह्मा विष्णु एवं शंकर आदि देवताओं द्वारा जो सदा पूजित हैं, वही संपूर्ण जड़ता और अज्ञान को दूर कर देने वाली सरस्वती हमारी रक्षा करें...

जिनके शरीर की कांति समस्त दिशाओं में बिखरती है, अपनी छवि से जिसने शिव सागर को भी अपना दास बना लिया है. मंद मुस्कान से जिसने शरद ऋतु के चंद्रमा को भी फीका कर दिया है. ऐसी श्वेत कमल के आसन पर विराजमान हे सुंदरी सरस्वती मैं आप की वंदना करता हूं।


इसी के साथ ही अपनी कलम को विराम देते हैं। मां सरस्वती के आशीर्वाद से आप सभी का जीवन सुखद और उज्जवल रहे 🙏🏻 

Saturday, 1 February 2025

India's Heritage : प्राकट्य, माँ सरस्वती का

प्राकट्य, माँ सरस्वती का


बात उस समय की है जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण किया।

पेड़-पौधे, पशु-पक्षी आदि बनाने के पश्चात् उन्होंने मनुष्य की रचना की...

जब सम्पूर्ण सृष्टि का निर्माण हो गया, तो वह धरती पर भ्रमण करने के लिए आए।

उन्हें अपनी हर कृति पर बहुत नाज़ हो रहा था। लहलहाती हुई प्रकृति, झूमते हुए पशु-पक्षी, सब वैसे ही थे, जैसी उन्होंने कल्पना की थी।

अंत में वो वहां गए, जहां मनुष्य थे। पर मनुष्यों को देख कर उन्हें बहुत ही ग्लानि हुई। 

क्योंकि मनुष्य को बनाकर उन्हें लगा था कि उन्होंने बहुत ही सर्वश्रेष्ठ कृति की रचना की है, पर ऐसा कुछ नहीं था। क्योंकि मनुष्यों और पशुओं में कोई विशेष अंतर नहीं था।

मनुष्य भी पशुओं के समान ही बुद्धिहीन और मूकबधिर सा प्रतीत हुआ...

क्षुब्ध होकर ब्रह्म देव, वापस ब्रह्मलोक में लौट आए।

उन्हें व्यथित देखकर भगवान श्री हरि बोले, “हे ब्रह्म देव! आप के दुःख का निवारण आपके अंदर ही निहित है।”

श्री हरि के इतना कहते ही ब्रह्म देव ने आह्वान किया तो एक अत्यन्त तेज़ और ओज से परिपूर्ण श्र्वेत वस्त्र को धारण किए हुए हंस पर विराजमान देवी प्रकट हुई। उनके हाथों में वीणा और अक्ष माला थी।

ब्रह्म देव, उन्हें देख कर बहुत प्रसन्न हुए।‌ देवी का रूप और गुण देखकर उनका नाम माता सरस्वती रखा गया।

भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु की आज्ञा का पालन करते हुए, सरस्वती माता ने धरती पर विचरण किया, और सभी मनुष्यों को वो प्रदान किया जो उन्हें पशु प्रवृत्ति से भिन्न करती थी। अर्थात् उनके भीतर ज्ञान और विवेक का संचार किया।

मनुष्य के अंदर का ज्ञान और विवेक ही है, जो मनुष्य को मनुष्य बनाता है। अर्थात् देवी सरस्वती के प्राकट्य के पश्चात् ही मनुष्य को अपना अस्तित्व मिला।

मां सरस्वती को अपने अस्तित्व को प्रदान करने के लिए, उनका पूजन, ध्यान करना। पीला प्रसाद तैयार करना, पीले पुष्प अर्पित करना पीले वस्त्र धारण करना... बस यही है, बसंत पंचमी पर्व का त्यौहार... और यही है कारण है कि बसंत पंचमी पर्व को सनातन धर्म में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।