जीवन क्या है (भाग-2) के आगे...
जीवन क्या है (भाग - 3)
इतने बड़े साधु महाराज की बातें और प्रश्नों के उत्तर की प्रतीक्षा सभी मौन होकर करने लगे, क्योंकि हर किसी के मन में कहीं न कहीं यही प्रश्न कौतूहल की स्थिति बनाए हुए थे।
साधु महाराज ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा...
बेटी आपने प्रश्न किया था कि, महाराज जीवन क्या है?
और उसमे सबसे पहले पूछा था कि
क्या अपनों का सानिध्य जीवन है?
तो आप सबको बता दें कि अपनों का सानिध्य ही जीवन है।
ईश्वर ने खुद हमें अपनों के सानिध्य में रहने के लिए ही रिश्तों की डोर से बांध कर जन्म दिया है।
मां-पापा, भाई-बहन, बाबा दादी नाना-नानी, बुआ चाचा, मामा मौसी, नाते-रिश्तेदार, मित्रगण, मायका ससुराल इत्यादि... सभी अपनेपन से जुड़े रिश्ते...
लेकिन अपनों का सानिध्य तब होता है, जब मान-सम्मान, प्रेम, त्याग सब परस्पर हो। आगे से आगे बढ़कर एक दूसरे के लिए करने की इच्छा हो, किया जाता हो।
पर अगर करने वाला एक ही पक्ष हो, मान-सम्मान प्रेम त्याग सब एक ही पक्ष को करना हो और दूसरा सिर्फ़ करवाने में विश्वास करता हो, तो ऐसे में दो बात कहेंगे, एक तो उसके लिए आप का कोई मूल्य नहीं है, वो आपको बहुत हल्के में लेता है, और दूसरी बात जो समझने वाली है कि आप अपनों के सानिध्य में नहीं है बल्कि स्वार्थियों के सानिध्य में हैं।
इस तरह के रिश्ते में बंधे रहना, केवल अपने सामर्थ्य को नष्ट करना है और अपने मन को आघात पहुंचाना है...
ऐसे में यही कहूंगा कि जीवन ऐसे अपनों का सानिध्य तो बिल्कुल नहीं है...
दूसरा प्रश्न था कि क्या धनार्जन जीवन है? तो सुनो..
आगे पढ़े, जीवन क्या है (भाग -4 ) में...
No comments:
Post a Comment
Thanks for reading!
Take a minute to share your point of view.
Your reflections and opinions matter. I would love to hear about your outlook :)
Be sure to check back again, as I make every possible effort to try and reply to your comments here.