अब तक आपने पढ़ा,
ज़िन्दगी बड़े शहरों की (भाग- 1)..,
ज़िन्दगी बड़े शहरों की (भाग- 2)... और
ज़िन्दगी बड़े शहरों की (भाग- 3)...
अब आगे...
ज़िन्दगी बड़े शहरों की (भाग- 4)
मुझे शहर की हवा रास नहीं आई...
दो क्षण तो राघव कुछ नहीं बोला, फिर उसने गीतिका को गले लगा लिया और कहा, मैं भी यही चाहता था कि गांव लौट जाऊं, पर मुझमें तुम सा साहस नहीं था।
मैं चलने को तैयार हूँ, पर अब हम वहांँ जाकर क्या करेंगे?
खेती-किसानी तो अपने बस की है नहीं...
हम वही करेंगे जो हम यहांँ करते थे, बस तब हम अपने मालिक खुद होंगे। वहाँ सबको भी यह काम सिखाएंगे।
थोड़ा समय लगेगा पर हमारा भविष्य सुनहरा ही होगा।
और इन सबके लिए पैसे कहाँ से आएंगे?
जो हमारे हैं, हम लगाएंगे, बाकी कुछ पिता जी व भैया से लेंगे। मुझे पता है अच्छे काम के लिए कोई मना नहीं करेगा।
दोनों गांव लौट आए। शहर से बहुत सारा सामान ले गये। उन्होंने वहाँ factory लगाई।
गांव आकर उन्होंने अपनी scheme सभी को बताई। जो गांव में बहुत लोगों को पसंद आई।
जिससे पिता जी और भैया के साथ ही कुछ गांव वालों ने भी पैसे लगा दिये।
राघव और गीतिका के साथ ही बाकी सब की भी मेहनत रंग लाई...
कुछ ही दिनों में पूरा गांव, उस factory से फलने-फूलने लगा।
अब तो गांव के विकास के लिए अन्य योजनाओं के लिए राघव और गीतिका ने सरकार से सहयोग प्रदान करने की मांग रखी।
सरकार ने देखा कि गांव के लोग परिश्रमी और लगनशील हैं तो उन्होंने गांव को अन्य योजनाओं के लिए सहयोग प्रदान करना आरंभ कर दिया...
गांव के लोग अपने भाई भतीजों और बेटों को शहर से वापस आने को कहने लगे। वो कहा करते, शहर की धूल फांकने से अच्छा है, गांव लौट आओ।
राघव भैया ने factory लगाकर गांव में भी ज़िन्दगी आसान कर दी है। अब यहाँ भी बहुत जल्दी सब सुविधाएं आती जा रही हैं। साथ ही अपनों का साथ भी है।
कहीं, कोई भी यह नहीं कहता कि वाह रे! राघव उतर गया, शहर का भूत?
हाँ सब किशन सिंह जी से यह ज़रुर कहते थे, आप के बेटे ने शहर से आकर गांव की काया पलट दी।
तब किशन सिंह जी बड़े गर्व से बोलते, अरे राघव शहर गया ही इसलिए था कि शहर से काम सीख आए और गांव को खुशहाल बना दे।
राघव और गीतिका पिताजी के चरणों में गिर कर आशीर्वाद लेते हैं और कहते कि जिनके सिर पर आप जैसे पिताजी का हाथ हो, वहाँ अवगुण भी गुण बन जाता है और जीवन सफल।
किशन सिंह जी बड़े प्यार से उन्हें गले लगाते और कहते, मेरे बच्चे मेरे पास हैं, इससे बढ़कर हमारे लिए कुछ नहीं...
और फिर राघव एकाएक कहता है, ज़िन्दगी गांव और अपनों के साथ है, बड़े-बड़े शहरों में नहीं...
यह सुनकर सब हंसने लगते हैं..
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