Monday 30 April 2018

Fusion cuisine : Pizzottpam

                               

Pizzottpam


This innovative recipe of mine is innovated by keeping in mind the rising demand and likeness of pizza. But as it is a junk food, we think once before having it. Thus, a similar tasting recipe, Pizzottapam, has been brought to you by me.

Ingredients

1.  For Batter
  • Semolina (Sooji)                                             250 gm.
  • Thick malaai                                                   150 gm.
  • Salt                                                                 according to taste
  • Water                                                              to adjust consistency
2. For Topping
  • Amul Diced Cheese Blend                                   250 gm.
  • Mushroom                                                         5 to 6 no.
  • Baby corn                                                          5 to 6 no.
  • Sweet corn                                                         20 gm.
  • Bell Peppers                                                       2 no.
  • Onion                                                                1 medium
  • Tomato                                                              1 medium
  • Olives                                                                 add to taste
  • Jalapenos                                                            add to taste
  • Paneer                                                                20 gm.      
Benefits
fig 1
  • In pizza, flour (maida) is used to make the base, which is not easily digestible that makes  it unhealthy. Whereas, Pizzottapam is made up of semolina.
  • It can be easily prepared at home.
  • More nutritious with similar taste.

Method

fig 2
 1.Mix Semolina, malaai, salt & water in a bowl. If you're health conscious, then inspite of malaai you can use curd. The consistency of the batter has to be like that of Dosa. Leave it for half an hour.
2. Dice all the vegetables into small pieces.
3. Now, grease up a pan with ghee or olive oil.
4. Spread the batter into circles (approx.thickness of ½ cm.) & sprinkle all the veggies & cheese on it.
5. When the base of Pizzottapams starts getting crispy & the cheese on it gets melted (as shown in the figure 1), turn off the flame.
6. The Pizzottapam is now ready to be served.

fig 3
You can serve Pizzottapam with tender coconut’s chutney, Ching’s schezwan chutney, tomato or chilli sauce. Herbs & chilli flakes can also be sprinkled on the same.       

Sunday 29 April 2018

Poem : घर का वो कोना

  घर का वो कोना 
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घर का वो कोना मुझे बहुत भाता है
जहां ठंडी हवा का झोंका आता है
वहां ,बैठ के मुझे मुश्किलों का हल मिल जाता है
 घर का वो कोना मुझे बहुत भाता है
सोचती हूँ  कभी
ईश्वर की सृष्टि का नहीं कोई मेल
इस हवा के मुकाबले,कूलर एसी सब फेल
ये हवा,मन को भीतर तक छू जाती है
जीने की इच्छा को और बलवती कर आती है
दिखती नहीं है, फिर भी एहसास है इसका
यही बात, ईश्वर के अस्तित्व का आभास कराती है
इसके होने से, जब पेड़ का पत्ता हिलता है
उसे देख अजब सा सुख मिलता है
आप भी ढूंढिए, अपने घर का वो कोना
जहां चलता हो पवन का झोंका सलोना
यही एहसास आप भी  पाएंगे
जीवन के हल मिल जाएंगे

Saturday 28 April 2018

Parenting Tip : How to teach kids

How to teach kids


1. Don't slap/beat & even scold them while making them study.

2. Fun while study: To make the study interesting, convert it into a game. Let your kids learn while playing the game, like number game, maths table game(Kaun Banega Mathspati), rhyme game (kalakar no. 1), spelling game(the English master), etc. Kids would love to play games with you. You should also get involved with them in such games.

3. Split & combine: Split the topic in parts and make them learn part by part; then combine the parts to make the topic complete. This way you can make them learn easily.

4. Logical learners: Today's kids are getting more and more logical. So, make them understand the meaning of things, let them visualise and learn through logics. You might get surprised to know, if they start building their own logics which you'll also find right.

5. Study time vs leisure time: If the time when you want the kid to study is their leisure time (favourite program time/play time), they might not take interest in the studies. Or if at even study time, they are not interested to study, let them enjoy their this part of life but with a promise to study later and then make them study as they promised. They will fulfill their promise as they want you to fulfill your promises. And this will give you better results in less time.

6. Born winners: The kids are born winners - they love to win. Utilise their winner instinct in making them understand the value of education.
You can also take help of my story, नीति first नहीं आई, which was posted on 27 April 2018

7. Appreciation: We all know that, "Nothing motivates better than self - motivation". And, the children get self - motivated when they get appreciation. So, appreciate kids for every achievement, even the smaller ones. Every parent brings things like toys, pencil, tiffin box, chocolate, ice cream, etc. You can utilise such things and even smaller things; You can also plan something like dine out, watching movies, playing with them, outings, etc.

Friday 27 April 2018

Kids Story : नीति first नहीं आई


              समस्या:बच्चा पढ़ता नहीं है; school की बातें घर में नहीं बताता।


                

           कहानी: नीति first नहीं आई





नीति और निखिल दोनों ही best friend थे। नीति बहुत ही intellegent थी, निखिल भी intellegent  था, पर नीति से कम, लेकिन निखिल मेँ एक habit  बहुत अच्छी थी, कि वो घर आते ही अपनी Mumma  को स्कूल में क्या हुआ, वो सब बताता था, lunch  finish   कर के, अपना homework  complete  करता था, और स्कूल में जो पढ़ाया है, वो भी पढ़ता था, उसके बाद ही खेलने जाता था।


जबकि नीति, school  की कोई भी बात, अपनी mumma  को हीं बताती थी। और अपना homework  भी बड़ी मुश्किल से finish करती थी, और जब उसकी mumma उसे  पढ़ने को बोलती, वो बोल देती मैं बहुत intellegent  हूँ, मुझे सब आता है।


कुछ दिन बाद exam आ गए। दोनों के exam  बहुत अच्छे हुए थे।

पर exam  का result  देखकर नीति रोने लगी, निखिल first और वो second आई थी।

नीति को रोता देख कर teacher  नीति के पास गयी, उन्होने नीति से पूछा, बेटा आप क्यों रो रहे हो?

नीति बोली, जब मैं ज्यादा intellegent  हूँ, तो निखिल कैसे first  गया?

तब, Mam  बोली, हाँ तुम ज्यादा intellegent  हो, पर तुम्हारी Mumma बता रही थीं कि तुम उन्हें school में क्या हुआ? वो नहीं बताती हो, जिससे तुम्हारी mumma  तुम्हें पढ़ा नहीं पाती हैं, जब की निखिल अपनी Mumma को सब बताता भी है, और घर में पढ़ता भी है, इसलिए ही वो first  आ गया।

अब से नीति ने भी अपनी mumma को सब बताना शुरू कर दिया, और घर में पढ़ना भी शुरू कर दिया, अब वो फिर से first आने लगी। 

Thursday 26 April 2018

Article : “सोन चिरईया “

                       “सोन चिरईया "





आज स्मरण हो आई वह प्रभात जब कानों में मां की आवाज के बाद गौरैया के चहचहाने की आवाज अरुणोदय की शीतलता को और बढ़ा देती थी। आंखें मलते मलते जब आंगन में आ कर बैठते थे, तो इधर उधर फुदकता गौरैया का झुंड आमोद-प्रमोद के साथ सुबह के नाश्ते का आनंद उठा रहा होता था, जो माँ ने उनके लिए डाले होते थे। कुछ आँगन में यहां से वहां, कुछ आम के पेड़ों की डाल पर, कुछ हौज़ के मुंडेर पर, कुछ खटिया की पाटी पर डोल रही होती थी। कितनी आश्वस्त और  भयमुक्त जैसे अपने

परिजनों के संग हों। बबुनी, बुच्ची, लाडो, बाबा जी  के तमाम संबोधनों में मेरे लिए “सोन चिरईया “ भी शामिल हुआ करता था ।कितने मनोरम थे वे दिन .....1999 में शादी के बाद जब ससुराल के दर्शन हुए तो फूलों की बगिया और आँगन जैसे ईश्वर ने सौगात में दिए हो मुझे। अब भोर में केवल गौरैया के चहचहाने की आवाज ही शेष रह गई थी, जो माँ की आवाज का स्मरण भी करा दिया करती थी। उन दिनों भी चिड़िया का झुंड पूरे आंगन में बेखौफ घूमता नजर आता था। कभी वाश बेसिन के शीशे पर अपने प्रतिबिंब को चोंच मारते हुए, कभी चारदीवारी पर चढ़कर इधर-उधर निहारते  हुए  और कभी कूलर पर। चीं चीं  के कलरव से पूरा आँगन गुलज़ार रहता था। अपनी माँ और सास दोनों को ही यह कहते सुना था कि  गौरैया का आगमन शुभ होता है। खुशहाली और समृद्धि लाता है।....पर क्या हम अपने नौनिहालों को गौरैया के आगमन का महत्व बता पाएँगे? क्या हमारे बच्चे गौरैया के चहचहाने का, उनके आश्वस्त होकर इधर-उधर फुदकने का आनंद उठा पाएँगे ? क्या वह उस कौतूहल को महसूस कर पाएंगे जब माँ गौरैया अपनी चोंच से अपने बच्चों को खाना खिलाती थी? शायद नहीं!
 ...ये कैसी विडंबना है कि जिस मोबाइल पर 20 मार्च 
‘ चिड़िया दिवस’ के संदेश इधर से उधर भेजे जा रहे थे, उसी मोबाइल कंपनी के बढ़ते एंटीना और ट्रांसमीटर टॉवरों से जो विद्युत चुंबकीय विकिरण पैदा होता है वह गौरैया के विलुप्त होने का सबसे बड़ा कारण माना गया है। ....भौतिकता की अंधी दौड़, मानव का निजी स्वार्थ, पेड़ों की कटाई, कंक्रीट के जंगल और ख़ामोश मृतप्राय सभ्यता ने  ईश्वर की इतनी सुंदर कृति का अस्तित्व ही ख़तरे में डाल दिया है। .....
आह! कितनी सार्थक प्रतीत होतीं हैं वर्तमान में प्रचलित गीत की ये पंक्तियाँ ....” ओ री चिरईया , नन्ही सी चिड़िया , अँगना में फिर आ जा रे .... “
                          लेखिका : ऋतु श्रीवास्तव

Disclaimer:


इस पोस्ट में व्यक्त की गई राय लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं। जरूरी नहीं कि वे विचार या राय इस blog (Shades of Life) के विचारों को प्रतिबिंबित करते हों। कोई भी चूक या त्रुटियां लेखक की हैं और यह blog उसके लिए कोई दायित्व या जिम्मेदारी नहीं रखता है।

Wednesday 25 April 2018

Story of life : बहू–बेटी (भाग-2)

अब तक आपने पढ़ा, दिव्या ने अपने ससुराल मेँ क्या व्यवहार किया, अब आगे
                     
           बहू–बेटी (भाग-2)   


स्नेहा ने आते ही ससुराल का सारा कार्यभार संभाल लिया, सारे काम खत्म करके वो ऑफिस निकाल जाती, और घर आते ही सारे काम निपटा डालती, व्यवहार भी उसका इतना अच्छा था कि, अब रंजना के घर दोस्तों रिश्तेदारों का तांता ही लगा रहता था, पर हाँ रविवार के दिन स्नेहा को जल्दी उठना बिलकुल पसंद नहीं था, ना उस दिन उसे  काम करना पसंद था, क्योंकि, उस दिन वो अपने पति और परिवार के साथ पूरा समय बिताना पसंद करती थी- दिन में कहीं घूमने जाना और रात में साथ dine-out.

पर रंजना को ये सब पसंद नहीं था, उसे बर्दाश्त नहीं था कि स्नेहा, एक दिन भी मस्ती करे, काम ना करे।

वो, उसके हर काम में मीनमेक ही निकालती रहती, सब से कहती फिरती, ना जाने कैसी कुलछनी बहू मिली है, इसे तो बस आराम चाहिए, सुबह 9 बजे से पहले तो ये मैडम उठेंगी नहीं, फिर घूमने निकल जाएंगी, दुनिया का पैसा बर्बाद करेंगी, सो अलग, इनसे तो बस ऐश करवा लो, और तो और मेहमानों की भी लाइन लगवा दी है।   

एक दिन स्नेहा का ऑफिस से आते समय accident हो गया, पैर में काफी चोट आई थी, रंजना ने उसे तुरंत उसके मायके भेज दिया। रंजना, स्नेहा की एकदम भी सेवा नहीं करना चाहती थी।

स्नेहा, हफ्ता भर के लिए पहली बार आई थी, वरना वो रजत के साथ जब आती थी, तो एक दिन में ही लौट जाती थी, रंजना एक दिन से ज्यादा स्नेहा को रुकने ही नहीं देती थी, पहले ही कह के भेजती थी, मिलने जा रही हो,  रहने के लिए रुक ना जाना।

हफ्ते भर मे उसका घाव भी भर आया था, आज दिव्या का स्नेहा के पास फोन आया था,
कैसा पैर है स्नेहा?

दीदी, अभी तो आराम है।

तो वहाँ क्या कर  रही हो, माँ और भाई को कितना परेशान करोगी, अब वापस भी आ जाओ।

ये सुन कर स्नेहा की माँ सन्न रह गयी, क्या बिना दुख दर्द के बेटी माँ के पास नहीं रुक सकती?
स्नेहा वापिस चली आई।

दिव्या भी आई हुई थी, एक भी काम को तो वो वैसे भी हाथ नही लगाती थी, पर स्नेहा को देख कर तो उसके हाथ पैर बिलकुल भी नहीं चलते थे।

हर काम के लिए स्नेहा को आवाज़ लगा देती, पैर की चोट के कारण स्नेहा, उतनी फुर्ती से काम नहीं कर पा रही थी, तो दिव्या उससे ये कहने से नहीं चूकी, स्नेहा तुम्हारे पैर का नाटक कितने दिनों तक चलेगा, रंजना ने भी ये कह कर कि, स्नेहा तो है ही कामचोर दिव्या का ही साथ दिया।

आज रजत की सहनशक्ति ने जवाब दे दिया था, उसने माँ और बहन दोनों को आड़े हाथ लिया।
जब उसके पैर मे चोट लगी है तो, क्या दीदी एक ग्लास पानी भी अपने आप नहीं ले सकतीं हैं?
माँ अच्छा है, स्नेहा की माँ आप नही हैं, अगर होती, तो जो हाल दीदी के ससुराल का है, वही यहाँ का भी होता।

मैं तो धन्य हो गया, जो मुझे स्नेहा मिली है, घर का सारा काम इसने संभाल लिया है, इसके आने से किसी को कोई काम नहीं करना पड़ता है। जिन लोगो ने बरसों से हमारे घर आना छोड़ दिया था, वो आज हम से फिर जुड़ गए हैं।

क्या हुआ अगर वो एक दिन रविवार को आराम करना चाहती है, इंसान है, मशीन नहीं, उसकी ऐसी सोच ने ही हम सबको साथ समय गुजरने का मौका दिया है, उसी कारण से हम लोग एक दूसरे को अब ज्यादा समझने लगे हैं।

माँ, बहू भी बेटी बन सकती है, जब उन्हें इस संस्कार के साथ भेजा जाए, कि जिस घर जा रही हो ,वो तुम्हारा अपना घर है, तुम्हें ईश्वर ने वो वरदान दिया है कि, तुम्हारे दो माता-पिता, भाई बहन हैं, ये घर परिवार छूटा नहीं है, बल्कि एक और घर परिवार मिल गया है।

और ससुराल वालों को भी ये ही सोचना चाहिए, कि उन्हें एक और बेटी मिल गयी है, जिसको उन्हें उतने ही जतन से रखना है, जैसे अपनी बेटी को रखते हैं।

साथ ही बहू बेटी दोनों का सही गलत एक ही तराजू में रखना होगा, दोनों में से जो कुछ गलत करे तो उसे ठीक करें और दोनों में से जो भी कुछ सही करे, तो उसकी तारीफ करें।  

जब बहू बेटी दोनों को एक सा मान और प्यार मिलेगा, और बेटियाँ भी बहू बन कर दोनों घर को एक सा मान और प्यार देंगी।

तब न बहू होगी न बेटी होगी,मायका होगा ना ससुराल।

होंगे तो बस दो खुशहाल परिवार।

Tuesday 24 April 2018

Story of life :. बहू–बेटी

                         बहू–बेटी 



रंजना की बेटी दिव्या की शादी होने वाली थी, माँ बेटी को समझा रही थी, अब से तुम्हारी नयी ज़िंदगी शुरू हो रही है, जिसकी मालकिन तुम खुद हो, इसलिए जो तुम्हें अच्छा लगे वही करना, किसी की सुनने की कोई जरूरत नहीं  है, एक बार सुनना शुरू करोगी, तो ज़िंदगी भर सुनती ही रहोगी और हाँ कोई भी व्रत त्यौहार के लिए तो हामी भरना ही नही वर्ना झड़ी लगा दी जाएगी, क्योंकि बहू कितना भी कर ले, वो कभी perfect  नही हो सकती।

इतने अच्छे संस्कारो के साथ विदा हुई दिव्या ने ससुराल पहुँचते ही अपना झण्डा गाड़ दिया।

सुबह देर से उठना, किसी का भी ध्यान नहीं रखना, और तो और कोई कुछ कहे तो बस लड़ना शुरू, बात बात पर मायके चली जाती, और एक महीने से पहले ना आती।

रसोई में जाना तो उसे अपनी तौहीन लगती थी, आते ही से एक रसोइया घर में लगवा दिया, व्रत त्यौहार से तो उसने नाता ही नहीं रखा था।   

शुरू शुरू में तो रोहित और उसके घर वाले दिव्या के इस रवैये से बड़े दुखी हुए, पर कुछ दिन बाद सब उसकी इन हरकतों से आदी हो गए, हाँ रिश्तेदरों  का आना, दिन पर दिन जरूर कम हो गया।

अब रोहित के घर सन्नाटा ही ज्यादा छाया रहता था, क्योंकि आपस में बात होने से कब कोहराम मचने लगे, पता नहीं रहता था।

एक दिन फोन की घंटी बजी, दिव्या की रंजना से फोन पर बात हुई, तभी रोहित ऑफिस से आया था, उसने देखा दिव्या खुशी से झूम रही थी।

रोहित को देखते ही दिव्या ने बताया माँ का फोन आया था, उसके भाई रजत की शादी तय हो गयी है, इस october  में शादी है।

दिव्या ने ढेरों ख़रीदारी शुरू कर दी, जबकि उसकी शादी को साल भर भी नहीं हुआ था, उसके पास ढेरों ऐसी dresses थीं, जिसे उसने अभी तक नहीं पहनी थीं, पर रोहित ने उससे कुछ हीं बोला, वो जानता था, कहने से सिवाय झगड़े के और कुछ नहीं होना है।

रजत की शादी बड़ी धूम-धाम से हुई, दिव्या स्नेहा से अधिक सुंदर दिखने की होड़ में लगी रही, पर वो स्नेहा का दिन था, दुल्हन से कहाँ कोई ज्यादा सुंदर लग सकता है।

स्नेहा ने आते ही....
                               आगे की कहानी भाग-2 में                  

Monday 23 April 2018

Poem : बदल गये हम

    बदल गये हम


कितनी तेजी से बदल गये हम
तुम आदमी, औरत हो गये हम

कभी जब बच्चे थे हम
सच्च कितने अच्छे थे हम
ना कोई फ़िक्र, ना कोई गम
बस खेला करते थे हरदम

कितनी तेजी से बदल गये हम
तुम आदमी, औरत हो गये हम

बचपन बीता, जवानी आयी
हर जगह रंगीनी छाई
कितने सुंदर दिखते थे हम
मस्ती ही मस्ती थी हरकदम

कितनी तेजी से बदल गये हम
तुम आदमी, औरत हो गये हम

अब कितना बदल गया है सब
सुंदरता पड़ने लगी मद्धम
कितना भी कर लो
फ़िक्र होती नहीं कम
शरीर में नहीं रह गया दम

कितनी तेजी से बदल गये हम
तुम आदमी, औरत हो गये हम