Wednesday 19 September 2018

Kids Story : लगन

गन  

हमारे घर लाली अपनी माँ के साथ काम करने आया करती थी। उसकी माँ बड़ी भली थी। वो मेरी माँ का कहा हर काम बड़ी लगन से किया करती थी। हम बच्चों से भी उसे बड़ा प्यार था। थी तो वो, काम वाली, पर घर का एक हिस्सा भी कही जा सकती है।
हम सब बच्चों को पढ़ता देखकर वो बोली, बओजी, (माँ का वो इसी नाम से संबोधित किया करती थी) मैं तो गरीब हूँ, बच्चों को पढ़ा नहीं सकती। आपकी बेटी, मेरी छोटी बेटी को पढ़ा सकती है?
माँ ने मुझे कहा और उसकी छोटी बेटी सोनी, जो लगभग 6 साल की होगी, को मैंने पढ़ना शुरू कर दिया। पर हे भगवान, पूरे 25 दिन हो गए। पर वो अ आ के आगे बढ़ ही नहीं रही थी, जब मैं इन दो शब्द से आगे बढ़ूँ, तो वो इन्हें ही भूल जाती थी। वहीं उसकी बड़ी लड़की लाली झाड़ू-पोछा करते-करते आ इ ई तक सीख गयी। उसकी लगन देख कर माँ ने उसे ही पहले पढ़ाने की बात कही।
अब मैं उसको पढ़ाने लगीउसने अपनी लगन से बहुत जल्दी वर्णमाला सीख ली। तो उसे शब्द व वाक्य भी सिखाना शुरू कर दिया। उसमें पढ़ने-सीखने की इतनी लगन थी, कि बिना कहे ही वो घर से गाने या वार्तालाप भी लिख के लाने लगी।
मैंने कहा, ये तुम कब लिख लेती हो, वो हमेशा यही बोलती दीदी, जब भी समय मिलता है, मैं लिखने बैठ जाती हूँ। मुझे सब बहुत जल्दी सीखना है। ना जाने उसे किस बात की जल्दी थी?
शुरू में कुछ गलत कुछ सही वो लिख कर लाती रही, पर फिर जल्दी ही सही भी लिखने लगी। अब वो बोली, दीदी हिसाब करना भी सीखा दीजिये।
कुछ और दिन लगे, अब वो लिखना, पढ़ना, हिसाब करना सब सीख गयी थी। उसने हमारी तरह classes तो pass नहीं की थीं, पर अब वो अनपढ़ भी नहीं थी।
एक दिन उसकी माँ, ने आकर बताया, कि लाली का विवाह तय हो गया है। चार माह बाद उसका विवाह है। वो अभी मात्र 18 साल की थी, माँ ने कहा भी कि उसे थोड़ा बड़ा तो हो जाने दो। वो बोली बओजी, जवान लड़की को कैसे घर बिठाऊँ? कल को कुछ ऊंच-नीच हो गयी तो, कौन देखेगा? हमारे में तो इतने बड़े में ही विवाह हो जाता है। मेरा तो 14 में ही हो गया था। बाकी मैंने परिवार देखभाल लिया है, लाली खुश ही रहेगी। फिर माँ भी क्या बोलती।
चार माह बाद लाली का विवाह हो गया, वो अपने ससुराल चली गयी, तब समझ आया, क्यों उसे सब सीखने की जल्दी थी।
छह माह बाद लाली, हाथ में मिठाई का डिब्बा लिए हुए आई। उस समय वो अलग ही रूप में दिख रही थी। लाल साड़ी, मांग में सिंदूर, हाथ भर के चूड़ी, और भी बहुत श्रंगार की हुई, अति उत्साह आत्मविश्वास से भरी हुई थी। वो मिठाई का डिब्बा मुझे थमा के पैर छूने लगी। अरर... लाली ये क्या कर रही हो? मैंने उसे उठाते हुए कहा। वो बोली, दीदी आपको पता है, अपने पूरे गाँव में केवल 1 मैं ही हूँ, जो अनपढ़ नहीं हूँ। इसलिए सारे गाँव को जब भी कुछ पढ़वाना हो, या हिसाब लगवाना हो; सब मेरे पास ही आते हैं। इसीलिए मेरे ससुराल में भी सब मुझे बहुत मान देते हैं। मेरे ससुराल वाले बड़े गर्व से बताते हैं, कि मैं उनकी बहू हूँ। आपने मुझे पढ़ा दिया ना, दीदी इसीलिए मेरा इतना नाम हुआ है। मैंने कहा पढ़ा तो सोनी को भी रहे थे, पर वो आज भी पढ़ना नहीं सीख रही है। तुम सीख गयी, क्योंकि तुम में लगन थी।
वो चली गयी, तो मैं सोचने लगी, मैंने किया ही क्या था। उसे केवल अक्षर ज्ञान अंक ज्ञान ही तो दिया था। पर वो निरक्षर से साक्षर हो गयी थी। जिसने उसकी ज़िंदगी को उत्साह व आत्मविश्वास से भर दिया। आज भी उसकी वो खुशी याद है।

साधन तो बहुत लोगों को मिलते हैं, पर जिसमें लगन होती है, वही आगे बढ़ पाता है।

6 comments:

  1. Thank you so much Ma'am for your valuable comment

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  2. Nice story....really true fact.I also taught my maids and their grasping power and dedication was appreciative....comparatively our kids have no dedication towards studies.

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    Replies
    1. Thank you so much Ma'am for your valuable comment

      Hats off to you for your noble cause

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