आज जून माह की दो तारीख है। इस दिन के साथ ही यह कहावत जुड़ी हुई है, “दो जून की रोटी” और बहुत से लोग आज के दिन इस कहावत को ज़रूर बोलते हैं, विशेषकर बड़े-बुजुर्ग लोग... साथ ही इस पर बहुत-सी memes भी बनती हैं।
एक समय था जब दो जून की रोटी बस फिल्मों में ही सुनने को मिलती थी, लेकिन जून की दूसरी तारीख को यह कहावत जोर पकड़ लेती है। ऐसे में इसका क्या मतलब है और क्यों यह कहावत इस महीने में इतनी famous हो जाती है, आइए जानते हैं।
दो जून की रोटी
हम बचपन से ही कई तरह की कहावतें सुनते आए हैं, जैसे नौ दो ग्यारह होना, आंखों का तारा, भैंस के आगे बीन बजाना, खोदा पहाड़ निकली चुहिया, जिसकी लाठी उसकी भैंस, वगैरह वगैरह। ऐसा ही एक बहुत प्रचलित मुहावरा है, “दो जून की रोटी” जिसे आजकल 2 जून की रोटी, कहकर भी बुलाया जाता है।
पुरानी फिल्मों में आपने villain को जरूर कहते सुना होगा कि "दो जून की रोटी कमाने में तुम्हारी उम्र निकल जाएगी" या फिर किसी गरीब माँ का dialogue होगा, "दो जून की रोटी के लिए बेटा मालिक की डांट भी सुननी पड़ती है"।
पर इस मुहावरे का शाब्दिक अर्थ क्या है, वो देखते हैं...
बहुत से लोग सोचते हैं कि “दो जून की रोटी” का मतलब है, जून माह की दूसरे दिन में मिलने वाला खाना, लेकिन इसका सीधा मतलब ये नहीं होता है।
दरअसल, “दो जून की रोटी”, ये एक बहुत पुरानी कहावत है जिसका संबंध अवधी भाषा से होता है, जो उत्तर प्रदेश के अवध क्षेत्र और आस-पास में बोली जाती है।
मुहावरे का अर्थ समझें तो दो जून की रोटी का मतलब है दो वक्त की रोटी जुटाना।
जून शब्द अवधी भाषा से लिया गया है, अवधी भाषा में बात करें तो, 'जून' का मतलब 'वक्त' अर्थात, समय से होता है। इस कहावत का इस्तेमाल पुराने समय में बड़े-बुजुर्ग करते थे, जिसे वे दो वक्त यानी सुबह-शाम के खाने को लेकर कहते थे।
इस कहावत द्वारा यह कहा जाता था कि, इस महंगाई और गरीबी के दौर में 2 वक्त का खाना भी हर किसी को नसीब नहीं है।
भारत में कहीं-कहीं भूखमरी का आलम ऐसा है जहां पर मौजूदा समय में महंगाई और गरीबी के दौर में हर एक लोग को एक रोटी भी नसीब नहीं होती है।
Actually, society में कुछ बहुत गरीब लोग ऐसे भी होते हैं, जिसे अगर सुबह की रोटी मिल जाती है तो जरूरी नहीं कि शाम की भी मिल ही जाएगी, इन्हीं लोगों द्वारा दो जून की रोटी का मुहावरा बनाया गया है।
इसके आकंड़ों की बात करें तो, भारत का एक बड़ा part BPL से नीचे है, जिनकी जिंदगी में पेट भरने की जद्दोजहद साफ देखी जा सकती है। आज के समय में इंसान रोटी के लिए ही बस दिन-रात मेहनत करता है जिसमें कई लोग पेट भरकर भी खाना नहीं खा पाते हैं।
लेकिन लोगों को भूखमरी से बचाने के लिए सरकार कई योजनाएं चलाती हैं, जिसमें अंत्योदय अन्न योजना, गरीब कल्याण अन्न योजना, पीएम स्वनिधि योजना, पीएम उज्जवल योजना व मनरेगा योजना जैसी कुछ प्रमुख योजनाएं हैं इनके जरिए लोगों को खाना मिल जाता है।
जून की रोटी को लेकर यह भी कहते है कि, जून का महीना सबसे गर्म होता है, ऐसे में किसान अधिक मेहनत कर घर लौटता है और तब जाकर उसे रोटी मिलती है।
यह तारीख बताती है कि रोटी की value क्या है...
अब आप समझ गए होंगे, “2 जून की रोटी” सिर्फ एक तारीख या एक मज़ेदार कहावत नहीं है, बल्कि यह हमारी भाषा, हमारी संस्कृति और हमारे समाज के इतिहास का एक अहम हिस्सा भी है।
तो अगली बार जब आप “दो जून की रोटी” खाएं, तो इसके गहरे अर्थ को भी ज़रूर याद कीजिए, और मान दीजिए अन्न को, उस अन्न को उपजाने वाले किसानों को, आपके घर के उस सदस्य को, जो पूरे परिवार के लिए मेहनत करके पैसे कमा रहा है, जिससे उसका पूरा परिवार भरपेट भोजन कर सके, सुख और सुकून से रह सके।
आपके द्वारा फेंका गया मुट्ठी भर भोजन भी किसी को भरपेट भोजन का सुख दे सकता है।
अतः उतना ही अन्न लें थाली में, कि बर्बाद न जाए नाली में...
ईश्वर से प्रार्थना है कि हर व्यक्ति को इतना धन-धान्य दें कि सभी लोगों के पूरे परिवार को दो जून की रोटी नसीब हो, सभी को सुख व सुकून मिले।
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