भगवान जगन्नाथ जी की रथयात्रा प्रारंभ हो चुकी है। इस समय उड़ीसा और पश्चिम बंगाल में अलग ही समा है। लोग भक्तिमय होकर प्रभू में ही लीन हैं। रथयात्रा का रथ मेला भी लगता है, जो कि बहुत ही अनूठी अनुभूति देता है।
जब उनका रथ चलता है, तो भीड़ उमड़ पड़ती है, कि बस एक पल मिल जाए और उनके रथ की रस्सियों को हाथ लगाने को मिल जाए।
आज उन्हीं पलों को समेटे हुए एक कविता साझा कर रहे हैं, आनंद लीजिए…
देखा है जगन्नाथ जी को
आज हमने,
जगन्नाथ जी को,
बचपन में,
जाते हुए देखा है।
उन्हें नन्हे हाथों को,
बनाते हुए देखा है।।
देखा है उन्हें,
आज हमने,
बच्चों की टोली में।
झूमते-नाचते,
मस्ती करते हुए,
लोहे की ट्रोली में।।
देखा है उन्हें,
आज हमने,
मंदिर में, पंडाल में।
जगत के नाथ,
जगन्नाथ जी को,
भक्तों के साथ में।।
लेकर सुभद्रा, बलराम को,
चलता है उनका रथ,
तो साथ भक्ति चलती है।
साथ चल रहे सब लोगों के,
रोम-रोम में मिलती है।।
है वो रथ नाथ का,
पर फूल सा लगे,
रज उसके पहिए की,
स्वर्ग की धूल सी लगे।
सौभाग्य है उसका,
जिसको वो छूने को मिले।।
जगन्नाथ जी, सुभद्रा और बलराम के शुभ आगमन पर हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🏻
जगन्नाथ रथयात्रा पर विशेष article 👇🏻
No comments:
Post a Comment
Thanks for reading!
Take a minute to share your point of view.
Your reflections and opinions matter. I would love to hear about your outlook :)
Be sure to check back again, as I make every possible effort to try and reply to your comments here.