दर्शन कान्हा जी का
रितिका, दादी मां की बड़ी लाडली थी, वो माँ से ज्यादा, अपनी दादी मां के साथ ही रहती थी। दादी माँ, आठों पहर लड्डू गोपाल की सेवा में लगी रहती थीं। अतः रितिका भी बचपन से कान्हा जी की बड़ी भक्त हो गई थी।
जब रितिका ने जवानी की दहलीज पर कदम रखा तो, दादी मां, अपने लड्डू गोपाल को रितिका को सौंप कर बोली, रितु, आज से मेरे लड्डू गोपाल तेरे, अब तुम इन्हें जिस रूप में चाहे, उस रूप में पूजना।
क्या मतलब दादी माँ?
बिटिया, भगवान श्रीकृष्ण को तू जिस रूप में चाहे पूजना, चाहें सखा भाव में, चाहे पति रुप में, चाहें भाई रुप में या पुत्र रुप में... बस याद रखना, उनकी पूजा रोज़ करना। यह कहकर दादी मां, श्री हरि में विलीन हो गयीं।
इधर दादी मां नहीं रहीं, उधर रितिका का रिश्ता तय हो गया।
रितिका ने माँ से पूछा - मैं किस रुप में कान्हा जी की पूजा करुं?
माँ बोली- मैं क्या बताऊं, तुम्हें कान्हा खुद बताएंगे कि किस रुप में पूजा करो।
रितिका अपनी शादी से बहुत खुश थी, क्योंकि उसका ससुराल वृन्दावन में था और सभी कृष्ण भक्त थे।
जब वो ससुराल जा रही थी तो, वो लोग वृंदावन से कुछ दूर पहले एक जगह, विश्राम के लिए रुके थे।
वहां रितिका के मन में ख्याल आया कि जब शादी हो गई है तो कान्हा जी को पति और सखा भाव में तो पूज नहीं सकती, तो क्या अब पुत्र रुप में पूजा करूं?
फिर उसने अपने लड्डू गोपाल निकाले और उन्हें आदेश देते हुए कहा कि आज से मैं, आप की माँ हो गई हूँ, आप मुझे माँ कहकर बुलाएंगे।
तभी रितिका के कक्ष में एक छोटा सा बालक आया और उसे मैया, मैया कहकर बुलाने लगा और उसका पल्लू खिंचने लगा।
रितिका ने अपना घूंघट और लंबा खिंच लिया और अपने पति के पास पहुंच गयी और कहने लगी, हमारे कक्ष में एक नन्हा बालक आया है और मुझे मैया मैया कहकर बुला रहा है।
मैं तो यहां किसी को जानती नहीं हूं, ना जाने वो किसका बालक है?
अच्छा! चलो मैं चल के देखता हूं, पर तब तक वो बालक चला गया था।
कोई बात नहीं, यहीं पास का होगा, जब फिर मिलेगा, तब देख लूंगा।
जब वो लोग वृंदावन पहुंचे तो रितिका का ससुराल में बहुत स्वागत हुआ।
अगले दिन रितिका की सास ने अपने बेटे मोहन से कहा कि बहू को आज बांके बिहारी जी के मंदिर ले जा।
रितिका बहुत खुश थी, लंबा सा घूंघट कर के वो मंदिर को चल दी।
मंदिर में भी घूंघट करके खड़ी थी। मोहन बोला- अरे रितिका, बांके बिहारी के दरबार में कौन घूंघट करता है, हटा लें घूंघट...
रितिका ने जैसे ही घूंघट हटाया, उसे फिर वही नन्हा बालक खड़ा दिखाई देने लगा।
उसने तुरंत अपने पति को बोला, अरे यह वही बालक है, जो मुझे मैया मैया बुला रहा था।
मोहन देखकर दंग रह गया, वो तो साक्षात् बांके बिहारी जी थे।
मोहन ने रितिका से कहा, रितिका तेरी भक्ति धन्य है, हम कब से वृन्दावन में रह रहे हैं पर कभी बिहारी जी ने दर्शन नहीं दिए और तेरे पग रखते ही तुझे मैया मान लिया।
मेरी तो किस्मत खुल गई, जिसे कान्हा जी ने माँ मान लिया, उससे बढ़कर दुनिया में कुछ नहीं।
हरि बोल, जिसने मुझे जिस भाव से चाहा है, मैं उस रुप में मिला हूँ। भक्ति से तो ईश्वर भी बंध जाते है, पर उसमें सतत् आस्था विश्वास और प्रेम अनिवार्य है...
आप सभी को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएँ 💐🙏🏻
हे प्रभु, हम सब भक्तों पर भी अपनी कृपा दृष्टि बनाएं रखें 🙏🏻🙏🏻
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