Trip Review : Amritsar - सफर देशभक्ति और आस्था का - 2
हमने कल के Trip Review : Amritsar - सफर देशभक्ति और आस्था का से अपना सफ़र शुरू किया था, और आपको तलवार म्यूजियम के विषय में बताया था। चलिए आगे चलते हैं, उसके बाद हम बार्डर की ओर चल दिए।
क्योंकि हम लोग 26 January को गये थे, इसलिए हम लोगों को 1:30 बजे तक वहां पहुंच जाना था।
Wagah Border
वहां उस समय देशभक्ति गीत बज रहे थे। वहां हम जैसे ही पहुंचे, उस समय केसरी फिल्म का गीत बज रहा था,
"तलवारों पे सिर, वार दिए, अंगारों पर जिस्म जलाया है, तब जाकर कहीं हमने, यह केसरी रंग सजाया है।"
यह गाना कई बार सुन चुके हैं, पर सच मानिए, उस समय, वह गाना सुनते हुए जब एक-एक कदम हम अंदर की ओर बढ़ रहे थे और हमारे शरीर में देशभक्ति की भावना यूं ओतप्रोत हो रही थी कि हम सब goosebumps feel कर रहे थे। और उसके बाद एक के बाद एक देशभक्ति गीत बदलते रहे, नहीं बदला तो बस यह, वहां मौजूद हम सब लोगों की feeling...
उस दिन हम भारत के उस हिस्से को देखने जा रहे थे जो पाकिस्तान से जुड़ा हुआ था।
जब हम अंदर बढ़ रहे थे तो दो गगनचुंबी झंडे लहरा रहे थे, एक भारत का तिरंगा और दूसरा पाकिस्तान का। दोनों ही झंडे दूर से दिख रहे थे।
अंदर पहुंचने के बाद एक लंबी सी सड़क थी जिसके दोनों तरफ़ stadium form में stairs थीं जो कि बहुत ऊपर तक थी और एक कोने में दोनों तरफ उन stairs पर कुर्सियां रखी थीं।
कुर्सियों के बाद में वो gate था, जो भारत और पाकिस्तान को जोड़ता था।
जब हम उस जगह पहुंचे तो वहां भीड़ आनी शुरू हो चुकी थी, सब अपने-अपने लिए जगह देखकर बैठते जा रहे थे।
Cultural program लगभग 2 बजे से शुरू हो गया। आपने बहुत से cultural program देखे होंगे, पर जो जोश और उत्साह वहां था वो अलग ही level का था।
वहां program conduct कराने वाले और सबमें जोश भरने वाले उस व्यक्ति विशेष की जितनी तारीफ की जाए, कम है।
2:30 से 3 बजे तक में पूरा stadium ऐसे खचाखच भर गया था कि तिल रखने की जगह नहीं थी। लगभग हजार से भी ज्यादा लोग वहां मौजूद थे और जब सारे भारत माता की जय, वंदे मातरम् और हिन्दुस्तान जिंदाबाद... के नारे लगाते थे तो बहुत ही गर्व की अनुभूति हो रही थी।
हम सब सरहद पर बैठे हैं, इस बात से किसी के मन में भी किंचित मात्र भी भय नहीं था, बल्कि सभी के हौसले इतने बुलंद थे कि लग रहा था कि वो नारे मानों ऐलान हों कि कोई भी भारत से टकरा नहीं सकता।
फिर वो घड़ी आ गई, जिसका हम सब को बेसब्री से इंतज़ार था। लगभग 4 बजे Beating retreat का program शुरू हो गया और चंद मिनटों बाद वो Gate भी खुल गया और उसके बाद दोनों तरफ की सेना का शक्ति प्रदर्शन...
अद्भुत और दुर्लभ...
और फिर वो ceremony, जिसके कारण इसका नाम है, beating retreat...
Flags के fold होने का...
दोनों ही देशों के छोटे बड़े कई झंडे थे। दोनों ही देशों के एक-एक सबसे बड़े झंडे को छोड़कर, बाकी सभी झंडों को slant कर के fold कर दिया जाता है।
26 January और 15 August को वाघा बार्डर या अटारी बार्डर पर 2 बजे से cultural program शुरू हो जाते हैं, और beating retreat 4 बजे से शुरू होती है।
ठंड में beating retreat का time 4 से 5 बजे का होता है और गर्मियों में समय 5 से 6 का होता है।
Beating retreat रोज ही शाम को होती है। 26 January and 15 August में बस उस से पहले cultural program भी add हो जाता है।
यहां बहुत भीड़ होती है, इसलिए सही समय से पहुंचना और निकलना बहुत जरूरी होता है।
आपको अपने साथ खाने-पीने की कोई भी चीज अपने साथ ले जाने की जरूरत नहीं है, पानी से लेकर cold drink, chips, biscuits, chocolate, popcorn, icecream etc सब वहां बिकता है और वो भी लगभग rate to rate... पर कोई चीज महंगी होगी भी तो दस-बीस रुपए ज्यादा... Picture hall, जितना दुगुने चौगुने दाम पर नहीं...
अगर आप को chair वाली जगह चाहिए तो वो online book होती है, जिसका कोई charge नहीं है, बस timely booking देखनी होगी।
बाकी ऐसा नहीं है कि chairs वाली जगह नहीं मिली तो कुछ भी उत्साह और जोश कम होगा, ऐसा बिल्कुल नहीं है...
जय हिन्द जय भारत 🇮🇳
अभी बहुत कुछ बाकी है तो बस ऐसे ही आपको हर रोज़ बताते जाएंगे तो बस आपको करना यह है कि हम से जुड़ा रहना है...
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