अब और नहीं (भाग- 2)
कुछ नहीं माँ जी, सोते हुए
हाथ दब गया था, तो दर्द कर रहा है।
जब अमर चला गया, तो माँ जी रीना
के पास गईं और पूछने लगीं, कहाँ दर्द हो रहा है? दिखा, मैं तेल गरम करके लाई हूँ।
अरे नहीं माँ जी, अभी ठीक हो जाएगा। पर माँ नहीं मानीं, बोली मुझे खूब पता है, कहाँ, और कैसे दर्द है। कहते हुए जब उन्होंने sleeves हटाई, तो रीना की बाहें सूजी हुईं थीं, जैसे किसी ने मरोड़ दी हो।
मुझसे कुछ छिपा नहीं है लाडो। कहते हुए माँ ने गर्म
तेल
लगाना शुरू कर दिया।
मेरे आए दिन तेरे जैसा दर्द हुआ करता था। अमर के पिता
भी अमर के जैसे ही जब पीकर आते थे, तो ऐसे ही मार-पीट किया करते थे, और मैं घर में सबसे झूठ बोला करती थी, सोते में दुख गया, टकरा गई थी, गिर गयी थी।
भी अमर के जैसे ही जब पीकर आते थे, तो ऐसे ही मार-पीट किया करते थे, और मैं घर में सबसे झूठ बोला करती थी, सोते में दुख गया, टकरा गई थी, गिर गयी थी।
जिससे घर में कलेश ना हो। ना जाने अमर ने कब देख
लिया, अपने पिता को ये सब करते हुए, जो ये भी हैवान हो
गया।
बेटा, मुझे माँ ने ये
शिक्षा दे कर भेजा था, चाहे पति कुछ भी करे, सहन करना, मायके लौट के ना आना। शादी करके बेटी
पराई हो जाती है। मैं सहन करती गयी, सबसे छुपाती रही और तेरे
ससुर के अत्याचार बढ़ते गए।
पर तेरे साथ ऐसा नहीं होगा, तू अकेली नहीं है। मैं तेरे साथ हूँ, आज ही अमर से
बात करूंगी।
शाम को अमर आया, तो माँ क्रोध से
भरी हुई थीं। आते से ही बोलीं, तुझे अपनी माँ पर कभी तरस
नहीं आया, जो तू भी, अपने पिता की तरह हैवान
बन गया।
अमर, रीना की तरफ देखने लगा। माँ बोलीं, उसे ना घूर! उसने मुझे कुछ नहीं बताया।
आज नारी उतनी असहाय नहीं है, अकेली नहीं है, मैं हूँ इसके साथ। तू इसके साथ ठीक
से रहेगा, तो ठीक।
नहीं तो मैं तेरे खिलाफ पुलिस में complain कर दूँगी।
और इसे अपने साथ ले जाऊँगी।
माँ का ऐसा रूप देखकर अमर डर गया, बोला आगे से आपको
कभी ऐसी शिकायत नहीं होगी।
आज रीना को समझ आ रहा था, माँ जी दुखी क्यों नहीं थीं, शांत क्यों थीं। वो
पापा जी के अत्याचार से मुक्त जो हो गईं थीं।
रीना सोच रही थी, जो काम मेरी माँ ने करने की नहीं सोची थी, वो मेरे लिए मेरी सास ने कर दिया था, माँ जी के
डांटने के बाद से अमर ने फिर ना कभी शराब पी, ना कभी हाथ ही
उठाया।
कुछ दिन और रुक कर वो बोलीं, मैं यहाँ यही देखने आई थी, कि
अमर का व्यहवार तेरे
साथ कैसा है? जब सब ठीक हो गया है, तो अब
मुझे अपने घर जाने दे। अब ही तो मैं अपने घर को सही मायने में अपना महसूस कर
पाऊँगी।
जाते जाते माँ जी कह कर गईं थीं, अगर मेरे जाने के
बाद अमर परेशान करे, तो मेरी बाट जोहती मत बैठना, सहन करने से अत्याचार कम नहीं होते हैं। सशक्त बन,
अत्याचार अब और नहीं!
No comments:
Post a Comment
Thanks for reading!
Take a minute to share your point of view.
Your reflections and opinions matter. I would love to hear about your outlook :)
Be sure to check back again, as I make every possible effort to try and reply to your comments here.