Friday 17 July 2020

Poem : पावस ऋतु


आज मुझे इंदौर की श्रेष्ठ रचनाकार उर्मिला मेहता जी की यह कविता share करते हुए अपार प्रसन्नता हो रही है।

आइए, उनके साथ हम सब भी पावस‌ ऋतु  में झूम लेते हैं। 

पावस ऋतु
    


Image courtesy : KPBS 


नाचते हैं पेड़,गाते हैं पौधे ,
झूम के मतवाले मस्त हुए जाते हैं
तपती हुई धरती के संतप्त प्राणी, 
खुशी के इज़हार को दोहराए जाते हैं।
धूल के हैं रंग गुलाल,
 हवाओं के जोश जश्न, 
मौसम के स्वागत में व्याकुल आतुर होकर,
सभी जैसे प्रियवर का
 मिलन गीत गाते हैं।
कृष्ण घटाओं में तड़ित की 
प्रखर धार पावस के आगमन
का जय घोष करती है
तृषित धरा का उर पोषित हुआ है ज्यों,
जल नहीं अमृत की बरसात होती है।
Disclaimer:
इस पोस्ट में व्यक्त की गई राय लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं। जरूरी नहीं कि वे विचार या राय इस blog (Shades of Life) के विचारों को प्रतिबिंबित करते हों। कोई भी चूक या त्रुटियां लेखक की हैं और यह blog उसके लिए कोई दायित्व या जिम्मेदारी नहीं रखता है।

6 comments:

  1. धन्यवाद आशु

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  2. धन्यवाद राजुल

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  3. Replies
    1. प्रोत्साहन के लिये हार्दिक धन्ययवाद

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