आज मुझे इंदौर की श्रेष्ठ रचनाकार उर्मिला मेहता जी की यह कविता share करते हुए अपार प्रसन्नता हो रही है।
आइए, उनके साथ हम सब भी पावस ऋतु में झूम लेते हैं।
पावस ऋतु
Image courtesy : KPBS |
नाचते हैं पेड़,गाते हैं पौधे ,
झूम के मतवाले मस्त हुए जाते हैं
तपती हुई धरती के संतप्त प्राणी,
खुशी के इज़हार को दोहराए जाते हैं।
धूल के हैं रंग गुलाल,
हवाओं के जोश जश्न,
मौसम के स्वागत में व्याकुल आतुर होकर,
सभी जैसे प्रियवर का
मिलन गीत गाते हैं।
कृष्ण घटाओं में तड़ित की
प्रखर धार पावस के आगमन
का जय घोष करती है
तृषित धरा का उर पोषित हुआ है ज्यों,
जल नहीं अमृत की बरसात होती है।
Disclaimer:
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धन्यवाद आशु
ReplyDeleteVery good poem.
ReplyDeleteधन्यवाद राजीव
Deleteधन्यवाद राजुल
ReplyDeleteबहुत खूब।
ReplyDeleteप्रोत्साहन के लिये हार्दिक धन्ययवाद
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