हमारे भारत वर्ष के हर क्षेत्र में आपको रत्नों का भंडार मिलेगा। आज आप को विरासत के अंतर्गत एक ऐसी महान विभूति के विषय में बताने जा रहे हैं, जो भक्त शिरोमणि है, यह सिर्फ भारत में होना संभव है।
आज एक ऐसे भक्त के विषय में बताने जा रहे हैं, जिनके नाम से शायद आप या आपके परिवार में कोई परिचित भी हो पर फिर भी बहुत लोगों को इनके विषय में कम ही पता है। अगर इनके जैसी भक्ति आप भी करने लगे, तो ईश्वर प्राप्ति संभव है। नामदेव जी ने हम सबके समक्ष ईश्वर प्राप्ति का सबसे आसान व सटीक तरीका प्रस्तुत किया है। वो क्या है यह आपको पूरा article पढ़कर पता चल जाएगा।
भक्त नामदेव जी
भक्त नामदेव जी का जन्म दक्षिण हैदराबाद में हुआ। माता-पिता निरंतर भगवान के नाम का गुणगान किया करते थे, तो नामदेवजी भी भगवान नाम सुनकर विट्ठलमय हो गए। बालक नामदेव ने एक बार सरल हृदय से विट्ठल की पूजा की और भोग के लिए कटोरे में भगवान को दूध दिया। कुछ देर बाद नेत्र खोलकर देखा, दूध वैसा ही था। नामदेव सोचने लगे, शायद मेरी किसी गलती की वजह से विट्ठल दूध नहीं पी रहे हैं। तो वो रो-रोकर प्रार्थना करने लगे और बोले-विठोबा!
आज यदि तुमने दूध नहीं पिया, तो मैं जिंदगी भर दूध नहीं पिऊंगा। बालक नामदेव के लिए वो मूर्ति नहीं, बल्कि साक्षात पांडुरंग थे। जो रूठकर दूध नहीं पी रहे थे। बच्चे की प्रतिज्ञा सुनकर भगवान प्रकट हुए और दूध पिया। तभी से नामदेव के हाथ से वे रोज दूध पीते। एक बार संत श्री ज्ञानेश्वर महाराज, नामदेवजी के साथ भगवदचर्चा करते हुए यात्रा पर निकले। रास्ते में दोनों को प्यास लगी। पास एक सूखा कुआं था। संत ज्ञानेश्वर ने योग-सिद्धि से कुंए के भीतर जमीन में जाकर पानी पिया और नामदेवजी के लिए थोड़ा जल ऊपर लेकर आ गए। नामदेवजी ने वो जल नहीं पिया।
वो बोले मेरे विट्ठल को क्या मेरी चिंता नहीं है! उसी क्षण कुआं जल से भर गया, फिर नामदेवजी ने जल पिया। एक बार नामदेवजी की कुटिया में आग लग गई और वे प्रेम में मस्त होकर बिना जली वस्तु को भी अग्नि में फेंकते हुए कहने लगे- स्वामी। आज आप लाल-लाल लपटों का रूप बनाए पधारे हो, लेकिन बाकी वस्तुओं ने क्या अपराध किया है, आप इन्हें भी स्वीकार करें। कुछ देर बाद में आग बुझ गई।
एक बार नामदेवजी रोटी बना रहे थे। तभी एक कुत्ता आया और रोटियां उठाकर भाग गया। नामदेवजी घी का कटोरा हाथ में लेकर कुत्ते के पीछे दौड़े भगवन! रोटियां रूखी हैं, अभी चुपड़ी नहीं हैं। मुझे घी लगाने दीजिए, फिर भोग लगाइए। तभी भगवान ने कुत्ते का रूप त्यागकर शंख-चक्र-गदा-पदम् धारण किए। नामदेवजी ने दिव्य चतुर्भुज रूप में भगवान का दर्शन किया। नामदेवजी की भक्ति बड़ी ही ऊंची थी, वो प्रत्येक वस्तु में भगवान को ही देखते थे।
अहंकार और भ्रमित बुद्धि कभी भी कण-कण में भगवान का दर्शन नहीं कर पाती। भगवान को पाने के लिए हम उसको नहीं पूजते, बल्कि अपनी इच्छा पूर्ति के लिए भगवान को याद करते हैं। सच्चे, सरल और निष्कपट भाव से जब हम भगवान को भजते हैं, तब भगवत्कृपा हमारे भीतर उतर आती है।
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