आज आपको ऐसे यौद्धा के विषय में बताने जा रहे हैं, जिनको कुछ लोग सही तो कुछ ग़लत ठहराएंगे।
आपका क्या पक्ष है, comments के जरिए बताइएगा। अगर हमसे पूछेंगे तो हम तो यही कहेंगे कि पुष्यमित्र शुंग हैं, इसलिए भारत है।
कौन हैं यह पुष्यमित्र शुंग, यह हम आपको बताते हैं, पर पहले आप से कुछ प्रश्नों के उत्तर चाहते हैं।
जैसा कि सब जगह यही कहा जाता है कि जीवन का मूल शांति और ईश्वर प्राप्ति है। आप इससे किस हद तक सहमत हैं?
क्या कहा?
पूर्णतः सहमत हैं...
जी बिल्कुल सही!
अच्छा अब दूसरा प्रश्न, यदि आप रक्षक हैं, दुश्मन देश आप के देश पर हमला करने आ रहा है, जिसमें विजय के पश्चात वो आपके देश को बुरी तरह रौंद डालेगा। बच्चों-बूढ़ों पर अत्याचार करेगा, स्त्रियों के साथ दुराचार करेगा।
क्या तब भी आप के लिए शान्ति और ईश्वर भक्ति सर्वोपरी होगी? और देश की रक्षा के लिए तलवार उठाना अनुचित?
या आप के लिए, देश से बढ़कर कुछ नहीं है, ना स्वयं ना ईश्वर।
आप को गुलामी से बेहतर प्राण न्यौछावर करना ज्यादा उचित लगेगा?
बस इसी कशमकश में वीरता की मिसाल हैं पुष्यमित्र शुंग।
पुष्यमित्र शुंग, जिसने मौर्य साम्राज्य के साथ-साथ बौद्ध धर्म का भी अंत कर दिया!
पुष्यमित्र शुंग
भारत वर्ष में कई महान राजा हुए हैं। हिंदू धर्म ग्रंथ और ऐतिहासिक साहित्य इनका वर्णन करते हैं।
ऐसे ही एक प्रतापी राजा हुए पुष्यमित्र शुंग।
शुंग वंश की शुरूआत करने वाले पुष्यमित्र शुंग जन्म से एक ब्राह्मण और कर्म से क्षत्रिय थे। इन्हें मौर्य वंश के आखिरी शासक राजा बृहद्रथ ने अपना सेनापति बनाया था।
हालांकि, पुष्यमित्र शुंग ने बृहद्रथ की हत्या कर मौर्य साम्राज्य का खात्मा कर भारत में दोबारा से वैदिक धर्म की स्थापना की थी। इससे पहले इन्होंने बौद्ध धर्म का लगभग विनाश कर ही दिया था।
आखिर क्यों और कैसे पुष्यमित्र शुंग ने मौर्य साम्राज्य का खात्मा किया? आइए, जानते हैं-
वैदिक धर्म का पतन :
कहानी की शुरूआत, भारत में चन्द्रगुप्त मौर्य के शासन काल से होती है। चन्द्रगुप्त मौर्य के आचार्य चाणक्य ने सदैव हिंदु धर्म का विस्तार करने की प्रेरणा दी।
आचार्य चाणक्य की मौत के बाद चंद्रगुप्त मौर्य ने जैन धर्म अपना लिया और उसके प्रचार-प्रसार को बढ़ावा दिया।
चंद्रगुप्त की मौत के बाद मौर्य साम्राज्य की कमान उनके पुत्र बिन्दुसार के हाथों में आ गई। बिन्दुसार ने अपनी दीक्षा आजीविक संप्रदाय से ली। जिसके चलते वह भी वेद विरोधी सोच वाले बन गए। उन्होंने इसी सोच का प्रसार किया।
जब बिन्दुसार के पुत्र 'चंड अशोक' राजगद्दी पर बैठे, तो शुरुआत में उन्होंने खूब हिंसा का सहारा लिया। अपने साम्राज्य की सीमा विस्तार के लिए उन्होंने पूरे कलिंग को तबाह कर दिया। इसके बाद उन्होंने अहिंसा का रास्ता अपनाते हुए बौद्ध धर्म अपना लिया।
बौद्ध धर्म अपनाने से पहले अशोक का साम्राज्य आज के म्यांमार से लेकर ईरान और कश्मीर से लेकर तमिलनाडु तक स्थापित था। हालांकि कलिंग विजय के बाद इनका सीमा विस्तार कार्यक्रम से मोहभंग हो गया और इन्होंने अपना पूरा जीवन बौद्ध धर्म के प्रचार प्रसार में लगा दिया।
...और बिखर गया मौर्य साम्राज्य
अशोक द्वारा अपनाए गए बौद्ध धर्म के कारण पूरा मौर्य साम्राज्य हिंसा से दूर हो गया था। इसका फायदा उठाते हुए साम्राज्य के छोटे-छोटे राज्य अपने आपको स्वतंत्र बनाने की कोशिशों में लग गए।
इसी के फलस्वरूप, अशोक की मौत और वृहद्रथ के अंतिम मौर्य शासक बनने तक मौर्य साम्राज्य बेहद कमजोर हो गया था। वहीं, इस समय तक पूरा मगध साम्राज्य बौद्ध धर्म में परिवर्तित हो गया।
यकीन करना मुश्किल था, लेकिन जिस धरती ने सिकंदर और सैल्युकस जैसे योद्धाओं को पराजित किया, वह अब अपनी वीर वृत्ति खो चुकी थी। अब विदेशी भारत पर हावी होते जा रहे थे। कारण केवल एक था बौद्ध धर्म की अहिंसात्मक नीतियां।
इस समय भारत की खोई हुई पहचान दिलाने के लिए एक शासक की जरूरत थी। जल्द ही उसे पुष्यमित्र शुंग नाम का वो महान शासक मिल ही गया।
राजा बृहद्रथ की सेना की कमान संभालने वाले ब्राह्मण सेनानायक पुष्यमित्र शुंग की सोच राजा से काफी अलग थी। जिस प्रकार बीते कुछ वर्षों में भारत की वैदिक सभ्यता का हनन हुआ था, उसे लेकर पुष्यमित्र के मन में विचार उठते रहते थे।
इसी बीच राजा के पास खबर आई कि कुछ Greek शासक भारत पर आक्रमण करने की योजना बना रहे हैं। इन Greek शासकों ने भारत विजय के लिए बौद्ध मठों के धर्म गुरुओं को अपने साथ मिला लिया था।
सरल शब्दों में कहा जाए तो, बौद्ध धर्म गुरु राजद्रोह कर रहे थे। भारत विजय की तैयारी शुरू हो गई। वह Greek सैनिकों को भिक्षुओं के वेश में अपने मठों में पनाह देने लगे और हथियार छिपाने लगे।
ये खबर जैसे ही पुष्यमित्र शुंग को पता चली, उन्होंने राजा से बौद्ध मठों की तलाशी लेने की आज्ञा मांगी। मगर राजा ने पुष्यमित्र को आज्ञा देने से इंकार कर दिया।
पुष्यमित्र शुंग ने सेना को संबोधित करते हुए कहा कि आप देश को बड़ा मानते हैं या राजा को...
सेना असमंजस में पड़ गई...
पुष्यमित्र शुंग ने पुनः कहा, कि मेरे लिए ना राजा बड़ा है, ना मैं बड़ा हूँ, मेरे लिए, मेरा देश सबसे बड़ा है। वो देश हम सब का है, मेरा भी और आप का भी। आप के देश को बचाने के लिए, देश के बच्चे, बूढ़े और स्त्रियों को सम्मान जनक जीवन देने के लिए, मुझे आप का सहयोग चाहिए।
क्या आप मेरा साथ देंगे...
आज तक किसी ने सेना को यह सम्मान नहीं दिया था, उन्हें कभी यह एहसास नहीं दिलाया था कि वो देश के रक्षक है, देश के भविष्य निर्माता हैं। उन्हें मात्र सेवक की ही मान्यता प्राप्त थी।
ऐसा सम्मान पाकर सेना जोश से परिपूर्ण हो गई और पुष्यमित्र शुंग के साथ Greek सेना का काल बनने को सहर्ष तैयार हो गई।
सेनापति पुष्यमित्र राजा की आज्ञा के बिना ही अपने सैनिकों समेत मठों की जांच करने चले गए। जहां जांच के दौरान मठों से Greek सैनिक पकड़े गए। इन्हें देखते ही मौत के घाट उतार दिया गया।
वहीं, उनका साथ देने वाले बौद्ध गुरुओं को राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार कर राज दरबार में पेश किया गया।
बृहद्रथ की हत्या कर पुष्यमित्र बने सम्राट :
बृहद्रथ को सेनापति पुष्यमित्र का यह बर्ताव अच्छा नहीं लगा। एक सैनिक parade के दौरान ही राजा और सेनापति के बीच बहस छिड़ गई। बहस इतनी बढ़ गई कि राजा ने पुष्यमित्र पर हमला कर दिया, जिसके पलटवार में सेनापति ने बृहद्रथ की हत्या कर दी।
वहीं माना ये भी जाता है कि एक रात पुष्यमित्र ने राजा बृहद्रथ को अकेले दरबार में बुलाकर धोखे से मारा था।
बहरहाल, बृहद्रथ की हत्या हो चुकी थी। हत्या के बाद सेना ने पुष्यमित्र का साथ दिया और उसे ही अपना राजा घोषित कर दिया।
राजा का पद संभालते ही पुष्यमित्र ने सबसे पहले राज्य प्रबंध में सुधार किया।
पुष्यमित्र शुंग अपंग हो चुके साम्राज्य को दोबारा से खड़ा करना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने एक सुगठित सेना का निर्माण शुरू कर दिया।
पुष्यमित्र ने धीरे-धीरे उन सभी राज्यों को दोबारा से अपने साम्राज्य का हिस्सा बनाया, जो मौर्य वंश की कमजोरी के चलते इस साम्राज्य से अलग हो गए थे।
ऐसे सभी राज्यों को फिर से मगध के अधीन किया गया और मगध साम्राज्य का विस्तार किया।
इसके बाद पुष्यमित्र ने भारत में पैर पसार रहे Greek शासकों को भारत से खदेड़ा। राजा ने Greek सेना को सिंधु पार तक धकेल दिया। जिसके बाद वह दोबारा कभी भारत पर आक्रमण करने नहीं आए।
इस तरह राजा पुष्यमित्र ने भारत से Greek सेना का पूरी तरह से सफाया कर दिया था।
भारत में वैदिक धर्म की पुन: स्थापना
दुश्मनों से आजादी पाने के बाद पुष्यमित्र शुंग ने भारत में शुंग वंश की शुरूआत की और भारत में दोबारा से वैदिक सभ्यता का विस्तार किया। इस दौरान जिन लोगों ने भय से बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया था, वह फिर से वैदिक धर्म की ओर लौटने लगे।
वहीं, इतिहास में कुछ जगहों पर इस बात का भी उल्लेख मिलता है कि पुष्यमित्र ने बौद्ध धर्म के लोगों पर बहुत अत्याचार किए थे। माना ये भी जाता है कि बौद्ध धर्म के लोगों ने Greek शासकों की मदद कर राजद्रोह किया था। इसी के आरोप में पुष्यमित्र शुंग ने ऐसे देशद्रोही क्रूर बौद्ध धर्म अनुयायियों को सजा दी थी।
भारत में वैदिक धर्म के प्रचार और साम्राज्य की सीमा विस्तार के लिए पुष्यमित्र शुंग ने अश्वमेध यज्ञ भी किया था। भारत के अधिकतर हिस्से पर दोबारा से वैदिक धर्म की स्थापना हुई।
इस तरह से पूरे हिंदुस्तान में वैदिक धर्म की विजय पताका लहराने वाले पुष्यमित्र शुंग ने कुल मिलाकर 36 वर्षों तक शासन किया था।
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