रौनक त्यौहारों की
अभी चंद दिनों पहले ही दुर्गा पूजा थी। इस बार माता रानी के पंडाल का आयोजन, हमारे apartment के पीछे के park में ही हुआ था।
हमारा घर first floor पर ही है, अतः एक एक गतिविधि घर बैठे ही पता चल रही थी।
नवरात्र के शुरुआत में पंडाल को सजाए जाने का कार्य होता रहा, और षष्ठी से माता रानी की पूजा आराधना आरम्भ हो गई।
सुबह से लेकर रात तक, पूजा, पुष्पांजलि, बहुत सारे बंगाली गाने बजते, बहुत सारे competition होते रहते थे।
जिससे एक अलग ही उत्साह और उमंग थी। पर दशहरा पर्व के साथ ही सब ख़त्म हो गया।
उसके बाद उस पार्क में ऐसा सन्नाटा पसरा, जिसे देखकर, लगता ही नहीं था कि यहाँ वैसा कुछ भी था। माता रानी की विशाल प्रतिमा, मंडप की भव्यता, लोगों की चहल-पहल, भजन व गीतों की मधुरता, साथ ही इतने सारे competitions की रौनक...
वो सब क्या सिर्फ मन का भ्रम मात्र था?...
उसके बाद दीपावली थी, घर में उसकी खरीददारी और पूजा आदि के कार्य शुरू हो गये।
फिर दीपावली में पूजा अर्चना, पकवान, बच्चों के पटाखे और धूम धड़ाके...
इस साल ग्रहण होने से दीपावली का त्यौहार एक दिन और बढ़ गया था, साथ ही उसका उत्साह और उमंग भी।
पर फिर वही routine life.
कल दोपहर में खाना खाने के बाद कमरे में बैठे थे कि बहुत तेज बिहारी गीत सुनाई देने लगे। थोड़ा ध्यान दिया तो लगा, यह तो छठ मैया के भजन हैं।
समझ नहीं आया कि कहाँ से आवाज़ आ रही है। जब बालकनी में जाकर देखा तो पता चला कि हमारे घर के पीछे वाले पार्क में ही छठ पूजा का आयोजन किया गया था। उसे देखकर मन प्रफुल्लित हो गया।
छठ पर्व का आयोजन पहली बार हुआ था और हमने कभी पूजा होते हुए भी नहीं देखी थी।
तो सोचा, जब आयोजन इतनी पास है। छठी मैया अपना आशीर्वाद देने के लिए आ गई हैं तो पूजा को जाकर देखना चाहिए और उनका आशीर्वाद लेना चाहिए।
उस समय, छठी मैया के सूर्य अस्त के अर्ध्य देने का समय हो रहा था। वहाँ का माहौल बहुत पवित्र होगा, ऐसा सोचकर हमने तुरंत एक बार फिर से स्नान किया और पतिदेव के साथ वहाँ पहुंच गए।
चलिए आप भी हमारे साथ उस मनोरम दृश्य को देखने चलिए।
वहाँ पहुंचे तो देखा, पूरा पार्क साफ सुथरा था, जगह जगह केले के पेड़ रोपे गए थे। वहाँ Mike and speakers का arrangements भी था। जिस पर छठी मैया के भजन चल रहे थे।
गड्ढा खोदकर एक artificial pond create किया गया था।
बच्चे, बड़े बूढ़े, सबकी खूब भीड़ थी।
जगह जगह गन्ने के मंडप बने थे। ईंटों से पूजा करने के स्थान बने हुए थे। वो ऐसे थे, जैसे हम लोगों के यहाँ हवन करने के लिए बनाए जाते हैं। जो कि गेरू रंग से रंगे हुए थे। उसे मोमबत्ती और दीयों से सजाया हुआ था।
लोगों का पूरा परिवार वहाँ मौजूद था, जो स्त्रियां व्रत रखें थीं, उन्होंने सिन्दूर नाक से लेकर मांग तक भर रखा था। जो उनकी खूबसूरती और तेज़ पर चार चांद लगा रहा था।वो लोग डलिया भरकर फल लेकर आए थे।
सूर्य अस्त का समय था, तो जल में उतरकर व्रत रखें हुए लोग सूर्यदेव को अर्घ्य दें रहे थे। कुछ पुरुष भी व्रत रखें थे, वो भी अर्ध्य दे रहे थे। छठ पूजा ऐसा त्यौहार है, जिसमें स्त्री और पुरुष बराबर से व्रत रखते हैं।
जब बड़े लोग, पूजा इत्यादि कर रहे थे, उस समय बच्चे, खेलकूद और आतिशबाज़ी कर रहे थे।
जब अर्घ्य देने का कार्य पूर्ण हुआ तो, सभी लोग फल, पूजा के सामान इत्यादि लेकर लौटने लगे थे। फलों से भरी हुई डलिया, पुरुष ने ही उठा रखी थी।
स्त्रियां, छठी मैया के भजन गाते हुए जा रही थी, सभी भक्ति भाव से परिपूर्ण थी। किसी ने भी चप्पल नहीं पहन रखी थी, पर किसी को भी यह डर नहीं था कि कांटा ना चुभ जाए, कहीं कोई कीड़ा ना काट लें। वो सब तो मातारानी के भक्ति भाव में लीन थी।
हम इस पूजा को नहीं करते हैं, पर ऐसा अद्भुत दृश्य देखकर मन हर्षित हो गया। छठी मैया का आशीर्वाद लेकर हम भी घर लौट आए।
आज सुबह 4:30 बजे से ही पुनः छठी मैया के भजन और पटाखों की आवाज़ सुनाई देने लगी। उठे तो देखा, अभी सूर्य देव प्रकट भी नहीं हुए थे, पर पार्क में फिर से सभी की भीड़ और हलचल थी।
ईंटों के मंडप पर टिमटिमाते हुए दीप और मोमबत्ती जल रहे थे। जिन्हें देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा था, मानों आसमान से उतरकर सारे तारे जमीं पर आ गए हों...
तभी सूर्य देव प्रकट हो गए। उनके प्रकट होते ही लोग ने धूप, दीप, नैवेद्य अर्पित करना आरंभ कर दिया। पूरा पार्क पूजा स्थल बन गया था। Apartment के हर घर में धूप-दीप नैवेद्य आदि का पवित्र और शुद्ध धुआं जा रहा था, जो हर घर में positive energy भर रहा था।
लोग का उत्साह और उमंग देखते ही बन रहा था, टिमटिमाते दीप, हल्का नीला आसमान, नारंगी सूरज, अर्ध्य देते लोग, पटाखे छुड़ाते बच्चे, गन्ने का मंडप, मैया के भजन, धूप-दीप नैवेद्य की खूशबू, सब मिलकर बहुत मनोरम दृश्य था। ऐसा लग रहा था कि यह सब चलता रहे और हम इनका हिस्सा बने रहें। अर्ध्य देने के कुछ देर बाद भजन गाते हुए सब वापस चले गए और हम भी अपने घर आ गए।
10 बजे के बाद, पार्क वापस पहले सा सुनसान हो चुका था। वहाँ मौजूद तालाब, केले के पेड़, गन्ने का मंडप, ईंटों से बने पूजा स्थान और लोगों का रेला कुछ भी तो नहीं था वहाँ... ऐसा लग रहा था मानो सारी कोरी कल्पना हो या स्वर्गिक स्वप्न...
उसे देखकर एहसास हुआ कि यह होती है त्यौहारों की रौनक... सच ज़िंदगी ही तो है, यह त्यौहार और उनकी रौनक...
यही रौनक, हमारे भारत की खूबसूरती और पहचान है, जहाँ इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि त्यौहार किसका है, रौनक सब में होती है, उत्साह और उमंग सब में होता है।कभी मौका मिले तो, एक बार जाकर जरुर देखिएगा, यह रौनक ही जिन्दगी है। या यूं कहें कि रौनक से ही जिंदगी है, जो आपको आप से मिलाती है।
हमें गर्व है कि हम ऐसे देश के नागरिक हैं जो त्यौहारों का देश है। अद्भुत प्रेम सौहार्द और भाईचारे का देश है
जय हिन्द जय भारत 🇮🇳
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