आज भारत की धरोहर में आपके लिए रावण के जन्म की कहानी को लेकर आए हैं।
आप सोचेंगे कि रावण के जन्म ने ऐसा क्या प्रेरित किया?
तो उसका कारण है, कि रावण ने माता सीता का अपहरण किया था, फिर भी वो भगवान के हाथों, मुक्ति को प्राप्त हुआ।
क्या दुराचार करके भी किसी को मुक्ति मिल सकती है, और वो भी स्वयं श्रीहरि के हाथों?
क्या ईश्वर को पाने के लिए दिन-रात भक्ति की कोई आवश्यकता नहीं है?
इन्हीं सब प्रश्नों का जवाब है, रावण का जन्म और विजयदशमी...
रावण का जन्म
श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार रावण पिछले जन्म में भगवान विष्णु के द्वारपाल जय थे, जो अपने भाई विजय (जो बाद में कुंभकर्ण बने) के साथ थे।
एक बार उन्होंने सनक आदि मुनियों को भगवान विष्णु से मिलने से रोका, जिससे क्रोधित मुनियों ने उन्हें तीन जन्मों तक राक्षस योनी में रहने का श्राप दिया।
इसी श्राप के कारण जय और विजय ने पहले हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु के रूप में जन्म लिया, जिनका वध भगवान नरसिंह ने किया। दूसरे जन्म में वो रावण और कुंभकर्ण के रूप में उत्पन्न हुए, जिनका वध भगवान श्रीराम ने किया।
अब इस बात का कुछ कारण तो आपको समझ आ गया होगा, पूरा इन बातों से समझ लेते हैं।
रावण और कुंभकर्ण कोई दुरात्मा नहीं थे, बल्कि भगवान विष्णु के द्वारपाल थे। उनका अपराध अक्षम्य नहीं था, न ही इतना बड़ा था कि उन्हें तीन जन्मों के लिए श्राप मिल जाता।
पर हमारे ऋषि-मुनि इतने सिद्ध थे कि उनके दिए गए श्राप को काटने के लिए भगवान को जन्म लेना पड़ता था।
अब जब जय और विजय उनके ही द्वारपाल थे, तो उनकी मुक्ति के लिए तो श्रीहरि को आना ही पड़ता।
पहली बार नरसिंह भगवान के रूप में, उसके विषय में विस्तार से फिर चर्चा करेंगे।
आज दशहरा है तो आज रावण को ही प्रधानता देते हैं।
हांँ, तो दूसरा जन्म रावण और कुंभकर्ण था, जिसकी मुक्ति के लिए स्वयं श्रीराम आए थे और वो भी तब जब रावण ने उनकी पत्नी माता सीता जी का अपहरण किया था।
आपने अपहरण देखा। पर क्या यह देखा कि रावण के जन्म में भी वह, कितना बड़ा शिवभक्त था। वो कितना विद्वान था, वो कितना बड़ा पंडित था, उसके राज्य में प्रजा सुखी थी, वो इतना समृद्धशाली था कि उसकी लंका सोने की थी। उसके परिवार में सुख, शांति, प्रेम और इतना अपनापन था कि पूरे कुटुम्ब ने रावण के लिए अपना जीवन निछावर कर दिया।
और उसने माता सीता जी का अपहरण ज़रूर किया, पर माता सीता के उसके पास अकेले रहने के बावजूद भी कभी उसने उन पर बल का प्रयोग नहीं किया। बल्कि उनके लिए हर तरह की सुविधा का ध्यान रखा।
अब श्रीहरि से मुक्ति चाहिए थी, वो भी पूरे कुटुम्ब के लिए, तो कोई तो बड़ा कारण होना चाहिए था। रावण ठहरा पुण्य-आत्मा, अतः उसने सम्मान सहित माता सीता जी के अपहरण को निमित्त बना लिया।
तो आपको क्या लगता है, कि श्री हरि ने एक दुराचारी को मुक्ति दी थी? नहीं, बल्कि एक पुण्य-आत्मा को ही मुक्ति दी थी, और वो भी इस बड़े संदेश के साथ कि कोई लाख अच्छे कर्म कर ले, पर उसके द्वारा किया गया एकमात्र पाप भी अक्षम्य है।
तो विजयादशमी (दशहरा) पर्व दो बातों का प्रतीक है :
- जो ईश्वर का भक्त है, उसकी मुक्ति सदैव ईश्वर द्वारा होगी, भले ही उसके लिए उन्हें जन्म ही लेना पड़े।
- व्यक्ति द्वारा किया गया एक पाप भी उसके सौ पुण्य पर भारी है।
आप सभी को विजयादशमी पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएँ 🙏🏻
रावण के पुतले को जलाएँ पर उससे पहले अपने भीतर बैठे रावण को मारकर आएँ।
जय श्री राम 🚩🙏🏻
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