सपने
मनीष अपनी माँ के साथ काम करने जाया करता
था। उसके चार भाई बहन और थे। पिता भी मजदूरी का काम करते थे। दिल्ली में सभी कुछ बहुत महंगा है, अत:
तीनों के काम करने के बावजूद, घर में किसी तरह केवल
खाने-पीने का ही जुगाड़
हो पाता था।इसलिए मनीष के माँ बाप उसे स्कूल नहीं भेज सकते थे।
मनीष जब काम करने अपनी माँ के साथ जाता तो, वहाँ बच्चों को
खिलौने से खेलता देख उसका मन भी खिलौने के
लिए मचल उठता। पर वो मन मार
कर रह जाता।
जहाँ वो काम करता था, उनमें से एक
madam बहुत दयालु थी। उसे आए दिन कुछ न कुछ खाने
को, और थोड़े पैसे देती रहती। वो सोचती थीं, कि
इसके माँ बाप के पास
इतने पैसे नहीं हैं कि वे उसे पढ़ा- लिखा के
योग्य बना सकें। पर ये
मेहनती है, और
धुन का पक्का है, तो
इसे चार पैसे कमाना सिखाया
जा सकता है।
उन्होंने उसे पैसा जमा करने की बात कही। बोली
जो पैसा, मैं
तुझे ऊपर से देती हूँ, या
कहीं से तुम्हें मिलता
है उसे जमा किया करो।
मनीष को वो बहुत अच्छी लगती थीं। उसने उनकी बात मान कर वैसा
ही करना शुरू कर दिया।
3महीने में उसके पास
२00 रुपए इकठ्ठा हो गए। उसने बड़ी ही खुशी से उन madam को बताया।
वो बोली, बेटा
अब मैं तुम्हें ये बताऊँगी, कि
इन पैसों को कैसे बढ़ा
सकते हैं।
तुम बहुत होशियार हो, मैं तुम्हें हिसाब-किताब सीखा देती हूँ। उसके
लिए तुम्हें रोज मेरे पास एक घण्टे आना पड़ेगा।
मनीष ने उनके पास 1 घंटा ज्यादा रुकने लगा, वो बहुत मन लगा के पढता, अतः मात्र २ सप्ताह में, वो
हिसाब लगाना सीख गया।
उन्होंने मनीष के पैसों में कुछ अपने पैसे मिला कर, उसे
मार्केट ले जा कर उसके लिए भुट्टा
और भुट्टा भूनने के समान ला दिये।
अब रोज शाम को उन्हीं madam के apartment के नीचे उसने अपनी छोटी सी दुकान खोल ली।
मनीष की मेहनत रंग लायी और दुकान चल निकली। तब madam ने मनीष को और खाने-पीने के समान बनाना सिखा
दिया। चंद दिनों में ही मनीष की दुकान में अच्छी भीड़ होने लगी,
अब वो सुबह-शाम दुकान लगाने
लगा।
मनीष अच्छा कमाने लगा, उसकी
कड़ी मेहनत से उसके छोटे-छोटे
सपने पूरे होने लगे। माँ भी अब सिर्फ उन्हीं madam के अलावा किसी और
के घर काम नहीं करती।
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