भय (भाग - 3)
जब वे सब घायल थे, रंजना ने वहाँ पड़ी रोड से उन चारों की बेतहासा धुनाई की। उस समय उसे देखकर कोई नहीं कह सकता था, कि यह वही रंजना है, जो बेहद सौम्य है, वो पूर्णत: चंडी का स्वरूप धारण कर चुकी थी।
वो डॉक्टर थी, इसलिए उसे पता था, कहाँ मरने से ये फिर कभी किसी मासूम को सता नहीं पाएंगे, साथ ही ज़िन्दगी भर अपने कुकर्म को भुगतेंगे भी, पर ठीक नहीं हो पाएंगे। आखिर में उसने उन दोनों के पैर से गोली भी निकाल दी।
जब वो उन दरिंदों को सज़ा देकर हटी, तो उसकी वही दोस्त भी आ गयी। अरे रंजना मेरे इंतज़ार तो कर लेती, मैं भी तो आ ही रही थी ना।
रंजना ने उसे gun वापस करते हुए कहा, तुम्हारी service gun और training मेरे साथ थी। बस और मुझे कुछ नहीं चाहिए था।
रंजना आज तुम्हें भय नहीं लगा?
नहीं! आज मुझे एक ही जुनून था, इनसे बदला लेने का।
रंजना तुम्हारी जैसी सारी लड़कियाँ हो जाएँ, तो हम पुलिस वालों की जरूरत ही ना हो।
काश मुझे, उस दिन भी भय ना लगता, तो इन दरिंदों को उस दिन ही सबक सीखा देती।
रंजना, अपनी दोस्त के साथ वापस आ गयी। अगले दिन news थी, एक लड़की ने अपनी अस्मत लूटने वालों को सज़ा दी। अब सज़ा देने के लिए कानून नहीं खुद लड़कियाँ हो रही हैं बुलंद।
उन दरिंदों की हालत देखकर बहुत दिन तक उस इलाके में कोई वारदात नहीं हुई। क्योकि वो जीवित तो थे, पर बस एक जीवित लाश से। आज उन्हें समझ आ रहा था, कि जिन लड़कियों के साथ वो ऐसा करते थे, उन्हें कैसा दर्द होता था, और उन्हें कैसी अपनी ज़िदगी लगती थी।
साथ ही वहाँ की लड़कियों के अंदर भी जोश भर चुका था, कि अगर भय नहीं करेंगी, तो वो चंडी का स्वरूप बन सकती हैं। और अगर लड़की को चंडी का रूप धरना आता है, तो भय दरिंदों को लगेगा।
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