ज़िन्दगी का पड़ाव
कल ही नयी नयी शादी हुई थी। पूरा घर मेहमानों से खचाखच भरा था।
ससुराल में पहला कदम रखने के साथ ही लंबा घूंघट करा दिया गया था। क्योंकि अभी मेरी ससुराल के साथ ही सासू मां की ससुराल के सब लोग भी मौजूद थे और कुछ उनके ससुराल के भी।
दिन भर रीति रिवाज में गुज़र गया। रात तक कमर का बैंड बाजा बज चुका था। पर ना तो अपना कमरा कौन सा है, वो पता था, ना बिस्तर... और पतिदेव तो किस कोने में हैं, उसकी तो हवा भी नहीं थी।
मेरी शक्ल पर बारह बजे देखकर सासू मां को दया आ गई, वो अपनी ननद से बोलीं जीजी, सारी रस्म अदायगी हो गई हो तो बहुरिया को बा का कमरा दिखाएं दूं।
पर ननद तो ठहरी ननद, उनको कभी अपनी भाभी पर तरस ना आया, तो मुझ पर कैसे आता।
कहे भाभी, इन्नी जल्दी किस बात की है, अपना समय भूल गई, 4 दिन तक भैया से ना मिल पाई थी।
4 दिन! मेरी तो सुनकर सांस लगभग रूकने ही वाली थी, पर तब तक मम्मी जी बोलीं..
सब याद है जीजी, कछु ना भूली। पर तब बख्त अलग था। आज कल के बच्चों में उतना सब्र कहाँ।
मम्मी जी ने बात ख़त्म की ही थी कि ना जाने पतिदेव कहां से प्रगट हो गये।
मां दो दिन में ही Bombay निकलना है, जो भी रस्म करनी हो, आधे घंटे में पूरी कर लीजिए। फिर निशा को मेरे कमरे में छोड़ दीजिए, बहुत से paper work करने हैं इसको अपने job transfer से related...
मेरी और मम्मी जी दोनों की बांछे खिल गई कि चलो आधे घंटे में सारी रस्में पूरी हो जाएंगी।
क्योंकि बुआ जी, केवल नीलेश के कहने से शांत होती थीं।
मुझे मेरे कमरे में पहुंचा दिया गया...
मम्मी जी, मुझे मेरे में छोड़कर अपने कमरे की ओर बढ़ चली थीं....
बहुत ही व्यवस्थित कमरा था, जो उस कमरे में रहने वाले की निपुणता को दर्शा रहा था।
कमरा गुलाब की भीनी खुशबू से महक रहा था, पर कमरे में एक भी फूल नहीं थे। लेकिन बेहद सुन्दर decorative pieces से कमरा सजा हुआ था, बहुत धीमी आवाज में रोमांटिक गीत बज रहा था, साथ ही मद्धम रोशनी पूरे कमरे को बहुत दिलकश बना रही थी।
सुहागरात का कमरा, जिसमें एक भी फूल ना हों, फिर भी वो इतना खूबसूरत और दिलकश लग सकता है, ऐसा मेरी सोच से परे था...
अंजान सी मैं कमरा निहार थी कि एक दमदार आवाज ने आवाज दी,..
निशा, कैसा लगा तुम्हें?
आगे पढें...
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