निर्लज्ज (भाग - 2) के आगे...
निर्लज्ज (भाग - 3)
कठिन से कठिन परिस्थितियों को मुंह तोड़ कर जवाब देने वाली तृषा भी, यह सुनकर अंदर तक बुरी तरह से हिल गई। पति का असमय जाना तो उसने बर्दाश्त कर लिया था, पर कार्तिक! नहीं भगवान इतना निर्दयी नहीं हो सकता.. इसकी कल्पना से ही उसके दिमाग की नसें फटी जा रही थीं...
जब सब संयत हुए तो यह सोचा जाने लगा कि क्या किया जाए, क्योंकि एक तो तबीयत ख़राब होने के कारण कार्तिक सुचारू रूप से नौकरी नहीं कर सकता था, दूसरा दवाइयों और इलाज़ के लिए भी बहुत पैसा चाहिए था।
तृषा बोली कि मैं सोच रही हूं, फिर से अचार पापड़ का business शुरू करते हैं ,उससे कुछ पैसे मिलेंगे तो सब संभालना आसान होगा।
तृषा की बात से पहली बार श्वेता भी सहमत थी। उसने अचार पापड़ बनाने और बेचने में तृषा की मदद करनी शुरू कर दी।
तृषा के हाथ में बहुत स्वाद था और पहले वाले customer तो चाहते ही थे कि तृषा फिर से अचार पापड़ बनाने लगे, तो उन लोगों का Business जल्दी ही ठीक-ठाक चलने लगा।
उससे घर का खर्च तो निकलने लगा, पर इलाज और दवाइयों के लिए हाथ अभी भी tight चल रहा था।
कुछ हफ्ते ही बीते थे कि तृषा की तबीयत भी खराब रहने लगी, जब देखो तब उसे उल्टियां होने लगे, चक्कर आने लगे। खाने की इच्छा भी बहुत बार नहीं करता।
शुरू-शुरू में तो कुछ नहीं, पर कुछ दिन बाद श्वेता की मौसी लता कुछ दिन के लिए रहने आयी।
वो बहुत प्रपंची और नाटक बाज थी, उन्हें भांपते देर नहीं लगी कि तृषा pregnant है।
जैसे ही उन्होंने यह बात, श्वेता को बताई, तो उसने हंगामा मचा दिया।
उस दिन कार्तिक घर पर नहीं था, तो बस श्वेता ने मौके का फ़ायदा उठाया और लगी, अपनी सास को बुरा भला कहने।
कैसी निर्लज्ज स्त्री हैं आप? जिस उम्र में लोग पूजा पाठ करते हैं, आप उस उम्र में बच्चा पैदा करना चाह रही है। अपनी तो कोई इज्जत है नहीं और हमारी मट्टी में मिलाएं पड़ी हैं।
आने दीजिए, कार्तिक को सब बताती हूं, क्या क्या गुल खिला रही हैं आप...
आगे पढ़े निर्लज्ज (भाग - 4) में ..
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