Monday, 7 April 2025

Story of Life : वो भयानक रात


वो भयानक रात (भाग -1)



रात गहरा चुकी थी, सब सो चुके थे। हर ओर सन्नाटा पसरा हुआ था।

तभी बहुत तेज दरवाजा पीटने की, साथ ही bell पर bell बजाने की आवाज आने लगी।

सुनीता, सुरेश, श्यामा और सन्नी सब जाग गये।

दरवाजा खोला, तो सामने आशा, अपने बच्चों के‌ साथ खड़ी थी।

थोड़ी ही देर में हुड़दंग और बच्चों के शोरगुल से घर की शांति भंग हो चुकी थी।

श्यामा और सन्नी, सुनीता की ओर प्रश्न सूचक नजरों से देख रहे थे, जैसे पूछ रहे हों, यह सब क्या है माँ?

शांत स्वभाव के सुरेश जी भी, इतनी रात को मंच रही चिल्ल-पों से irritate होने लगे।

सुनीता को भी आशा का इतनी रात को बच्चों के‌ साथ आ जाना, कुछ समझ नहीं आ रहा था।

बहुत संकोच के बाद उसने आखिरकार, आशा से इतना ही पूछा, क्या आशा इतनी देर में बच्चों के साथ क्यों?

पर आशा से ज्यादा बोलना भी कहां होता था, ज़रा कुछ बोलो और उसका tape recorder शुरू हो जाता था, तो बस सुनीता के इतना पूछने भर से वो लगी दहाड़े मार-मारकर रोने...

क्या रात दीदी... मेरे पर परेशानी आएगी, तो और मैं कहां जाती? तुम्हारा ही तो सहारा है... 

वरना बच्चों के साथ हमें इतनी रात को कौन अपने घर आने देगा? तुम भी ना, कुछ समझती ही नहीं हो... 

अभी आशा अपना दुखड़ा सुना ही रही थी कि उसके दो बच्चे सोफे पर ज़ोर-ज़ोर से कूदने लगे और उनके कूदने से सोफे की seat फट गई... 

Seat फटने से एक बच्चा disbalance होकर गिर गया और जोर-जोर से रोने लगा।

अब सुनीता को समझ नहीं आ रहा था कि लाखों रुपए के महंगे सोफे को देखकर दुखी हो या बच्चे को लगी चोट को देखे...

वो अभी ऊहापोह में ही थी कि ज़ोर-ज़ोर से चटाक-चटाक की आवाजें आई, आशा ने दोनों बच्चों को चाटें रसीद दिए थे। 

यह देख, बरबस सुनिता के मुंह से निकल गया, अरे क्या कर रही है? बच्चे को देख उसे चोट तो नहीं लगी है।

यह कहते हुए सुनीता, उस बच्चे की ओर बढ़ी, जो गिर गया था, पर उसका पैर बड़ी तेज़ी से फिसला गया... 

वो तो सन्नी ने संभाल लिया, वरना आशा के बच्चे के चक्कर में सुनिता की हड्डी ज़रूर टूट जाती...

सुनीता को समझ नहीं आ रहा था कि आखिर वो अचानक से फिसलने कैसे लगी थी?

आगे पढें वो भयानक रात (भाग - 2) में 


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