जहाँ चाह वहाँ राह
आज सुबह से ही काले बादल छाए हुए थे, हवा बड़ी ही सुहानी चल रही थी,
इतनी गर्मी के बाद ऐसी सुहानी सुबह, सबको ही बड़ी पसंद आ
रही थी। किसी को नहीं पसंद आ रही थी, तो वो थे apartment
के बच्चे।
हफ्ताभर बाद तो Sunday
आया था,
कहीं बारिश हो गयी तो, सारे बच्चे यही सोच
सोच कर परेशान थे।
अरे ये क्या! वही हो गया, जिसका बच्चों को डर
था, बहुत तेज़ बारिश शुरू हो गयी।
और जो शुरू हुई, तो ऐसी की बंद होने का नाम ही नहीं ले रही थी। 2 घंटे तक चली
बारिश से आलम ये हो गया, कि खेलने का मैदान पानी से भर गया।
सारे बच्चे दुखी थे, पर तरुण तो जहां से निराला था, कोई भी situation
उसे खेलने से नहीं रोक सकती थी।
वो सोचने बैठ गया कि आज क्या खेला जाए?
चार दिन पहले उन लोगों के घर में लकड़ी
का काम हुआ था। एक चौकोर सा लकड़ी का टुकड़ा, देखकर उसे idea आ गया।
उसने उसे उठाया, और
नीचे जा कर उस पर एक पैर से फिसलना शुरू कर दिया, उसे
देख बाकी बच्चे भी
अपने अपने घर से flat base वाली चीजे
ले आए।
कुछ ही देर पहले जो पानी से भरा हुआ शांत मैदान था। वो एक बार फिर से बच्चों की किलकारी से भरा हुआ खेल का मैदान बन गया।
कुछ ही देर पहले जो पानी से भरा हुआ शांत मैदान था। वो एक बार फिर से बच्चों की किलकारी से भरा हुआ खेल का मैदान बन गया।
ये देख कर सारे बड़े लोग बोल उठे, जब तक तरुण यहाँ है, कभी भी, कुछ भी संभव है। ये
लड़का हमारे apartment की जान है, शान है। ये हम सब को भी प्रेरणा देता है, कि कभी हार नहीं माननी
चाहिए, क्योंकि जहाँ चाह होती है, वहीं राह होती है।
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