Tuesday 22 January 2019

Poem : देखोगे गोर से


 देखोगे गौर से



गर देखोगे गौर से
इस  कड़कड़ाती ठंड में 
गर्म कपडे 
हमसे कुछ कहते हैं 
कहते हैं ज़िंदगी भी
कुछ उन जैसी ही होती है
गर्म कपड़ों का एहसास
जैसे अपनों का साथ
जितना आप उसमें
लिपटते जाते हैं
नर्म और गर्माहट
अपने अंदर पाते हैं
ऐसे ही जब अपनों
के करीब आते हैं
सुरक्षा के एहसास
में सिमट जाते हैं
जिस तरह गर्म कपड़ों
के रहते सर्दी कुछ
बिगाड़ नहीं पाती
वैसे ही अपनों के
पास रहने से
दुनिया दुश्मनी
निभा नहीं पाती

2 comments:

Thanks for reading!

Take a minute to share your point of view.
Your reflections and opinions matter. I would love to hear about your outlook :)

Be sure to check back again, as I make every possible effort to try and reply to your comments here.