Monday 12 August 2019

Article : ईद मुबारक- एक अपील


ईद मुबारक- एक अपील


आज ईद के मुक़द्दस मौके पर लोगों ने मुहिम छेड़ी है कि बकरे की कुर्बानी ना दी जाए।

न जाने कितने video viral किए जा रहे हैं, facebook, whatsapp, twitter पर messages डाले जा रहे हैं।

पर जनाब ये हिन्दू नहीं है, जो बात बात पर अपने धर्म, अपने मजहब के रीति-रिवाजों से छेड़छाड़ करें।

ये हम हिंदुओं की तरह कभी pollution के नाम पर दिवाली में पटाखे न चलाना, होली में रंगों से ना खेलना, emotion के नाम पर राखी में हर एक को राखी बांधकर, उसे राखी से friendship day नहीं बनाते, कभी कठिनता के नाम पर तीज़ त्यौहारों के नियम सरल नहीं करते, व्रत-त्यौहार में पानी पीने नहीं लगेंगे, कभी modernity के नाम पर गुझिया, पापड़, मिठाई-नमकीन, घरों में पकवान ना बनाकर होटेलों का रुख लेकर नियम ताक पर नहीं रखते हैं।

इनके यहाँ सदियों से बकरों की कुर्बानी दी जा रही हैऔर सदियों तक यथावत दी जाएगी। रोज़ों का स्वरूप भी कठिनता के नाम पर नहीं बदला गया, पहले भी रोज़ों के दिनों में पानी पीना तो दूर, थूक तक नहीं निगला जाता था, आज भी नहीं और आगे भी ऐसा ही रहेगा।

Modernity के नाम होटलों पर जा कर त्यौहार नहीं मनाया जाता, आज भी रोज़ों के दिन पर अफ़तारी में और ईद की शामों में घरों से पहले सी ही वही सुगंध उड़ती है।

शायद, यही कारण है, कि सरकार भी हिंदुओं के त्यौहारों पर ही आसानी से आदेश जारी कर देती है, और उन पर अमल भी हो जाता है, जैसे दिवाली में पटाखों पर ban या time slot. बाकी धर्मों के त्यौहारों पर सरकार ban लगाना तो दूर की बात है, संसाधन मुहैया करा देती है। चाहे फिर ईद हो या new year.

आज मुसलमान समुदाय की वृद्धि और शक्ति बढ़ती जा रही है, उसका कारण एक मात्र उनकी जनसंख्या नहीं है, अपितु उसका बहुत बड़ा कारण है, उनका अपने खुदा पर विश्वास, अपने धर्म के प्रति आस्था, और एकता भी है। और ये इनसे सीखने वाली बात है।

आपको मुसलमान, अपने धर्म से छेड़छाड़ करते नहीं दिखेंगे, किसी भी कीमत पर उनके नियम नहीं बदलेंगे। अगर उन्हें 5 वक़्त की नमाज अदा करनी है, तो वो करेंगे ही, उसके लिए ना अपनी व्यस्तता देखेंगे, ना जगह देखेंगे, ना ये सोचेंगे, कि कोई क्या बोलेगा।

विश्वास इस कदर है, कि आप उन्हें मंदिरों में जाते नहीं देखेंगे। हम हिंदुओं के 34 करोड़ देवी देवता हैं, पर हम दरगाह में भी जरूर जाते हैं।

हर ईद में वो नमाज़ पढ़ने ईदगाह पर जाते हैं। जहाँ सभी इकठ्ठा होते हैं, जो उनकी एकता की शक्ति बढ़ाता है।

ऐसा नहीं है, कि मैं कुर्बानी के विरोध में नहीं हूँ। किसी भी त्यौहारों में ही क्यों, वैसे भी जीव हत्या अनुचित है। केवल ईद में ही नहीं, रोज़ ही बहुत से लोगों के स्वाद के लिए बकरे, मुर्गे, मछ्ली आदि ना जाने कितने जानवर भोजन का हिस्सा बनने के लिए कुर्बान कर दिये जाते हैं, हत्या कर दी जाती है।

ईद में बकरा काटने का उद्देश्य होता है। उसके कटने के बाद उसके तीन हिस्से किए जाते हैं,  एक भाग खुद के लिए,  दूसरा दोस्तों व रिश्तेदारों के लिए, और तीसरा बड़ा हिस्सा गरीब और मज़लूमों के लिए।

ऐसा इसलिए किया जाता है, कि ना केवल हम ईद अच्छे से मनाएँ, बल्कि सभी ईद अच्छे से मनाएँ। कोई उस दिन भूखा न रहे, कोई निराश ना रहे, अर्थात बकरे की कुर्बानी के पीछे सबब भी शामिल है।

जीव-हत्या का विरोध करें पर केवल ईद में नहीं, हमेशा के लिये।

सभी को ईद मुबारक!

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