जब कभी बहू kitchen में होती, तो कहती, क्या भाभी आपके माँ-बाप ने ठीक से देखा
नहीं था? कैसे कंगलों में शादी कर दी।
कभी कहती, आपकी तो किस्मत
ही खराब है, ऐसी हट्टी-कट्टी सास के रहते हुए भी आपको उनका
काम करना पड़ता है। अब छोटे-मोटे काम तो वो खुद भी कर सकती हैं, जब देखो, तब आपको हर काम के लिए आवाज़ लगा देती हैं।
बहू को सास पहले ही पसंद नहीं थीं, ऊपर से चतुरी की बातें और दिमाग खराब कर देती थीं।
कुछ ही दिनों में चतुरी ने गंदा काम करना, और आए दिन छुट्टी लेना शुरू कर दिया। दोनों सास-बहू उससे कुछ ना कहते, दोनों की मुँहलगी जो हो चुकी थी।
और कभी बहू इतनी छुट्टी के लिए कुछ बोलती, तो चतुरी खूब तेज़ - तेज़ चिल्लाने लगती, गरीब का दुख
- दर्द भी समझ लिया करो, एक - एक छुट्टी ना गिना करो भाभी, अच्छा नहीं लगता। यह देखकर सास का मन घी के दीपक जलाने लगता, कि चलो कोई तो है, जो बहू पर चिल्लता है।
और कभी सास गंदे बर्तन देखकर मीन-मेख निकालती, तो चतुरी उस पर चढ़ बैठती, बर्तन तो भिगोते नहीं हो
आप लोग, और मुझको बोल रहीं हैं। ये देखकर बहू का मन बल्लियों
उछलने लगता, चलो कोई तो है, जिससे दबती
हैं।
ऐसे ही दिन कट रहे थे। एक दिन दादी सास का आना
हुआ। वो बड़ी ही रौबदार, समझदार
थीं, उनकी बात सास और बहू दोनों ही सुनते थे। दो दिन में ही
उन्हें चतुरी की सारी चतुराई समझ आ गयी। उन्हें अपनी बहुओं पर बहुत क्रोध आया।
फिर मन शांत करके
उन्होंने सास बहू दोनों को बुलाया, और बोलीं......
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