सास बहू और वो
निखला जी ने अपने बेटे की शादी क्या तय कर दी, वे मान बैठी, कि बहू आ रही है तो उनके तो सुख के
दिन शुरू हो गए। अब तो वो अपने आप को महारानी ही समझने लगीं। सोचने लगीं, अब वो सास बन जाएंगी, तो बरसों से कर रहीं बहुत
सारे काम, अब बहू संभालेंगी।
इसमें उनकी कोई गलती भी नहीं थी, वो जब बहू बनकर आयीं थीं, तो उन्हें भी सारी बागडोर
थमा कर उनकी सास भी महारानी बन गईं थी।
पर हाय रे! उनकी किस्मत... आज कल कहाँ ऐसी बहुएँ।
तो बस, उनकी भी ऐसी नहीं
आई।
बहू तो सपने सजा कर आई थी, कि अब अपने घर जा रही हूँ, तो रानी बनकर रहूँगी।
बस फिर क्या था, शुरू हो गया घमासान, कि घर के काम कौन करे?
ना सास झुके ना बहू। बहुत
सोच विचार कर, सलाह-मशविरा करके यह बात तय की गई कि एक maid
रख ली जाए।
बस वहीं से सिलसिला शुरू हो गया, सास बहू और वो का...
उनके घर काम करने आई चतुरी, जस नाम-तस गुण, महा चालक।
आते ही वो बहुत जल्दी समझ गई, कि दोनों सास बहू में एकदम
भी नहीं पटती है। उसने अपना खेल खेलना शुरू कर
दिया।
जब kitchen में सास
होती, वो बहू की खूब बुराई करती, और
सास को खूब चढ़ाती, माता जी, आज कल की
कैसी बहुएँ हो गई हैं।
अरे काम तो मैं सारे ही कर देती हूँ, पर भाभी से इतना भी ना
होवे है, कि आपको थाली लगा
कर दे दें। बताओ आपको वो भी इस उम्र में करना पड़ता है।
कभी कहती, क्या माता जी, कैसी बहू ले आयीं, आप हमारे सीधे-साधे भैया जी के
लिए? पूछताछ नहीं कारवाई थी क्या?
उसकी ऐसी बातें सुनकर निखिला जी का दिमाग और गरम हो
जाता। वो अपनी बहू से और ही खार खाने लगतीं।
जब कभी बहू kitchen में होती, तो कहती, क्या भाभी......
आगे पढ़े सास बहू और वो (भाग- 2) में
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