Wednesday 30 October 2019

Story Of Life : माँ ही करती हैं!


माँ ही करती हैं!

रोहित के office में अहना नई नई आई थी। खुले ख़यालों वाली स्वछंद लड़की, अपने में ही मस्त, दुनिया की कोई परवाह नहीं। जल्दी वो office के दिल की धड़कन बन गयी।

Office में सब उसके इर्द गिर्द मँडराते थे, पर अहना को सबसे ज्यादा रोहित भाया था। रोहित बहुत ही सीधा-सच्चा और मासूम था। अहना हमेशा से ऐसा ही जीवनसाथी चाहती थी, जो उसके इशारों पर नाचे।

उसने रोहित से नज़दीकियाँ बढ़ानी शुरू कर दी, दोनों में प्यार हो गया। चंद दिनों में प्यार परवान चढ़ने लगा, अब तो आलम ये था कि रोहित एक पल भी अहना के बिन नहीं रह सकता था।

एक दिन रोहित अहना को माँ से मिलवाने ले गया। वहाँ अहना ने देखा रोहित की माँ बहुत काम करती थीं, उन्होंने किसी काम के लिए कोई maid नहीं रखी थी।

बर्तन, झाड़ू-पोछा, कपड़े धोना, खाना बनाना, साफ-सफाई सब वो अपने हाथ से ही करती थीं। वो भी सब बहुत ही अच्छा, घर एकदम शीशे सा चमक रहा था।

फिर नाश्ता लगाया तो, उसमें भी बहुत सारी verity, और सब एक से बढ़ कर एक tasty, market में मिलने वाले नाश्तों को मात कर देने वाला।

और साथ ही वो देख रही थी, कि उसमें भी कुछ खाने की चीजों में रोहित नुक्स निकाल रहा था। पर माँ बड़े ही लाड़ से रोहित के according उसे ठीक कर दे रहीं थी।

अहना को ये सब देखकर चक्कर आने लगे, उसे घर के काम करने के नाम से बुखार आने लगता था। फिर यहाँ तो इतने सारे काम वो भी इतने perfection के साथ, वो तो उसकी कल्पना से ही परे था।

अगले दिन जब वो लोग office में मिले , तो अहना ने रोहित को देखते ही कहा, रोहित, कहना तो नहीं चाहती, पर मैं तुमसे शादी नहीं कर सकती हूँ।

ये सुनकर, रोहित का तो दिल ही बैठ गया। उसे समझ नहीं आ रहा था, आखिर एकाएक ऐसा क्या हो गया? जो अहना ने मिलते ही उससे ऐसा कह दिया।

वो अहना से पूछने लगा, पर क्यों?

तुम्हारे घर एक भी maid नहीं हैं, माँ ही सब काम करती हैं ना, इसलिए।

तो उससे क्या मतलब? शादी नहीं करने का फैसला क्यों?

क्योंकि मैं इतना सारा काम नहीं कर सकती, और वो भी इतने perfection के साथ, वो तो सोच भी नहीं सकती, अहना ने बहुत ही सहजता से कह दिया।

अरे....... बुद्धू !, बस इतनी सी बात, तो उसमें क्या है? हमेशा से तो माँ ही करती हैं। वो आगे भी कर लेंगी, तुमने बेकार ही मुझे डरा दिया।

अहना ये सुनकर खुश हो गयी, दोनों की शादी हो गयी।

ना जाने क्यों, रोहित ने ऐसा कहा था? अपनी मासूमियत में या इश्क़ की दीवानगी में?

आज माँ 70 साल की हो गईं हैं, पर आज भी घर का सारा काम माँ ही कर रही हैं। मजाल है कि, कभी अहना उनके किसी भी काम में मदद भी कर दे।

क्या ये सही है, कि वृद्धा अवस्था में भी माँ- पापा सारी जिम्मेदारियों का वहन करते रहें?

या हमे उनका हाथ बटाते बटाते, सारी ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ले लेनी चाहिए?

No comments:

Post a Comment

Thanks for reading!

Take a minute to share your point of view.
Your reflections and opinions matter. I would love to hear about your outlook :)

Be sure to check back again, as I make every possible effort to try and reply to your comments here.