Sunday 29 March 2020

Short Stories : मेरी बेटी



मेरी बेटी

जब पता चला, कोरोनावायरस बढ़ रहा है, तो समझ नहीं आया कि क्या करुं?

कामवाली को हटा दूं, सबकी सुरक्षा के लिए?

पर अगर उसे हटा दिया, तो इतने काम कैसे होंगे?

आजकल घर में माँ भी थी, उनके पैरों में fracture था, तो उनका सारा काम भी करना था।

मेरी तबियत भी कुछ नासाज़ थी।

पर सबसे बड़ी बात, शुरू से कामवाली बाई घर के काम करने के लिए लगी थी, तो उसे हटाने की हिम्मत नहीं हो रही थी।

मेरी बेटी, पास में बैठी थी, पूछने लगी, क्या सोच रहीं हैं?

मैंने कहा, समझ नहीं आ रहा है कि कामवाली बाई को अगर हटाती हूँ, तो इतना काम कैसे करुंगी, और अगर नहीं हटाती हूँ, तो सबके बीमार होने का डर है।

वो, बिना एक भी क्षण गवांए बोली, हटा दीजिए, सबका ठीक रहना बहुत जरूरी है।

मैं उसका मुंह देख रही थी, इसे एक बार भी मेरा ख्याल नहीं आया कि माँ, इतना काम कैसे करेंगी।

पर अगले दिन कामवाली बाई को काम करने को मना कर दिया।

मैं भारी मन से सोचने लगी, कहाँ से काम शुरू करुं?

तब तक तो देखा, बेटी झाड़ू लेकर सफाई करना शुरू कर चुकी थी।

तब तक मैंने नाश्ता बना दिया।

जब सब नाश्ता कर चुके, वो बर्तन ले गयी, और धोकर रख दिया।

मैं बस, उसे देखती रह गई, दिन भर पढ़ने और मस्ती करने वाली लड़की, कब इतनी सुघड़ हो गयी।

अब मुझे समझ आ रहा था, उसने कामवाली बाई को मना अपने दम पर करवाया था, ना कि काम मेरे कन्धों पर रख कर।

सच, हम समझ ही नहीं पाते हैं कि हम जो करते हैं, हमारे बच्चे उन्हें देखते हैं, और उनमें संस्कार निहित हो जाते हैं,  और आवश्यकता आने पर वो मुश्किलों से लड़ने में सक्षम होंगे, वो विजयी रहेंगे। 

अपनी बेटी पर जितना प्यार इस बात से आता था, कि वो मेधावी छात्रा  है, आज उस से ज्यादा गर्व इस बात पर है, कि वो हर परिस्थिति में ढलना जानती है, और उसमें विजयी होना भी।

No comments:

Post a Comment

Thanks for reading!

Take a minute to share your point of view.
Your reflections and opinions matter. I would love to hear about your outlook :)

Be sure to check back again, as I make every possible effort to try and reply to your comments here.