शहादत
बस में बैठी वो, पीछे मुडकर खिड़की से बाहर देख रही थी, पति क्या छूटा, सब छूटता जा रहा था।
उसके मन में मंथन चलने लगा, कि वो शहीद पति की शहादत पर दुःखी हो, जो शादी का पवित्र बंधन चंद महीने भी नहीं निभा पाया, या उस भारत माता के लिए प्रसन्न हो, जिनके लिए उनका साहसी पुत्र, अपना फ़र्ज़ निभा गया था।
इसी सोच में डूबी वो, कब उस जगह पहुंच गई, जहाँ उसे अपने पति के अंतिम दर्शन करने थे। उसे पता ही नहीं चला।
उसकी बस के रुकते ही उसने देखा, चंद जवान उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे।
वो उनके साथ भारी कदमों से वहाँ पहुंच गई, जहाँ उसके पति को राजकीय सम्मान से सम्मानित किया जा रहा था।
जब वो अपने पति के सम्मुख पहुंची तो उसने देखा, कि उस वीर के चेहरे पर वीरता और साहस का अनोखा तेज़ था, कहीं भी डर या अफसोस के भाव नहीं थे।
यह देखकर उस का दुःख काफूर हो गया। उसे यह याद ही नहीं रहा कि अब वो अकेली रह गई है।
आज पति का शौर्य से परिपूर्ण मुख देखकर उसने यह संकल्प लिया कि वो भी देश के लिए समर्पित हो जाएगी।
उसके पति की शहादत ने उसके मन-मस्तिष्क में यह ही छाप छोड़ी कि "देश सर्वप्रथम, बाद में हम"।
हंदवाड़ा के शहीदों को समर्पित
💐उन्हें मेरी भावभीनी श्रद्धांजलि 💐🙏🏻😔
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