Wednesday 30 September 2020

Stories of Life : रोटी

 रोटी



आज हरिया, फिर से ठेकेदार के पास आया।

हजूर कुछ काम मिल जाता तो बच्चे दो वक्त की रोटी खा लेते।

ठेकेदार बड़ा भला इन्सान था। उसके पास जितने भी मजदूर काम करते थे, वो सभी को बहुत दिनों तक हर दिन के 50 रुपए देता रहा था।

पर स्थिती सम्भल ही नहीं रही थी, तो उसने सबको 200 रुपए देकर गांव लौट जाने को कहा था। इस बात को एक हफ्ता हो चुका था।

हरिया को अपने समाने खड़ा देखकर, ठेकेदार बोला- तू गांव नहीं गया?

पैसे कम पड़ गये थे या कोई बीमार पड़ गया?

नहीं हजूर, आप की किरपा से सब ठीक है।

तो गांव काहे नहीं गये?

का करते हजूर, गांव जाकर? वहां कौन से खड़े खेत हमारी बांट जोह रहे हैं।

हम तो जैसे यहाँ कंगाल, वैसे ही वहाँ भी। वैसे भी वहाँ बहुत सुविधा होती, तो आते ही काहे।

यहां, आप हो हमारे अन्नदाता। जिसने कभी हमें भूखे नहीं सोने दिया, आप को छोड़ कर कैसे चले जाते, माई-बाप?

सब तो चले गए, तुम ही काहे रुके पड़े हो?

कोई नहीं गया हजूर।

क्या कह रहे हो?

सच कह रहा हूं हजूर।

तो इतने दिनों से तुम लोग कर क्या रहे थे, कोई मेरे पास आया क्यों नहीं? तुम लोगों का खाना पीना कैसे हो रहा था?

हजूर, हम में हर रोज़ कोई एक आता था। छुपकर आप को देखकर, आसपास से टोह लेकर जाता था कि कोई काम मिला। क्योंकि बिना काम मिले, हम आप से और ज्यादा पैसा मांगकर आप को नाहक दुःखी नहीं करना चाहते थे।

आज हमाई बारी थी। 

तो तुम आज सामने क्यों आ गये?

हजूर, अभी तक तो आप के दिए पैसों से जैसे तैसे गुजारा कर रहे थे, पर अब बच्चे और बूढ़े भूख से बिलख रहें हैं।

पर हरिया, अब सच में तुम लोगों को देने के लिए मेरे पास कुछ नहीं है।

तुम लोगों को गांव जाने के पैसे भी, तुम लोगों की मालकिन के गहने बेचकर दिए थे।

नहीं हजूर, पैसे नहीं, काम चाहिए।

कहाँ से लाऊं काम?

हजूर पता चला है कि बहुत सी buliding में मजदूरी का काम चाहिए।

वहाँ औने पौने दाम में काम ले रहे हैं।

हजूर अभी सब चलेगा, दो रोटी, रुखी सूखी भी छप्पन भोग है अभी।

सोच लो, अभी दाम कम करना, हमेशा के लिए का रेट बन सकता है।

हजूर जब सब भूखे मर जाएंगे तो भी तो कुछ हाथ नहीं आएगा। दो रोटी ही सही खाने को तो मिलेगी फिर आगे का आगे देखेंगे।

 ठीक है हरिया, जैसी सबकी इच्छा। मैं बात करता हूं शायद कहीं कुछ मिल जाए।

 4 दिन बाद ठेकेदार ने सबको बुलाया, बोला बड़ा काम मिला है, और पैसा भी ठीक मिल जाएगा। पर सुबह से रात तक काम करना होगा। एक भी छुट्टी नहीं मिलेगी। थककर चूर हो जाओगे।

सब बोले हजूर, अभी बैठकर ज्यादा थकान हो रही है, जब सबको भूख से बिलखता देखते हैं।

काम शुरू हो गया, दिन रात काम चलने लगा। रोज़ रात तक सब थककर चूर हो जाते।

पर अगले दिन, फिर सबको रोटी खाने को मिल जाएगी, यह सोच कर ही रातभर में सब थकान दूर हो जाती।

सबका पूरा-पूरा परिवार काम करता, किसी को भी जल्दी जाने के लिए, कोई बहाना नहीं सूझता।

कुछ महीनों ने सबको रोटी का मोल और काम की महत्ता समझा दी थी।

ठेकेदार को अपने मजदूरों से बहुत प्यार था, इसलिए वो अपनी कमाई के बड़े भाग से आए दिन सबके लिए पूड़ी सब्जी, हलवा बनवाकर बांट देता।

सब बहुत खुश रहने लगे, उनको रोज़ रोटी मिलने की चिंता जो नहीं करनी पड़ रही थी।

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